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रांची: मुख्यमंत्री के दिशा-निर्देश में राज्य में सुखाड़ की आशंका को लेकर कृषि विभाग ने बैठक की. 2022 में औसत से 58 फ़ीसदी कम बारिश होने की वजह से किसानों में मायूसी छायी है. कृषि मंत्री बादल की अध्यक्षता में कृषि विज्ञान केंद्र आईसीएआर बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों के साथ राज्य के वर्तमान हालात पर महामंथन किया गया. नेपाल हाउस स्थित सभागार में कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य में भीषण संकट है. सबसे कम बारिश की वजह से बुवाई का काम काफी कम हुआ है जो एक चिंता का विषय है. ऐसी विषम परिस्थिति में राज्य के किसान कृषि वैज्ञानिकों से शोध की गुणवत्ता के उत्कृष्ट उदाहरणों की अपेक्षा रखता है. राज्य के निर्माण में कृषि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाये और कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप दस्तावेज तैयार कर किसानों तक जागरूकता अभियान चलाया जाए. हमें राज्य मल्टीक्राप को बढ़ावा देने के लिए चावल और गेहूं के साथ दाल और दलहन व अन्य खेती पर भी फोकस करना होगा साथ ही फूड सिक्योरिटी के साथ न्यूट्रिशन सिक्योरिटी लोगों को मिले इसका भी ख्याल रखने की जरूरत है. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र को क्वालिटी सीड्स प्रोडक्शन हेतु आधुनिक सुविधा उपलब्ध कराने की भी बात कही.
कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य के किसानों को लेकर वह काफी चिंतित हैं और झारखंड राज्य फसल राहत योजना के तहत राज्य के 20,000 कॉमन सर्विस सेंटर किसानों को असिस्ट कर रहे हैं. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए कहा कि आने वाले 20 दिन काफी क्रिटिकल है इसलिए सभी को मिलकर काम करना होगा.
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कृषि सचिव अबू बकर सिद्दीकी ने कहा के राज्य में बारिश कम होने की वजह से उत्पन्न स्थिति से निपटने के लिए शॉर्ट टर्म और वैकल्पिक फसल पर जोर देने की जरूरत हैं. उन्होंने उड़द, मडुआ और सोयाबीन की खेती करनी होगी साथ में मक्का, अरहर, ज्वार और बाजरा जो न्यूट्रीशनली रिच हैं, उन पर फोकस करना होगा. उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों से कहा कि कृषि विज्ञान पर केंद्र राज्य का बैकबोन है इसलिए इनकी भूमिका जागरूकता के साथ-साथ तकनीकी मदद देने में भी महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारी किसानों के साथ समन्वय बनाए ताकि राज्य में सुखाड़ की आशंका को लेकर निदान की दिशा में कदम बढ़ाए जा सके.
कृषि निदेशक निशा उरांव और आपने प्रेजेंटेशन के माध्यम से जानकारी देकर राज्य में अब तक औसत से 51 फीसद कम बारिश हुई है और राज्य के कुल इक्कीस जिलों में स्पेशल केयर करने की जरूरत है. उन्होंने बताया कि पेडी में सबसे ज्यादा शॉर्ट फॉल दिखाई दे रहा है. 2021 में 36.7 4% अब तक एरिया कवर किया गया था जबकि 2022 में मात्र 14.11 प्रतिशत ही एरिया में क्रॉप्स का काम हुआ है. उन्होंने बताया कि राज्य में शॉर्ट ड्यूरेशन वैरायटी पर फोकस किया जा रहा है साथ ही नई तकनीकी की जानकारी किसानों तक पहुंचाने की योजना है.
सुखाड़ पर महामंथन के दौरान बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कृषि वैज्ञानिक केंद्र और आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिकों ने सलाह दी के झारखंड के इको सिस्टम के मुताबिक कृषि में विभिन्न अवयवों को जोड़ने की जरूरत है साथ ही कहा कि राज्य में डीएसआर मेथड पर भी काम करने की आवश्यकता है. बैठक में यह भी सुझाव आए कि मौजूदा परिस्थिति में किसानों को बीज वितरण में जो 50 फ़ीसदी की सब्सिडी मिलती है उसे बढ़ाकर 75% सब्सिडी अनुदान देने की जरूरत है। कृषि की पैदावार बढ़ाने के लिए सरफेस वाटर हार्वेस्टिंग पर नीति बनाने की जरूरत पर बल देते हुए वैज्ञानिकों ने कहा कि अगर नीति राज्य सरकार द्वारा बनाई जाती है तो मिट्टी की नमी को बचाया जा सकेगा. बैठक में मुख्य रूप से निदेशक मृत्युंजय वर्णवाल, शशि प्रकाश झा सहित बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कृषि विज्ञान केंद्र और आईसीएआर के कृषि वैज्ञानिक सहित कई पदाधिकारी उपस्थित थे.