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रांची/डेस्क: हाल ही में गुजरात के साबरकांठा डिस्ट्रिक्ट के रहने वाले बिजनेसमैन भावेश भाई भंडारी के साथ उनकी पत्नी ने संन्यास लेने का फैसला किया है. जानकारी दें, कि इससे 2 वर्ष पहले उनके 16 वर्षीय और 19 साल की बेटी ने भी दीक्षा लेने का निर्णय लिया था. भावेश के मुताबिक, उनका लक्ष्य संन्यास है, ना कि सांसारिक मोह. उनके अनुसार वे अब संयमित जीवन व्यतित करना चाहते है. उन्होंने अपने तकरीबन 200 करोड़ रुपये की संपत्ति दान में दी. उन्हें अहमदाबाद में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का कार्य छोड़कर दीक्षार्थी बनना पड़ा. इस पर नमी दिलीप गांधी ने कहा कि जैन समाज में दीक्षा का काफी महत्ता है.
जाने क्या हैं दीक्षा ?
बता दें, जो भी व्यक्ति दीक्षा लेते हैं उन्हें जीवन भर भिक्षा मांगकर अपना गुजरा करना होता है. जिसका यह मतलब हुआ की जो व्यक्ति की दीक्षा लेते हैं उन्हें सहनों-शौहक्त छोड़ यानी कि आरामदायक जिंदगी का त्याग करना होता है. इसके साथ ही उन्हें पूरे भारत का नंगे पांव भ्रमण करना होता है. इस राह पर गुजरात के बिजनेसमैन भावेश भाई भंडारी ने पत्नी के साथ सांसरिक सुखों को छोड़कर संयम के पथ पर चलने की ठान ली है. इसके साथ अपनी 200 करोड़ की संपत्ति दान कर दी है. बता दें, उनका बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम है.
जैन समाज में दीक्षा का महत्व
बता दें, जैन समाज में दीक्षा का बहुत महत्व हैं, जिसमें भिक्षा मांगकर जीवन को गुजारना होता है. दीक्षा लेना हर किसी के बस की बात नहीं है, यह सबसे कठिन तपस्या है. दीक्षा लेने के बाद व्यक्ति को भिक्षा मांगकर जीवन का गुजारा करना पड़ता है. दीक्षा के बाद साधु नंगे पैर घूमते है. उन्होंने विलासिता छोड़ दी है. 22 अप्रैल को गुजरात के हिम्मतनगर में 35 लोग एक साथ दीक्षा लेंगे. जिसमें भंडारी परिवार भी शिरकत है.