दीपक/न्यूज11 भारत
रांची: झारखंड की राजधानी रांची में एक कार्यालय है, जिला भू अर्जन पदाधिकारी (डीएलएओ) ऑफिस. कहने के लिए यह कार्यालय जिले भर में अधिगृहित होनेवाली रैयतों की जमीन का मुआवजा वितरण देने के लिए अधिकृत है. चाहे वह राष्ट्रीय उच्च पथ हो, सेंट्रल यूनिवर्सिटी हो, लॉ यूनिवर्सिटी हो, रांची रिंग रोड हो अथवा बिरसा मुंडा एयरपोर्ट विस्तारीकरण का मामला. सभी मामलों में डीएलएओ कार्यालय और संबंधित अंचल कार्यालयों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. ऐसे ही एक मामले को न्यूज11 भारत आपके समक्ष उठा रहा है. पढ़े विस्तृत खबर…
रैयत के बजाए दूसरे को 87 लाख मुआवजे के नाम पर दे दिया
रांची जिले के तत्कालीन नजारत उप समाहर्ता (एनडीसी) और प्रभारी डीएलएओ सौरभ प्रसाद का नाम बिना कागजी जांच के मुआवजा देने सबसे उपर है. इनके समय में रांची रिंग रोड के रामपुर हाट से लेकर रातू तक के लिए अधिगृहित की गयी जमीन का मुआवजा राशि वितरित किया गया था. तुपुदाना मौजा की जमीन में मुआवजे की राशि देने में इन्होंने नियमों की जमकर अनदेखी की. तुपुदाना मौजा के खाता 18 के तीन प्लाटों में इन्होंने घसिया उरांव नामक व्यक्ति को 87 लाख से अधिक का भुगतान कर दिया. जबकि वास्तविक रैयत कोई और था. इस ममले में अब जिला प्रशासन की ओर से लाभुक व्यक्ति से मुआवजे की राशि को लेकर सर्टिफिकेट केस करने की नौबत आ गयी है. कई बार डीएलएओ कार्यालय से नोटिस दिये जाने के बाद संबंधित व्यक्ति ने ली गयी राशि सरकार को वापस नहीं की. इस संबंध में तत्कालीन डीएलओ और वर्तमान में रामगढ़ के डीटीओ सौरभ प्रसाद से न्यूज 11 भारत ने उनका पक्ष जानना चाहा. तो उन्होंने कहा कि 26 जनवरी के बाद रांची आएंगे. संबंधित मामले की फाइल देखकर कुछ भी बता पाएंगे. मामला चार साल पुराना है. वैसे जो भी मुआवजा राशि दी गई है, वह सीओ, सीआई आदि के रिपोर्ट के आधार पर भुगतान हुआ है.
दोषी अफसरों पर कार्रवाई के लिए अनुशंसा की तैयारी
डीएलएओ कार्यालय से अब कहा जा रहा है कि उस समय कागजातों का वेरीफिकेशन ठीक से किया ही नहीं गया. सौरभ कुमार ने नजारत उप समाहर्ता रहते हुए लाभुक के खाते में मुआवजे की राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया था. जानकारी के अनुसार इस खाते से 3.60 करोड़ से अधिक का भुगतान होना था. जिला प्रशासन की तरफ से यह दलील दी जा रही है कि 2012-13 से लेकर 2015-16 तक के कार्यकाल में किये गये भुगतान का पूरा ब्योरा तैयार किया जा रहा है. इसको लेकर संबंधित दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की अनुशंसा भी सरकार से की जायेगी. बताते चलें कि सेंट्रल यूनिवर्सिटी के 100 रैयतों को अब तक पैसा नहीं मिला है. उधर झारखंड जैगुआर कार्यालय जिस जमीन पर बना है, वहां पर भी 86 करोड़ रुपये रैयतों को नहीं मिली है.
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एयरपोर्ट विस्तारीकरण के लिए ली गयी जमीन के मुआवजे में भी हुई है गड़बड़ी
आपको बताते चलें कि राजधानी रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट विस्तारीकरण मामले में हेथू, चंदाघांसी, हुंडरू, बड़ा घाघरा, घाघरा और लटमा बस्ती तक की जमीन अधिगृहित की गयी. उस समय रांची के नामकुम अंचल के तत्कालीन अंचल अधिकारी और तत्कालीन डीएलएओ कार्यालय के जिला भू अर्जन पदाधिकारियों ने गलत तरीके से पैसे का भुगतान किया. एयरपोर्ट विस्तारीकरण के लिए 400 एकड़ से अधिक जमीन ली गयी. सरकार की तरफ से 90 हजार रुपये प्रति डिसमिल की रेट भी तय की गयी थी. हेथू मौजा के खाता 65,13, 18, 30, 20 तथा अन्य से एयरपोर्ट विस्तारीकरण के लिए 150 एकड़ से अधिक की जमीन ले ली गयी. इसमें कई फरजी दावेदारों को भी जिला प्रशासन की तरफ से मुआवजा दिया गया, जिससे संबंधित कई मामले विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. इतना ही नहीं जिला प्रशासन के लैंड कोर्ट में भी कई मुकदमा लंबित है. 2012-13 से लेकर 2015-16 तक डीएलएओ के प्रभार में शैलेंद्र लाल, अभय नंदन अंबष्ट, सौरभ प्रसाद और अन्य अधिकारी थे. ये लोग सिर्फ अनुशंसा के आधार पर ही मुआवजे का भुगतान कर देते थे. शैलेंद्र लाल उस समय भूमि सुधार उप समाहर्ता भी थे. इसलिए ड्यूएल विभागों के इंचार्ज के रूप में वे भूमि वाद की सुनवाई भी करते थे, तो दूसरी तरफ मुआवजे की राशि का भुगतान भी सुनिश्चित करते थे.