सिमडेगा: गांव की भोली भाली लडकियों को महानगरों के सब्जबाग दिखा कर मानव तस्कर ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में होता है. अक्सर आदिवासी बच्चियों को चंद रूपयों के लिए महानगरों में गंदे धंधे के लिए धकेल दिया जाता है. कोरोना संक्रमण काल की दूसरी लहर अस्ताचल की ओर है. ऐसे में मानव तस्कर फिर से काम दिलाने के बहाने क्षेत्र में हावी होने का प्रयास करेंगे. लोगों को ऐसे सौदेबाजों से सावधान रहने की जरुरत है.
आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा में मानव तस्करों की कुदृष्टि
आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा जहां मानव तस्करों की कुदृष्टि है. सिमडेगा के लिए मानव तस्करी जैसी चीजें कोढ बनती जा रही है. आदिवासी बहुल जिला सिमडेगा के गांवों में सीधे-सीधे आदिवासी बसते है. मानव तस्कर इनके भोलेपन का फायदा उठाकर उनकी बच्चियों को महानगरों की चकाचौंध जिंदगी का सब्जबाग दिखा कर अपने साथ ले जाते हैं और वहां इन बच्चियों का सौदा कर देते हैं. वहां इन बच्चियों से जानवरों की तरह सलूक किया जाता है. गरीब मां-बाप भी ये सोच कर छोड़ देते हैं कि बेटी हर महीने कुछ कमा कर दे देगी. लेकिन वहां इनकी बच्चियों के साथ होते जुल्म की खबर इनतक पंहुच ही नहीं पाती है, और जब पहुंचती है तब तक बहुत देर हो जाता है. अभी कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर अस्ताचल की ओर है. अब फिर से एक बार मानव के सौदेबाज इन गांवों तक पहुंचकर कल कारखानों में काम दिलाने के बहाने हावी होने का प्रयास करेगें.
पिछले साल 56 लड़कियों को दलाल कोयंबटूर ले जा रहे थे
पिछले साल भी कोरोना संक्रमण काल के बाद रेडिमेड फैक्ट्री में काम दिलाने के बहाने 56 लड़कियों को कुछ दलाल बस से कोयंबटूर ले जा रहे थे. इससे पहले ही पुलिस ने अपनी तत्परता दिखा कर उनको उन सौदेबाज से बचा लिया था. अब हर बार की तरह इस बार वो दोहरा जाए. इसके लिए गांव के प्रबुद्ध लोगों को सजग रहने की जरुरत है. ऐसे मानव तस्कर दिखें तो तुरंत पुलिस को इतला कर दें ताकि उनके इस गंदे कामों को बढावा ना मिले.
ऐसा दिखने पर पुलिस को तुरंत करें सूचित
पुलिस कप्तान डॉ. शम्स तब्रेज ने बताया कि पिछले 7 महीने में काफी बच्चियों को रेस्क्यू किया गया है. इसी से अंदाजा लगता है कि सिमडेगा में मानव तस्करी का कितना जाल फैला हुआ है. पुलिस और जिला प्रशासन लगातार ऐसे मानव तस्करों पर लगाम लगाने का प्रयास करती रहती है, लेकिन कोविड के कारण अभी जागरूकता कार्य भी बंद हो गया है. जो कोविड संक्रमण समाप्त होते फिर से चलाया जाएगा. इसका ये अर्थ नहीं कि गांव के प्रबुद्ध लोग अपनी आंखे बंद रखें. जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन लगातार सिमडेगा के इस कोढ को खत्म करने के प्रयास में जुटी हुई है, लेकिन अपने घर की बेटी की जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए आप भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं. गांव टोलों में जब भी कोई बाहरी नौकरी और महानगरों के सब्जबाग दिखाकर बरगलाते नजर आए तो तुरंत पुलिस को सूचित करें. सिमडेगा पुलिस लगातार मीडिया के साथ-साथ सभी प्रभुत्व लोगों को इस जागरूकता में शामिल होकर समाज के इस कलंकित कोढ को समाप्त करने की अपील कर रही है.
ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी है मुख्य कारण
सिमडेगा के ग्रामीण क्षेत्रों में फैली गरीबी और भोलापन मानव तस्करों को हावी होने का मौका देते हैं। यहां जागरूकता के साथ-साथ रोजगार भी तलाशना होगा. जिससे कमाने की चाह में बच्चियां तस्करों के चक्कर में फंसकर महानगरों में बिकने से बच सकें. सिमडेगा के विधायकों, सांसद, जनप्रतिनिधियों और सुबे के युवा मुख्यरमंत्री से आग्रह है कि सिमडेगा वनोपाद से भरा पूरा है. यहां पंचायत स्तरों पर या प्रखंड स्तरों पर वनोपाद के प्रॉसेसिंग या सरकारी बिक्री केंद्र की व्यवस्था हो जाए तो इन आदिवासी ग्रामीणों को रोजगार मिल जाएगी. इन्हें अपने बच्चों को कमाने की चाह में बाहर का रास्ता नहीं देखना पड़ेगा. मानव तस्करी का कलंक हमेशा के लिए मिट जाएगा. रोजगार मिलेगा तभी गांव की बेटियां महानगरों की गलियों में गुम होने से बच सकती हैं.