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रांची: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विज्ञान भवन में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन का उद्घाटन किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि मुझे विश्वास है कि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश के प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोड मैप तैयार करेगा. राज्य के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों का ये संयुक्त सम्मेलन हमारी संवैधानिक खूबसूरती का सजीव चित्रण है. हमारे देश में जहां एक ओर ज्यूडिशियरी की भूमिका का संविधान संरक्षक है, वहीं विधान मंडल नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है. 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरा करेगा, तब देश में कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम किस तरह अपनी न्याय व्यवस्था को इतना सामर्थ्य बनायें कि वो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके. उन पर खरा उतर सके. ये प्रश्न आज हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिए. आज का सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. आजादी के इन 75 सालों ने ज्यूडिशियरी और एग्जिक्यूटिव दोनों की भूमिका और जिम्मेदारियों को निरंतर स्पष्ट किया है. जहां जब जरूरी हुआ, देश को दिशा देने के लिए ये संबंध लगातार विकसित हुए. पीएम ने कहा कि भारत सरकार न्याय व्यवस्था में तकनीक की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है. उदाहरण के तौर पर ई-कोर्ट परियोजना को आज मिशन मोड में लागू किया जा रहा है. आज छोटे कस्बों और यहां तक कि गांवों में भी डिजिटल ट्रांजैक्शन आम बात होने लगे हैं.
2015 में केंद्र सरकार ने अप्रासंगिक 1450 केंद्रीय कानूनों को खत्म किया
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि 2015 में हमने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिह्नित किया था, जो अप्रासंगिक हो चुके थे. इनमें से जो केंद्रीय कानून थे, उसमें से 1450 कानूनों को हमने खत्म किया. लेकिन राज्यों की तरफ से सिर्फ 75 कानून को ही खत्म किया गया. हमें कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है. इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा और वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे. इस अवसर पर कानून मंत्री , सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों ने हिस्सा लिया.