अमित सिंह, न्यूज11 भारत
रांची: सात गांव के रैयतों को पता भी नहीं चला और उनकी 1457.72 एकड़ जमीन रातों रात बिक गई. तकरीबन 1000 ग्रामीणों की जमीन का सौदा कर दिया गया. जमीन की रजिस्ट्री भी हो गई. 27 फरवरी 2019 को दो रजिस्टर्ड डीड (केवला नंबर 1881 व 1882) के तहत 1457.72 एकड़ जमीन की खरीद-बिक्री हो गई. जमीन के इस सौदे में 310.43 एकड़ वन भूमि और 500 एकड़ गैरमजरूआ जमीन भी शामिल है. यानी 1457.72 एकड़ के जमीन का सौदा हुआ, उसमें 810.43 एकड़ सरकारी जमीन के खरीद-बिक्री हुई है. इस जमीन के साथ-साथ 647.29 एकड़ रैयतों की जमीन का सौदा गोपनीय ढंग से हो गया. किसी को कानों कान पता भी नहीं चला. एक ही दिन में बुंडू अंचल कार्यालय में 1457.72 एकड जमीन की रजिस्ट्री भी हो गई.
जी हां, आपको यह सुन कर आश्चर्य होगा कि 1457.72 एकड़ जमीन का सौदा हुआ और किसी को पता भी नहीं चला. रजिस्ट्री के बाद जब जमीन खरीददार के लोग जमीन पर पोजिशन लेने पहुंचे, झाड़ियां काटने लगे, नक्शा निकाल कर मापी करवाने लगे, तब गांव के लोगों ने जमीन मापी का विरोध किया. तब पता चला कि उनकी जमीन बीक गई है. यह सुनकर गांव के लोग भौचक्के रह गए. ग्रामीणों के विरोध के बाद जमीन खरीददार के लोग भाग खड़े हुए. दूसरे ही दिन एक जुट होकर ग्रामीण बुंडू अंचल कार्यालय पहुंचे. वहां जमीन से संबंधित दस्तावेजों की पड़ताल की, तब पता चला कि हरिदास मांझी के पुत्रों रामदास मांझी, विशेश्वर मांझी वगैरह कुल 20 लोगों ने मिलकर 1457.72 एकड़ जमीन को बेचा है.
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किन-किन गांव के ग्रामीणों की जमीन है शामिल: कोड़दा, तोडसांडी, बंगाहातू, चुतरू, रेदा, वनाबुरू व ताउ, टोला – कुडवाडीह, डोहूकोचा, गडाटोला व सारंजोन.
जमीन की हिस्ट्री : अंचल बुंडू, मौजा कोड़दा, थाना संख्या-83, खेवट नंबर-03, पोस्ट-एदलहातु, पंचायत - बारूहातू के खाता संख्या 01 से 103 तक रैयती जमीन.
जानें जमीन किसने और किसके नाम से ली गई
कोड़वा मौजा की यह जमीन (1457.72 एकड़) मेसर्स साकंबरी बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड (चंद्रेश् बजाज, पिता पवन बजाज, निवास श्रीराम गार्डेन कांके रोड) और मेसर्स कोशी कंस्लटेंट्स प्राइवेट लिमिटेड (प्रतिनिधि राहुल कुमार, पिता शैलेंद्र कुमार, निवासी रामेश्वरम कॉलोनी, बरियातु रोड़ रांची) ने खरीदा है. जिसका केवला नंबर 1881 व 1882 है. यह पूरी जमीन राजधानी रांची के बुंडू अंचल, थाना संख्या-83, मौजा कोड़दा के खेवट संख्या-3 की जमीन है.
सांत गांव के ग्रामीणों ने रजिस्ट्री रद्द करने की लगाई है गुहार
ग्रामीणों ने जमीन की रजिस्ट्री रद्द करने के लिए उपायुक्त कार्यालय में 15 सितंबर 2020 और इससे पहले 24 जुलाई 2020 को भी आवेदन दिया था, मगर कुछ नहीं हुआ. तब ग्रामीणों ने दक्षिणी छोटानागपुर के प्रमंडलीय आयुक्त नितीन मदन कुलकर्णी के पास गुहार लगाई. प्रमंडलीय आयुक्त ने मामले का गंभीरता से लेते हुए जांच टीम बनाकर पूरे मामले की जांच करवा रहे हैं. जमीन बेचने वाले 17 लोगों को प्रमंडलीय आयुक्त द्वारा पक्ष रखने के लिए नोटिस किया गया है. जिन लोगों को नोटिस भेजा गया है, उनमें बिशेश्वर मांझी, मदनमोहन मांझी, दल गोविंद मांझी, विजय मांझी, विजय कुमार मांझी, राजकिशोर मांझी, बशिष्ट मांझी, राजेंद्र नाथ मांझी, शंकर मांझी, हरेकृष्ण मांझी, रामदास मांझी, प्रदीप मांझी, रासबिहारी मांझी, दिनेश्वर मांझी, सुनील मांझी, रमेश चंद्र मांझी, उमाकांत मांझी व गौरांग मांझी आदि शामिल है. वहीं दूसरी तरफ रैयतों से जमीन से संबंधित तमाम दस्तावेज के साथ प्रस्तुत होने के लिए कहा गया है.
आयुक्त से सात ग्रामीणों का प्रतिनिधिमंडल मिलेगा
29 अप्रैल 2020 को रांची स्थित प्रमंडलीय आयुक्त कार्यालय में कोड़दा मौजा के ग्रामीण प्रतिनिधिमंडल को बुलाया गया है. जमीन से संबंधित सभी दस्तावेज के साथ. ग्रामीण अपना पक्ष रखने के लिए जमीन से संबंधित दस्तावेज एकत्र कर रहे है. ग्रामीणों का कहना है कि यह जमीन उनकी पुस्तैनी है. 1908 और 1932 में जो सर्वे हुआ था, उस समय से ही उनके पूर्वजों के द़्वारा जमीन पर खेती किया जा रहा है. बिक्री में अधिकांश जमीन रैयती भूमि है. जमींदारी उन्लूलन के उपरांत नियमित रूप से सरकारी रसीद निर्गत होता आ रहा है. नामांतरण वाद में सन्निहित गैरमजरूआ भूमि में से अनेकों सुयोग्य श्रेणी के भूमिहीन परिवार को सरकारी भूमि बंदोबस्त किया गया है एवं लगान रसीद निर्गत होता है. उनके द्वारा यह भी बताया गया है कि विक्रेता भूमि पर कभी भी दखल में नहीं थे. न ही वर्तमान में क्रेता दखलकार है. जो प्रतिनिधिमंडल आयुक्त कार्यालय आएंगे, उसके लिए सात लोगों का चयन हुआ है, जिसमें निरंजन महतो, चुनीलाल मुंडा, जगन्नाथ महतो, कलेश्वर महतो, मंगल सिंह मुंडा, सुखराम मुंडा और एस मुंडा शामिल है.
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कैसे हुई जमीन की बिक्री : खरीददार खेवटदार के द्वारा उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर जमीन को खरीदा है. खेवटदार हरिदास मांझी के पुत्रों ने जमीन को अपना बताते हुए बेचा है. जबकि,1955-56 में जमींदारी प्रथा खत्म होने के साथ ही खेवटदार भी खत्म हो गये. अब सारा काम खतियानी के आधार पर हो रहा है.
ऐसे हुआ एकड़ों जमीन का फर्जीवाड़ा
जमीन बेचने के लिये तमाम तरह के हथकंडे अपनाये गये थे. अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से 1457 एकड़ जमीन का नया दस्तावेज बनाया गया और दूसरी जमाबंदी खोल दी गयी. यही नहीं, इलाकेदार पंजी भी बनायी गयी. उसी के आधार पर पंजी टू में ऑनलाइन तरीके से नाम चढ़ा दिया गया.
कुर्सीनामा बनाकर नये सिरे से कर दी गयी जमाबंदी
अफसरों की मिलीभगत से दलालों ने नये सिरे से कुर्सीनामा बनाकर जमीन को बेच दिया. ये काम 17 लोगों ने मिलकर किया.दलालों ने गैरमजरुआ आम, गैरमजरुआ खास और वन भूमि की जमीन को रैयती जमीन बताया. पारिवारिक कुर्सीनामा बनाया. उसमें दिखाया कि किन-किन परिवारों की यह जमीन है. फिर विश्वेश्वर मांझी और अन्य 17 लोगों द्वारा जमीन की को बेच दिया