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राजनीति


सर्वोच्चय न्यायालय की गाइडलाइन की अनदेखी बेची गई ट्रस्ट की संपत्ति : मरांडी

सीएम से गुहार : भू-माफियाओं के सामने कमजोर पड़ गया ट्रस्ट, गलत करने वालों को भेंजे जेल
सर्वोच्चय न्यायालय की गाइडलाइन की अनदेखी बेची गई ट्रस्ट की संपत्ति : मरांडी
न्यूज 11 भारत,

रांची : प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सह बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखा है. जिसमें उन्होंने कहा है कि चारुशिला ट्रस्ट, देवघर (वर्तमान झारखंड) सार्वजनिक महत्व का एक ट्रस्ट है. जिसने अपने सभी कार्यों और स्वामित्व वाली होल्डिंग्स के साथ सार्वजनिक है. सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1959 में ट्रस्टियों की इच्छा के साथ उक्त ट्रस्ट को एक सार्वजनिक ट्रस्ट बताया था. वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रस्ट की भूमि पर एक अस्पताल बनाने और भूमि के उपयोग करने की घोषणा की थी.  कुछ ही दिनों के बाद चारुशिला ट्रस्ट अव्यवस्था का शिकार बन गया.  ट्रस्ट प्रबंधन नेतृत्व की कमी की वजह से प्रभावित हो गया. जिससे इसके मालिकाना हक स्थानीय भू-माफियाओं के लिए कमजोर हो गए.

 

बाबूलाल मरांडी ने बताया है कि चारुशिला ट्रस्ट को वर्ष 1987 में भंग कर दिया गया था. और श्री मित्रा को पश्चिम बंगाल के माननीय उच्च न्यायालय द्वारा रिसीवर के रूप में नियुक्त किया गया था. आगे प्रमाणित किया गया है कि उपर्युक्त ट्रस्ट के एक कथित ट्रस्टी देवी प्रसन्ना घोष की चार बेटियां थीं. जिन्होंने चारु निवास (ट्रस्ट की संपत्ति का हिस्सा) को वर्ष 2004 में आलोक कुमार सतनालीवाला को बेच दिया था. यह कहा गया कि लेन-देन घोर अवैध था. और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के 1959 के फैसले के विपरीत था. पिनाकी घोष को 06/09/2017 को ट्रस्ट के रिसीवर के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 18/09/2004 को निष्पादित बिक्री विलेख और सतनालीवाला के पक्ष में ट्रस्ट की संपत्ति के अन्य सभी बिक्री कार्यों पर तुरंत हस्ताक्षर किए जाने पर आपत्ति जताई थी. पिनाकी घोष ने 2020 और 2022 में ट्रस्ट में अनियमितताओं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कई विधानों और निर्णयों की घोर अवहेलना करने में प्रशासन की स्पष्ट मिलीभगत को लेकर विस्तृत शिकायतें की थीं. लेकिन उक्त शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.

 

पत्र में आगे बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि ट्रस्टी के रूप में कार्य करने वाले व्यक्तियों के 'धोखाधड़ी' कार्यों में प्राथमिक मुद्दा जिला प्रशासन की मिलीभगत से उन भूमियों को एलपीसी जारी करना था, जिन्हें माननीय न्यायालयों द्वारा बेचे जाने से रोक दिया गया था. जिला प्रशासन की यह कार्रवाई विभिन्न इच्छुक पार्टियों द्वारा एक सार्वजनिक विश्वास को लाभ पहुंचाने के लिए एक आपराधिक साजिश के साथ भ्रष्टाचार और मिलीभगत की बू आती है. वर्ष 2021 में, देवघर के जिला प्रशासन (जिला कलेक्टर देवघर के माध्यम से), जिसने पहले ही 2020 और 2021 में सतनालीवाला परिवार को पब्लिक ट्रस्ट की जमीन बेचने में मदद की थी. कथित रूप से आर्थिक लाभ के लिए साजिश का एक और गंभीर मामला किया.

 


 

संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी एक्ट) के तहत संरक्षित एक आठ एकड़ भूमि वर्ष 2021 में सतनालीवाला परिवार को बेची गई थी. जनकपुर मौजा में उक्त भूमि का टुकड़ा बिक्री योग्य नहीं था और सीओ और एसडीओ देवघर ने उनकी परियोजना का अनुमान लगाया था. जिलाधिकारी को आपत्ति हालांकि, इन एलडी के आपत्तियों के बावजूद वरिष्ठ अधिकारियों, जिला कलेक्टर ने सरासर लापरवाही और अवमानना के एक मामले में, सतनालीवाला परिवार को भूमि के उक्त टुकड़े को खरीदने के लिए उनकी खोज में सहायता करने के लिए एलपीसी प्रदान किया. 

 

मरांडी ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के कई कानूनों और निर्णयों के उल्लंघन में हुए इस भूमि घोटाले में सभी खिलाड़ियों को निर्धारित करने के लिए घोर लापरवाही या आर्थिक रूप से लाभ के लिए आपराधिक साजिश के उपर्युक्त मामलों की जांच की जानी चाहिए. एक सिविल सेवक को एक तटस्थ व्यक्ति माना जाता है, जिसे पक्षपात या अवसरवाद के बिना कानूनों, निर्देशों और निर्णयों को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है. यह मामला उन सभी बातों को खारिज करता है जिनके लिए एक सिविल सेवक खड़ा होता है. एक सिविल सेवक में समाज के भरोसे को हिला देने की क्षमता होती है. मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि 'भूमि घोटाले' में शामिल सभी व्यक्तियों को कड़ी से कड़ी सजा दें और समाज पर इसके व्यापक प्रभाव के संदर्भ में उन्हें दंडित करें.
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