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झारखंड


विश्व पर्यावरण दिवस: बदल गई झारखंड की आबो हवा

रांची अब नहीं रही ग्रीष्णकालीन राजधानी, हरियाली गायब, शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील
विश्व पर्यावरण दिवस: बदल गई झारखंड की आबो हवा

न्यूज11 भारत


रांची: विश्व पर्यावरण दिवस आज है. पर्यावरण के महत्व को बताने, समझाने और लोगों के बीच जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. देश में वन क्षेत्र को लेकर झारखंड विशेष स्थान रखता है. झारखंड में हरियाली की वर्तमान स्थिति की पड़ताल न्यूज 11 भारत ने किया. प्रदेश में वृक्षारोपण, पेड़ों की कटाई और हरियाली में बढोत्तरी से संबंधित आंकडे जुटाए. आंकड़े चौकाने वाले है. विकास के नाम पर झारखंड में लाखों पेड़ काट दिए गए. जिसका असर बढ़ता तापमान बता रहा हैं. बिहार और झारखंड एक था तब रांची में ग्रीष्णकालीन राजधानी होती थी. तापमान ज्यादा ऊपर नहीं जाता था और हवा की गुणवत्ता भी ठीक रहती थी. मगर अब सबकुछ बदलता जा रहा है.


राज्यपाल रमेश बैश ने कहा कि झारखंड बेहतर मौसम और हरियाली की वजह से जानी जाती थी, मगर अब ऐसा नहीं है. तापमान बढ़ता जा रहा है. शहर से हरियाली गायब हो रही है. यानी झारखंड का पर्यावरण बदल रहा है. बाहर से आने वाले लोगों को रांची का मौसम पहले की तरह नहीं लुभा रहा है. अब आलम यह है कि कभी हरी-भरी रही रांची, अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील होती जा रही है. राजधानी के कई इलाके तो ऐसे हो गए हैं जहां एक भी पेड़ नहीं बचे हैं. कई इलाकों में पीपल, बरगद, नीम, आम, कटहल, जामुन, गुलड़ जैसे बड़े वृक्षों को काट दिया गया, जिसका नतीजा हुआ कि राजधानी रांची में मौसम का मिजाज भी बदल गया है.


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हरियाली गायब होने से जल चक्र हो रहा प्रभावित


पेड़ कटने, हरियाली गायब होने का सीधा असर हवा के साथ-साथ जल-चक्र पर भी पड़ा है. नदियां नालों में तब्दील होती जा रही है. दामोदर, स्वर्णरेखा हरमू और नलकारी नदी पहले कल-कल बहती थी और इन नदियों का पानी पीने लायक होता था. लेकिन, अब ये नदियां नालों में तब्दील होती जा रही है. इन नदियों से अब बीमारी का खतरा पैदा हो गया है. 


विकास के नाम पर लाखों के पेड़ कटे, घट गई रांची शहर की 31 प्रतिशत हरियाली


झारखंड में 33.81% वन क्षेत्र है. साल 2000 में जब झारखंड बिहार से अलग हुआ था, तब इस राज्य में करीब 35% वन क्षेत्र थे. इसके बाद तीन सालों में विकास के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई. साल 2003 से लेकर 2021 तक के सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो हर साल वन क्षेत्र बढ़ता गया. औसतन हर साल 4.5 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा. मगर यह सिर्फ वन विभाग के दस्तावेजों में ही बढ़ा. हकीकत की बात करें तो रांची में विकास के नाम पर हर साल कम से कम 1200 पेड़ काटे जाते हैं. गैर सरकारी संगठन टोटल एंवायरमेंट अवेयरनेस मूवमेंट ने बीते वर्ष सर्वे रिपोर्ट जारी किया था. रिपोर्ट के अनुसार, रांची में पिछले तीन वर्षों में सड़क निर्माण सहित विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए करीब 80 हजार पेड़ काटे गए. पिछले एक साल में रांची के स्मार्ट सिटी में 1000 से ज्यादा पेड़ों की कटाई की गई है. पिछले 70 सालों में शहरीकरण के नाम पर अंधाधुंध पेड़ों की कटाई हुई और अब राजधानी का वन क्षेत्र घटकर करीब 20% रह गया है. पिछले 70 सालों में सिर्फ रांची का वन क्षेत्र 32% घट गया है. 


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प्रदेश में पेड़ कम होने के मुख्य कार


 



  • सड़कों का निर्माण और चौड़ीकरण

  • कोयला और खनिज खदानों में बढ़ता खनन

  • आवासीय सेक्टर, इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास

  • डैम आदि का निर्माण


 


पेड़ कम होने का दुस्प्रभाव


 



  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • सड़कों के आसपास तापमान वृद्धि

  • भूजल का स्तर प्रभावित होगा

  • धूल बढ़ेगी, एलर्जी रोगियों को परेशानी बढेगी.


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वन विभाग के दस्तावेज में बढ़ी है हरियाली


वन आवरण : 58.41 वर्ग किमी बढ़ोत्तरी


 


2019 में : 23,611.4 वर्ग किमी


2017 में : 23,553 वर्ग किमी


 


वृक्ष का आवरण : 265 वर्ग किमी घटा


 


2019 में : 2,657 वर्ग किमी


2017 में : 2,922 वर्ग किमी


 


झारखंड में 30 प्रतिशत से अधिक जंगल वाले 10 जिले


जिला वन क्षेत्र प्रतिशत


 


लातेहार- 56.08


चतरा - 47.80


पश्चिमी सिंहभूम- 46.60


कोडरमा- 40.29


हजारीबाग- 38.05


खूंटी-  35.72


गढ़वा-  34.00


लोहरदगा- 33.60


सिमडेगा- 32.88


पूर्वी सिंहभूम-30.30


 


20 प्रतिशत से भी कम जंगल वाले सात जिले


जिला वन क्षेत्र प्रतिशत


 


जामताड़ा- 5.56


देवघर-  8.22


धनबाद-  10.47


दुमका-  15.35


गिरिडीह-  18.16


गोड्डा- 18.68


पाकुड़-  15.85


 


 

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