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सिमडेगा: मानव तस्करी यानी मनुष्य का सौदा समाज पर एक कलंक है. कई सरकारी तंत्र और निजी संस्थान आज मानव तस्करी को रोकने का प्रयास कर रही है. बावजूद इसके आज भी सिमडेगा में धड़ल्ले से मानव तस्करी का कारोबार फल-फुल रहा है. मानव तस्करों के दलाल सिमडेगा जैसे आदिवासी बहुल जिलों में आज भी काफी तादात में सक्रिय है. जो जोंक की तरह चिपक कर यहां की भोली-भाली बच्चियों को बहला कर ले जाते है, और इनका सौदा महानगरों और खाड़ी देशो में कर देते है.
आदिवासी बहुल सिमडेगा जिला वर्तमान समय में मानव तस्करों के चंगुल में पूरी तरह से फंसा हुआ है. यहां के ग्रामीण इलाको में गरीबी और अशिक्षा इस कदर हावी है कि मानव तस्करों के दलाल यहां की बच्चियों और बच्चों को महानगरों के सब्जबाग दिखाते हैं, फिर वे इन्हें बहला-फुसलाकर महानगरों में काम दिलाने और पैसों की लालच देकर बेच देते हैं. जहां इन बच्चों का शोषण किया जाता है. सिमडेगा में आये दिन ऐसी घटनाये देखने को मिलती है. आकड़ों के अनुसार प्रत्येक वर्ष जिला से 500 से 1000 तक बच्चियों को मानव तस्कर अपने सब्जबाग में फांसाकर महानगरों के हवाले कर देते हैं. मानव तस्करी के खिलाफ आंदोलनरत JMM नेता नील जस्टीन बेक की माने तो यहां की लड़कियों को खाड़ी देशों तक बेचा जा रहा है. जहां इनसे वेश्यावृति तक करायी जा रही है. इनका कहना है कि सिमडेगा में गहराती इस समस्या के लिए सिर्फ सरकारी तंत्र ही जिम्मेदार है.
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सिमडेगा की बच्चियां लगातार पलायन की शिकार हो रही है. आज ये निश्चित तौर पर एक चिंता का विषय बनता जा रहा है. पलायन के खिलाफ काम कर रहे बाल कल्याण समिति का भी मानना है कि सिमडेगा से काफी संख्या में मानव तस्करी हो रही है. यहां की आदिवासी बच्चियों को बाहर ले जाकर बेचने का मामला अक्सर सामने आता है. बाल कल्याण समिति यहां से बच्चियों के पलायन को रोकने के लिए कामकर बच्चियों के पूर्णवास का काम कर रही है.
मानव तस्करी रोकने के लिए जागरूकता के साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो तो शायद सिमडेगा जैसी आदिवासी बहुल क्षेत्रों की बेटियां महानगरों में बिकने से बच जाएगी. बता दें, संयुक्त राष्ट्र ने 2003 को विश्व मानव तस्करी निरोधी दिवस 30 जुलाई को मनाने की घोषणा की थी. जिससे लोगों के बीच मानव तस्करी से पीड़ित लोगों के अधिकारों का संवर्धन और सरंक्षण को लेकर जागरूकता पैदा की जा सकें.
मानव तस्करी सिर्फ सिमडेगा ही नहीं बल्कि दुनियाभर में एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है. यह एक ऐसा अपराध है जिसमें लोगों को उनके शोषण के लिये खरीदा और बेचा जाता है. मानव तस्करी एक घृणित अपराध है जोकि असमानता, अस्थिरता और संघर्ष के कारण फलता-फूलता है. मानव तस्कर मनुष्य की आशाओं और आकांक्षाओं का लाभ उठाते हैं. वे कमजोर पर घात लगाते हैं और फिर उनके मूलभूत अधिकारों का हरण कर लेते हैं. बच्चे और युवा, प्रवासी और शरणार्थी खास तौर से इसके प्रभाव में आ जाते हैं. महिलाओं और लड़कियों को बार-बार शिकार बनाया जाता है. उनका यौन शोषण होता है, उनसे जबरन वेश्यावृत्ति, यौन दासता कराई जाती है, उनकी जबरन शादियां करा दी जाती हैं. मानव अंगों का भयावह व्यापार भी होता है. मानव तस्करी के कई प्रकार हैं और यह सीमाओं से परे है. तस्करों को अक्सर सजा का कोई डर नहीं होता क्योंकि इस अपराध की तरफ पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता. यह रवैया बदलने की जरूरत है.
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मावनता को शर्मसार कर देने वाली मानव तस्करी सभ्य समाज के माथे पर बदनुमा दाग है और भारत में मानव तस्करी को लेकर पिछले दिनों अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट ट्रैफिकिंग इन पर्संस रिपोर्ट-2020 में भारत को गत वर्ष की भांति टियर-2 श्रेणी में रखा गया. रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ने 2019 में मानव तस्करी जैसी बुराई को मिटाने के लिए प्रयास तो किए लेकिन इसे रोकने से जुड़े न्यूनतम मानक हासिल नहीं किए जा सके. रिपोर्ट के अनुसार, भारत आज भी वर्ल्ड ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मानचित्र पर एक अहम ठिकाना बना हुआ है. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि माओवादी समूहों ने हथियार और आईईडी को संभालने के लिए छत्तीसगढ़, झारखंड इत्यादि में 12 वर्ष तक के कम उम्र बच्चों को जबरन भर्ती किया और मानव ढ़ाल के तौर पर भी उनका इस्तेमाल किया गया. यही नहीं, माओवादी समूहों से जुड़ी रही महिलाओं और लड़कियों के साथ माओवादी शिविरों में यौन हिंसा भी की जाती थी. सरकार विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए जम्मू-कश्मीर में भी सशस्त्र समूह 14 वर्ष तक के कम उम्र किशोरों की लगातार भर्ती और उनका इस्तेमाल करते रहे हैं.
कोरोना संक्रमण काल में तो मानव तस्करी को लेकर स्थिति और बदतर हुई है. सीमा पार से भी मानव तस्करी की घटनाएं इन दिनों बढ़ी हैं, जिसे देखते हुए हाल ही में बीएसएफ द्वारा ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अलर्ट जारी किया गया है. बीएसएफ अधिकारियों का कहना है कि कोलकाता, गुवाहाटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ शहरों और दिल्ली तथा मुंबई जैसे शहरों में नौकरी दिलाने का लालच देकर गरीबों और जरूरतमंद लोगों को सीमा पार से लाने के लिए तस्करों ने कुछ नए तरीकों पर ध्यान केन्द्रित किया है. दरअसल कोरोना संक्रमण काल में रोजगार छिन जाने के चलते लोगों को लालच देकर सीमा पार से तस्करी के माध्यम से लाने के प्रयास किए जा रहे हैं. असम, बिहार इत्यादि बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी मानव तस्कर सक्रिय हो रहे हैं. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के रिपोर्ट के मुताबिक, महिला और बाल विकास मंत्रालय को महामारी के दौरान 27 लाख शिकायतें फोन कॉल के द्वारा प्राप्त हुए, जिनमें से 1.92 लाख मामलों में कार्रवाई की गई. इन कार्रवाईयों में करीब 32,700 मानव तस्करी के थे. इसके अलावा बाल विवाह, यौन शोषण, भावनात्मक शोषण, जबरन भीख मंगवाना और साइबर अपराधों के मामले थे. एनएचआरसी ने अपने पहले के परामर्श में राज्यों को गांवों से बाहर जाने वाले प्रवासियों का विवरण दर्ज करने और तस्करी के मामलों को रोकने का निर्देश दिया था.
झारखंड में मानव तस्करी के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई की जा रही है. कुछ दिन पहले राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सभी जिलों के उपायुक्त को मानव तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.