प्रशांत शर्मा/न्यूज11 भारत
हजारीबाग/डेस्क: हजारीबाग का गौरवशाली धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील होता जा रही है. जी हां, आज हम बात कर रहे कभी रामगढ़ राज की राजधानी रहे पदमा किला की है. पदमा किला राजा राम नारायण सिंह के वंशजों को आखिरी धरोहर है. जो धीरे-धीरे अपना अस्तित्व खो रहा है. आज भी इस किले को देखने दूर-दूर से लोग आते हैं, मगर अब यह गौरवशाली अतीत झाड़ियों के बीच अपने-अपने किस्मत पर खून के आंसू रो रहा है. इस गौरवशाली अतीत को सहेज कर रखने की फिकर ना तो अब के तथाकथित राजा सौरभ नारायण सिंह को है और न ही झारखंड के "राजा" मुख्यमंत्री चंपई सरकार को. इस रजवाड़े में अब न तो पहले जैसी रौनक रही, ना ही पहले जैसी राजसी ठाठ, बस कुछ बची है तो पुरानी यादें. देख-रेख के अभाव में यह किला अब धीरे धीरे अपनी पहचान खोते जा रहा है.
यह किला जिला मुख्यालय से महज बाइस किलोमीटर दूरी पर है. कभी रामगढ़ राज की राजधानी रहा पदमा किला अब एक गांव के रूप में अपने गौरवशाली अतीत पर इतरा रहा है. कभी यहां इंपोर्टेड गाड़ियों की कतारें लगी होती थी और हाथी मुख्य द्वार पर आगंतुकों को आगवानी किया करते थे. अब किले में सन्नाटा पसरा रहता हैं. अभी के तथाकथित राजा सौरभ नारायण सिंह ने भी अब इस किले से अपनी दूरी बना ली हैं. उन्हे भी याद नहीं होगा की अंतिम बार कब वे अपने पूर्वजों की इस संपत्ति को देखने आए थे.
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस किले की नीव 1366 में रखी गई थी. स्थानीय लोग बताते की अभी के तथाकथित राजा सौरभ नारायण सिंह भी चुनाव हारने के बाद जनता से दूर हो गए हैं. विधायक रहते वो कभी-कभार किले को देखने आते रहते थे. मगर अब उन्होंने शहर ही छोड़ दिया है. लोग बताते हैं कि उनके पूर्वज जनता के काफी करीब थे, इस कारण राजतंत्र समाप्त होने के बाद भी प्रजा (जनता) ने इस परिवार को निर्वाचित जनप्रतिनिधि बनाया.
इस राज परिवार का राजनीति जीवन कामाख्या नारायण सिंह से शुरू हुआ. वे बिहार विधान सभा में चार बार विधायक रहे दो बार बगोदर और दो बार हजारीबाग सदर सीट का प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले 1947 में वे हजारीबाग जिला परिषद के पहले निर्वाचित चेयरमैन रहे और लगातार बारह वर्षों तक इस पद पर रहे.