पर्यावरण की असंतुलन का ही परिणाम है कि अब जंगली जानवरों गाँव/शहर में विचरण को मजबूर हो रहे है: डॉ रंजीत दास
प्रशांत शर्मा/न्यूज़11 भारत
हजारीबाग/डेस्क:-आज पूरे विश्व में पृथ्वी दिवस मनाया जा रहा पृथ्वी दिवस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए बड़कागांव निवासी मार्खम कॉलेज ऑफ कॉमर्स हजारीबाग के भूगोल विभाग के सहायक असिस्टेंट प्रो. डॉ. रंजीत कुमार दास ने कहा कि पृथ्वी दिवस को हर साल जलवायु परिवर्तन संकट के प्रति जागरूकता फैलाने के तौर पर मनाया जाता हैयह दिन प्रदूषण और वनों की कटाई जैसी समस्याओं को जोड़ने और उन पर चर्चा के लिए लोगों को एकजुट करने का अवसर है कंपनी के आगमन से बड़कागाँव की धरती खतरे में हैयहां की जल ,जंगल व जमीन पर खतरा मंडरा रहा हैयहां प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तेजी से बढ़ रहा हैइस असंतुलन के कारण वह दिन अब दूर नहीं है ,जब प्रखंड में रहने का कोई सुरक्षित स्थान नहीं बचेगापर्यावरण की असंतुलन का ही परिणाम है कि अब जंगली जानवरों गाँव/शहर में विचरण को मजबूर हो रहे है.
शिक्षक सह वन समिति सदस्य कैलेश्वर कुमार ने कहा जहां एक ओर आज लोगों ने विश्व पृथ्वी दिवस मना रहे हैं वहीं कई क्षेत्रों में जल जंगल जमीन को कल कारखानों खुले जाने के कारण पेड़ पौधे को नष्ट पहुंचा चुके हैं पृथ्वी हमारी माता है, जो हमें हमारे जीवन के लिए आवश्यक सभी वस्तुएं देती है इसलिए, हम इसकी प्राकृतिक गुणवत्ता और हरे-भरे वातावरण को बनाए रखने के लिए भी जिम्मेदार है हमें छोटे लाभों के लिए इसके प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद और प्रदूषित नहीं करना चाहिए.
इतिहास के शिक्षक संजय सागर ने कहा कि कोई भी यह नहीं सोचता की हम जहां रह रहे हैं, जहां हमें जीवित रहने के लिए वायु मिल रही है, पीने के लिए जल मिल रहा है, खाने के लिए भोजन मिल रहा है जो पृथ्वी हमें इतना कुछ प्रदान कर रही है फिर भी हम दम जंगल को बचा नहीं पा रहे हैं कई बार महुआ छूने वाले लोगों ने जंगल में आग लगा दिया हम एवं हमारे वन समिति के सदस्यों ने दिन रात मेहनत कर जंगलों को आग बुझाने में अपने जान जोखिम पर डाल दिए बदले में हम उसे क्या दे रहें हैं, केवल एक असहनीय पीड़ा.
बीएम मेमोरियल स्कूल के निर्देशक संदीप कुशवाह ने कहा कि हमें वनीकरण और पुनःवृक्षारोपण के माध्यम से जंगलों को बढ़ाना चाहिए हजारों प्रजातियाँ और पक्षियों के आवासों के नष्ट होने के कारण विलुप्त हो गई हैं वे प्रकृति में भोजन श्रृंखला को सन्तुलित करने के लिए बहुत आवश्यक है हमारे वातावरण में वनों के उन्मूलन, औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, और प्रदूषण के परिणामस्वरुप निरंतर गिरावट आ रही है.
कौटिल्य महिला महाविद्यालय के प्राचार्य अवध कुमार मेहता ने कहा कि पृथ्वी पर हमे उपहार स्वरूप लाखों प्रजातियां मिली है, जिन्हें हम जानते और प्यार करते है आपको यह जानकार आश्चर्य भी होगा की हम अब तक इनमें से कई प्रजातियों को जान पाने में असक्षम भी रहे है हमारे बड़कागांव में कंपनियों को आने पर उत्पन्न प्राकृतिक असंतुलन और प्रदूषण से अब तक कई प्रजातियां विलुप्त भी हो चुकी है इस समस्या से निपटने के लिए कोई भी मुद्दा नही बनाया गया है, और लाखों प्रजातियों के विलुप्त होने की दर और इसके कारण और परिणामों के संदर्भ में लोगों को जागरूक होने की आवश्यकता है.
सांढ़ गांव निवासी अंजू कुमारी ने का कहना है की कभी यह सोचा है कि, ऐसा क्यों हो रहा है यदि कभी इस विषय पर सोचा जाये , तब हमे पता चलेगा की बदलते वक्त के साथ हमने खुद को इतना बदल दिया है कि, हम एक पल पीछे पलट कर देखे तो पता चलेगा कि, हमने तो अपनों को ही खो दिया है या यह भी कहा जा सकता है कि, पृथ्वी को प्रदूषण फैला कर हमने स्वयं को खो दिया है तो भी, अतिश्योक्ति ना होगी.