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रांचीः राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आज खूंटी दौरे पर है. वे खूंटी जिला के बिरसा मुंडा कॉलेज में आयोजित महिला स्वयं सहायता सम्मेलन में शामिल हुई है. इस कार्यक्रम में केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा, जनजातीय कार्य राज्य मंत्री श्रीमती रेणुका सिंह सरूता, राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, मंत्री जोबा मांझी, खूंटी जिला के विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा, तोरपा विधायक समेत कई अधिकारी और पदाधीकारी शामिल हुए है.
जोबा मांझी मेरे घर की दादी, मुझे गर्व है- राष्ट्रपति
राष्ट्रपति ने कहा कि 15 नवंबर 2022 को बिरसा मुंडा के जन्मस्थल उलिहातु में जाना और उनके प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला था. उन्होंने कहा कि सभी देशवासियों की ओर से मैं भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली तथा क्रांतिकारियों की बलिदान स्तरी खूंटी के प्रति मैं नमन करत हूं भगवान बिरसा मुंडा के धरती की मिट्टी को मैं अपने सर पर लगाना चाहती हूं. उन्होंने कहा कि मैं भी एक आदिवासी हूं. झारखंड राज्य हुए 22 साल हो गए है. मैं काफी खुश हूं कि अर्जुन मुंडा आदिवासी कल्याण मंत्री है. वेकेंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भी खूंटी के एक विधानसभा क्षेत्र से हैं. और महिला समूह के मंत्री हैं. वे महिला सशक्तिकरण की दिशा में काम रहे हैं. मंत्री जोबा मांझी जो मेरे घर की दादी है. इन्हें लेकर लेकर भी मैं अत्यंत प्रसन्न हूं. मुझे बहुत गर्व है.
महिलाएं सशक्त हो, सरकार की यही मंशा- केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा
कार्यक्रम में अपने संबोधन के शुरूआत के पहले उन्होंने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि देश के राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का स्वागत करते हुए अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. जहां इस खूंटी के पावन धरती पर स्वयं सहायता समूह के माध्यम से आज उद्यमता विकास का नया अध्याय जुड़ रहा है. और यहां आपके आने से हम सभी गौरंवित है. उन्होंने कहा कि यह धरती भगवान बिरसा मुंडा की धरती है. अपने मंत्रालय के कार्यक्रमों की प्रस्तुति को देखा. महिलाएं सशक्त हो, सरकार की यही मंशा है. बेटी पढ़ाओ बेटी बढ़ाओ का मूल मंत्र के साथ यह सरकार लगातार कार्य कर रही है.
यह धरती भगवान बिरसा मुंडा की धरती है. भगवान बिरसा मुंडा के कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र करते हुए इस अभियान को नई कड़ी के साथ जोड़ने का जो प्रयत्न हो रहा है वह ना केवल इस क्षेत्र के धरती में बल्कि पूरे देश में एक नए तरीके से आंदोलन का लेगा. भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन के बाद इस क्षेत्र में अंग्रेजों के शासनकाल के समय में बाध्य होना पड़ा कि यहां के लोगों को उनके मौलिक बातों को ध्यान में रखकर कानून ऐसे बनाना चाहिए जिससे कि वो सुरक्षित, संरक्षित, संवर्धन और उनका जो जीवन पद्धि है सांस्कृतिक विरासत है वो बरकरार रहे. और इसी लिए सीएमपी एक्ट जिसे हम देखते है छोटानागपुर कश्तकारी अधिनियम (Chhotanagpur Tenancy Act) के माध्यम से इस क्षेत्र के भूमि को विशेष तौर से आपको यह जानकर खुशी होगी कि आज हम इस जिले के दो सौ चौव्वन गांव को हमने आधी आदर्श ग्राम बनाने की योजना में सम्मिलित किया है.
राज्यपाल बनने के बाद बिरसा मुंडा के जन्मस्थली खूंटी आने का मौका मिला- राज्यपाल
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने सभी को जोहार बोलते हुए अपना संबोधन शुरू किया. उन्होंने कहा कि झारखंड का राज्यपाल बनने के बाद भगवान बिरसा मुंडा के जन्मस्थली खूंटी के उलिहातू में मुझे भी आने का मौका मिला है. जो मेरे लिए सौभाग्य की बात है. भगवान बिरसा मुंडा ने कई बलिदान दिए है जो हम सभी के लिए मार्ग प्रशस्त किया उन्होंने देश के लिए एक इतिहास रच दिया है. बिरसा मुंडा एक स्वतंत्र सेनानी थे और वे देश के लिए शहीद हो गए. जो हमेशा लोगों को प्रेरित करता रहेगा.
जल-जंगल-जमीन की हमारी पहचान- CM हेमंत सोरेन
सीएम ने कहा कि मैं चाहूंगा कि जिन आदिवासियों के संदर्भ में हमारी इतनी बड़ी केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रालय काम करती है वहीं राज्य भी हमारे आदिवासियो के लिए उनके पैरों पर खड़ा होने के लिए उनके आय के स्त्रोतों को बढ़ाने की. जो चिंताए है और जो चिंतन-मंथन हम करते है. उसका प्रभाव और उनका असर बहुत अच्छा दिखता है यह हम कह नहीं सकते, बता नहीं सकते. आज के दिन में हमारे आदिवासी समाज के लोग कई चुनौतियों के साथ संघर्ष कर रहे है जल-जंगल-जमीन की हमारी पहचान, वहीं यह राज्य कोयला, लोहा, तांबा आब्रक और यूरेनियम के नाम से जाना जाने लगा है यहां के खनिज संपदाओं से पूरे देश के घरों की रोशनियां जलती है. आज भी हमारे राज्य के आदिवासी समुदाय के लोग विस्थापन का दंश झेल रहे है. जंगलो में रहते है. दो वक्त की रोटी जुटाने में जद्दोजहत करनी पड़ती है. कोरोना काल का समय था जब राज्य को एहसास हुआ कि यहां से लोग दूसरे राज्यों में बड़ी मात्रा में पलायन करते है. यह देखकर हम बहुत चिंतित हुए. हमने जद्दोजहद कर उन्हें वापस लाने का काम किया.
राज्य अलग होने के 20 साल बाद भी आज के दिन में कोई ऐसे सार्थक प्रयास हमारे आदिवासियों के बीच में नहीं हो पाया है. आप लोग वन समिति के नाम को सुना होगा. किस तरीके ये स्थिति में है यह छिपी हुई बात नहीं है. उन्होंने कहा कि इससे पहले कोई सक्रिय फेडरेशन यहां पर बेहतर तरीके से काम कर रहा है यह नहीं कहा जा सकता है. यह कहा जा सकता है कि हम कहीं मुख्य अतिथि के तौर पर जाए तो पदाधिकारीगण कुछ स्टॉल्स लगाकर हमें यह दिखाने का प्रयास करते है. हम ये उत्पाद करते है वो उत्पाद करते है. लेकिन इसकी वास्तविकता जमीनी स्तर पर बिल्कुल अगल होती है.