सोहराय पर्व पर लिखे गये पोस्ट से आदिवासी संगठनों ने दी थी सामाजिक बहिष्कार की चेतावनी
न्यूज11 भारत
रांची: गोड्डा कालेज की प्रोफेसर रजनी मुर्मू ने एक बार फिर फेसबुक पोस्ट के जरिये यह कहा है कि कुछ लोग एक महिला की नौकरी के पीछे पड़े हैं. उन्होंने लिखा है कि मैंने सोहराय पर्व की कुरीतियों के बारे में पोस्ट में लिखा था, जिसका लोगों ने गलत मतलब निकाला और कुछ संगठनों ने मेरे सामाजिक बहिष्कार तक की बात करते हुए मेरे खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी. उन्होंने कहा है कि मैंने जिस मामले में पोस्ट लिख कर लोगों को सच्चाई से वाकिफ कराने की कोशिश की थी, वह अब हल्के भयभीत मोड़ लेने लगा है. यह झूठ होगा यदि मैं कहूं कि मुझे इसका अंदेशा नहीं था.
बचपन से गलत के खिलाफ खड़ी रही हूं
एक महिला होने के कारण उत्पीड़न और ऑब्जेक्टिफिकेशन इतने करीब से देखा है कि बचपन से खुद से यही सवाल करती आई हूं कि 'क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहूंगी?'. आपके पास बोलने का अवसर और मंच है और आप सुविधाजनक चुप्पी चुनें या तारीफ के कसीदे पढ़ें, बजाय इसके कि आप बदलाव हेतु सामाजिक समस्याओं की तरफ ध्यान आकृष्ट कराएँ तो आप एक हिपोक्रिट से बढ़ कर और क्या हैं?
समाज का ट्रेंड है कि महिलाओं के मुखर होने पर लोग टेप लगा देते हैं
हम जिस समाज में रहते हैं उसका ट्रेंड यही है कि यदि उसकी खामियों और खास कर लड़कियों/औरतों की समस्याओं पर मुखर होकर बात की जाए तो लोग बोलने वाले मुँह पर कैसे भी एक टेप चढ़ा देना चाहते हैं. वह टेप कभी उसके सामाजिक बहिष्कार के रूप में तो कभी आर्थिक बहिष्कार के रूप में सामने आता है. इसी कड़ी का नवीन उदाहरण है कॉलेज में छात्रों द्वारा मेरे निलंबन की माँग करना.
बोलती महिलाएं समाज को अच्छी नहीं लगती
बोलती महिला तक समाज को कभी भी अच्छी नहीं लगती. सवाल करती, जवाबदेही मांगती महिला पर अंकुश लगाना कोई विस्मय की बात नहीं है. मैंने बहुत सोच-समझ कर, दृढ़ संकल्प हो कर त्योहार के नाम पर होती अभद्रता के विषय में लिखने का फैसला लिया था. मुझे हल्का भान इस बात का भी था कि तादाद में लोग मेरी बात नहीं मानेंगे क्योंकि उत्पीड़क को क्लीन-चिट देने की आदत जो लग गई है. लेकिन यह याद रखा जाए कि प्रमाण की अनुपस्थिति, अनुपस्थिति का प्रमाण नहीं होता.
मैंने पर्व त्योहार की छवि खराब नहीं की, उसे सुरक्षित बनाने की मांग की
लोग कह रहे हैं मैं सोहराय जैसे पुनीत त्योहार की छवि खराब करने की कोशिश कर रही हूं. जबकि मैं अपने समुदाय और उसके पर्वों की हितैषी के रूप में उसे और सुरक्षित व मजबूत बनाने की माँग कर रही हूं. इस विषय में छात्र नेताओं का बात न करना और तिलमिला जाना यह बताता है कि वे अपने त्योहार का सम्मान नहीं करते और उसमें व्याप्त कुरीतियों का उन्मूलन नहीं चाहते. कोई भी व्यवस्था आदर्श नहीं होती और उसमें हमेशा बेहतरी की गुंजाइश होती है.
उत्पीड़न के खिलाफ लोग हों एकजुट
कई लोग मेरे पक्ष में भी लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, मुझे मेसेज कर रहे हैं. मुझे खुशी है कि मैंने उन्हें वह प्रेरणा और स्पेस प्रदान किया कि जहाँ से वे भी अपनी दुविधाओं के बारे में बात कर सकें. मुझे गाहे-बगाहे तनिक डर भी लगता है पर आपका साथ मुझे बल देता है. जो भी यह पोस्ट पढ़ रहे हों उनसे अपील है कि सच के लिए और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट हों. एक महिला की नौकरी छीनने की साजिश के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करें. दिनकर की पंक्ति के माध्यम से यही कहूंगी कि "जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनके भी अपराध". अब मेरी जीत और हार सिर्फ मेरी नहीं होगी.