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Navratri 2021: शारदीय नवरात्र का आज छठा दिन है, इस दिन मां दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी की पूजा होती है. कहा जाता है, महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार मां कात्यायनी का उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म हुआ था. महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की थी, इसलिए ये कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध हुईं. मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी है. मान्यता यह भी है कि मां दुर्गा, देवताओं और ऋषियों के कार्यों को सिद्ध करने के लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में प्रकट हुईं थीं. आज ही संध्याबेला में सभी पूजा पंडालों में बेलवरण कर माता का आह्वान किया जाएगा.
माता कात्यायनी का स्वरूप
माता कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त ही दिव्य है. इनका वर्ण स्वर्ण के समान चमकीला है. इनकी चार भुजायें हैं, इनके दाहिना ऊपर के हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ वरदमुद्रा में है. बांये ऊपर वाले हाथ में तलवार और निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका वाहन सिंह है. आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है. योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है. इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है. पूर्ण आत्मदान करने से साधक को सहजरूप से मां के दर्शन हो जाते हैं. मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
मां कात्यायनी की पूजा विधि और भोग
• अच्छे से स्नान करके लाल या पीले रंग का वस्त्र पहने.
• इसके बाद घर के पूजा स्थान पर देवी कात्यायनी की प्रतिमा स्थापित करें.
• गंगाजल से छिड़काव कर शुद्धिकरण करें.
• अब मां की प्रतिमा के आगे दिया रखें और हाथों में फूल लेकर मां को प्रणाम करके उनका ध्यान करें.
• इसके बाद उन्हें पीले फूल, कच्ची हल्दी की गांठ और शहद अर्पित करें.
• धूप-दीपक से मां की आरती करें उसके बाद प्रसाद वितरित करें.
मां को शहद का भोग प्रिय है. षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है. इस दिन प्रसाद में मधु यानि कि शहद का प्रयोग करना चाहिए. इसके प्रभाव से साधक सुंदर रूप प्राप्त करता है. साधक के विवाह की अड़चने मां दूर करती हैं.
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मां कात्यायनी स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
माता कात्यायनी का ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
मां कात्यायनी का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवल।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
मां कात्यायनी बीज मंत्र
क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नम:.
मां को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं. जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए.