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रांची : राजधानी के दो स्थान बड़कागढ़ और रातू किला में आज सदियों बाद भी पौराणिक काल से चली आ रही परंपरा का निर्वहण हो रहा है. दोनों ही जगहों में दुर्गा पूजा की एक अलग ही महत्ता है, जहां राजाओं के समय से किए जा रहे पूजा-विधि का पालन होता है.
रातू में नागवंशी राजा के परंपरा के तहत होती है पूजा
रातू किले में आज भी नागवंशी राजा फनीमुकुल राय की परंपरा के तहत ही सारी पूजा-अर्चना की जा रही है. नवमी को बलि प्रथा के दिन 51 बकरे की बलि चढ़ाई जाती है, जहां रातू के आसपास के ग्रामीण बकरे लेकर पहुंचते हैं और मां के चरण में नवमी को बलि चढ़ाते है. हालांकि जीव हत्या एक अपराध है, न्यूज11 भारत ऐसी परंपराओं को बढ़ावा नहीं देता. रातू किले में इस तरह के पूजा में ग्रामीणों की आस्था है, इसलिए इतने सालों बाद भी परंपरा के रूप में इसका निर्वहण हो रहा है. ग्रामीणों के लिए यहां के बलि प्रसाद की भी अलग महत्ता होती है. इस प्रसाद को लेने के लिए पचास गांवो में होड़ होती है, काफी जद्दोजहद के बाद अगर प्रसाद मिल गया तो लोग खुश एवं संतुष्ट होकर जाते हैं. पूरे नौ दिन पारंपरिक विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना होती है. इसके बाद दशहरा के दिन रावण-दहन भी ऐतिहासिक तरीके से होता है, लेकिन बीते साल से कोरोना संकट के कारण रावण दहन नहीं हो रहा है.
बड़कागढ़ में हो रही है 141 साल से परंपरा का निर्वहण
इसी तरह बड़कागढ़ की दुर्गा पूजा भी पारंपरिक है. रांची के बड़कागढ़ में 1980 से शुरू हुई राजा ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव की धर्मपत्नी बानेश्वर देवी की परंपरा का निर्वहण किया जा रहा है. आज ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव के वंशज एवं स्थानीय लोगों ने पुरानी परंपरा को टूटने नहीं दिया है. बड़कागढ़ के दर्जनों गांव के लोग आज पुरानी परंपरा के तहत ही इसमें शामिल होते हैं और अपना सहयाग देते हैं. बड़कागढ़ स्टेट की ईष्ट देवी मां भगवती चिंतामणि एवं मां चंडिका की पूजा पद्धति से राजपुरोहित के नेतृत्व में की जाती है. विगत 35 वर्षों से ठाकुर नवीननाथ शाहदेव यजमान के रूप में हिस्सा लेते हैं.
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मां चिंतामणि की शोभायात्रा के लिए बांस की डोली बनायी जाती है. उसे ठाकुर परिवार की बहुओं की साड़ियों से सजाया जाता है. यह परंपरा भी सदियों से चली आ रही है. 1961 में यहां पूजा शुरू हुई. महासप्तमी के दिन सखावली अली और उनके सदस्य डोली यात्रा के लिए सड़क की सफाई करते हैं. मुस्लिम भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं. जबकि डोली बनाने का कार्य स्थानीय आदिवासी करते हैं.
चढ़ाई जाती है उगे हुए सब्जी-अनाज
पूजा में मां दुर्गा को समीप के गांव वाले अपने खेत में उगे नए फसल, अनाज एवं सब्जियां चढ़ाते हैं. इससे ही मां का भोग बनता है. यह परंपरा भी सदिया से चली आ रही है.