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रांची: यूं तो छोटे मोटे झगड़े हर पिरवार की कहानी है लेकिन जब ये मनमुटाव रिश्तों में दरार लाने लगें तो क्या किया जाए. ऐसा ही एक मामला जालंधर से आ रहा जहां एक पत्नि ने अपने पति के साथ जाने से सिर्फ इस लिए इनकार कर दिया क्योंकि पत्नि को अपने पति के माता पिता से अलग रहने की जिद थी.
पत्नि की इस जिद में उसके माता पिता भी उसका साथ देते हुए पाए गए. इसे देखते हुए कोर्ट ने हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी ही थी जिसने वैवाहिक घर छोड़ दिया. इसके बावजूद पति अपने बच्चे के जन्म के बाद उपहार, मिठाई, कपड़े आदि के साथ जालंधर जिले के हजारा गांव गया और अपनी पत्नी के माता-पिता से अनुरोध किया कि वे उसे अपने साथ ले जाने दें.
लेकिन माता-पिता ने अपनी बेटी के लिए एक अलग निवास पर जोर दिया और यह स्पष्ट कर दिया कि केवल तभी वह और बच्चा उसके साथ जाएगा. बता दें महिला अपने पति को अपने माता-पिता से अलग रहने के लिए मजबूर करती थी, पति ने ऐसा करने से इनकार किया तो उसने उसे छोड़ अपने मायके आ गई.
पति ने तलाक के लिए जालंधर की एक पारिवारिक अदालत में याचिका दायर की थी जिसे कोर्ट ने मंजूर कर शादी तोड़ने की अनुमती दी गई थी. 15 अक्टूबर, 2015 के उस आदेश को चुनौती देने के लिए महिला ने पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में याचिक दायर की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.
तलाक के फैसले को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति रितु बाहरी और न्यायमूर्ति मनीषा बत्रा की खंडपीठ ने कहा पति रिकॉर्ड पर यह साबित करने में सक्षम है कि पत्नी उसे अपने माता-पिता से अलग रहने के लिए लगातार परेशान कर रही थी और जालंधर में अपना क्लीनिक खोलने के लिए जोर दे रही थी, जहां उसके माता-पिता रहते हैं.
जानिए क्या है मामला
इन दोनों की शादी नवंबर 1990 में ऊना में हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक हुई थी. शादी के बाद दोनों साथ रहने लगे लेकिन महिला ने संयुक्त परिवार में रहने से इनकार कर दिया.वह नहीं चाहती थी कि उसका पति हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के ओयल गांव में अपनी चिकित्सा पद्धति शुरू करे, जहां उसका परिवार रहता था.
जनवरी 1992 में गर्भवती होने पर महिला ने अपने पति को छोड़ दिया. उसने पंजाब के जालंधर जिले में अपने माता-पिता के पैतृक गांव हजारा में एक लड़के को जन्म दिया. वह आदमी और उसका परिवार उपहार, मिठाई, कपड़े आदि के साथ हजारा गए और अपने ससुराल वालों से उसे अपने साथ जाने देने का अनुरोध किया.
हालांकि, उसके माता-पिता ने एक अलग निवास की शर्त पर जोर दिया. 1996 में, एक पारिवारिक समझौते के बाद, महिला अपने पति के साथ अपने बेटे के साथ रहने के लिए तैयार हो गई, लेकिन अपने माता-पिता से अलग रहने की अपनी पुरानी मांग के लिए दबाव बनाने लगी.
गुजारा भत्ता के रूप में 15 लाख रुपये देने का आदेश
दोनों पक्षों की जांच करने के बाद, खंडपीठ ने पाया कि दंपत्ति के बीच विवाह असाध्य रूप से टूट गया था और उनके एक साथ आने या फिर साथ रहने का कोई मौका नहीं था.
अदालत ने यह भी देखा कि महिला ने घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 से महिला संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसे अपीलकर्ता पत्नी की गैर-उपस्थिति के कारण खारिज कर दिया गया था.
पत्नी की अपील को खारिज करते हुए, हाईकोर्ट ने जालंधर परिवार अदालत द्वारा दिए गए तलाक को बरकरार रखा, लेकिन पति को अपनी पूर्व पत्नी को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 15 लाख रुपये देने का आदेश दिया.