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रांची: डॉक्टर भगवान का रूप है. मरने वालों में जान फूंकने की क्षमता रखते हैं. अगर यह किसी सरकारी अस्पताल का डॉक्टर हो, और उसके द्वारा किसी मृत प्राय बच्चे के शरीर में जान फूंक दी जाए, तो आम लोग उसे भगवान से कम नहीं समझे. ऐसा ही कुछ गिरिडीह में हुआ. बिच्छू के डंक से मृत घोषित बच्चे के शरीर में एक सरकारी डॉक्टर ने सबकी आंखों के सामने जान फूंक दिया.
डॉक्टरों और परिजनों ने बच्चे को समझ लिया मृत
मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के चेंगरबासा में एक मृत घोषित बच्चा सबकी आंखों के सामने बोलने लगा. चेंगरबासा निवासी सनू टुडू का पुत्र अमन टुडू (13 वर्ष) को बिच्छू ने डंक मार दिया था. डंक मारने की वजह से अमन की तबीयत बिगड़ने लगी. घर वाले उसे आनन-फानन में सदर अस्पताल लेकर पहुंचे. इमरजेंसी में डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया. बच्चे को वार्ड में ले जाने की तैयारी थी, तभी बच्चे को कार्डिक अरेस्ट हो गया. बच्चे ने सांस लेना बंद कर दिया. शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगी. धड़कन भी थम गई. इमरजेंसी में डॉक्टरों व परिजनों ने बच्चे को मृत समझ लिया. तभी भगवान के रूप में वहां डॉक्टर फजल अहमद पहुंचे. वह वार्ड से वापस लौट रहे थे.
अब बच्चा खुद ले रहा ऑक्सीजन
डॉक्टर ने बच्चे को तुरंत आईसीयू में सिफ्ट करने को कहा..इसके बाद डॉक्टर ने बच्चे को सीपीआर देना शुरू किया. तकरीबन आधे घंटे तक सीपीआर दिया जाता रहा. बच्चे का हार्ट बीट लगभग बंद हो गया था, वह समझ में आने लगा. बच्चे को सांस लेने में परेशानी हो रही थी, उसे तुरंत ऑक्सीजन दिया गया. तभी अचानक बच्चे के शरीर में मानों किसी ने जान फूंक दी हो, बच्चा अचानक सांस लेने लगा. बोलने लगा. पूरे अस्पताल में पसरा मातम खुंशी में बदल गया. सदर अस्पताल के डॉक्टरों की मेहनत ने बच्चे को बचाया, ऐसा लोग बोलने लगे. अब बच्चा खुद ही ऑक्सीजन ले रहा है और अब पूरी तरह खतरे से बाहर बताया जा रहा है.
जानें क्या है सीपीआर तकनीक
सीपीआर का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन. यह एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है. अगर किसी कारण कोई व्यक्ति बेहोश हो गया हो, दिल की धड़कन बंद हो गई हो या पल्स नहीं चल रहा हो, तो ऐसी स्थिति में सीपीआर ही दी जाती है. इसकी मदद से पेशेंट को सांस लेने में सहायता मिलती है. और सीपीआर से उसकी जान बचाई जा सकती है.