अदिति सिन्हा, न्यूज 11 भारत
रांची : ‘पलक झपकते ही’. इस मुहावरे का उपयोग तब किया जाता है, जब हम कहना चाहते हैं कि कोई चीज़ अत्यन्त कम समय में घटित हुई. लगभग उतनी तेज़ी से जितनी तेज़ी से हम पलकें झपकाते हैं. हमारी पलकों को झपकने में सेकण्ड का एक अंश मात्र लगता है. आप सोच कर देखिए कि आप 40 सेकेंड से ज्यादा अपनी आंख को खोल रख सकते हैं या नहीं, आंख में एक छोटासा तिनका जाने मात्र से ही हमारी आंख जलने लगती है. आंख से पानी को रोकने के लिए हम पलक झपकाते हैं, लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि बिना पलक झपकाए एक इंसान कैसे रह सकता है. हां एक इंसान ऐसा भी है, जिसने 25 साल से अपनी आंखें बंद ही नहीं की है. आंख के पलक पूरी तरह बंद नहीं होते. पकले हिलती है, मगर आंख की पुतलियां देखते रहती हैं. यह इंसान झारखंड की राजधानी रांची में है. जिनकी आंखों की पलकें एक इंजेक्शन के रिएक्शन से बंद होने की क्षमता को खो दिया. वर्षों से खुली आंखें अब पलकों की छांव में जाना चाहती है, पलकों से पूरी तरह ढकना चाहती है. डॉक्टर कह रह है कि इलाज असंभव नहीं है, मगर यह बीमारी सामान्य भी नहीं है.
1996 से नहीं बंद की अपनी आंखें, जाने कौन है अमर वर्मा
अमर वर्मा, जिन्होंने 1996 से आज तक अपनी दोनों आंखों को बंद ही नहीं किया. ये कोई अजूबा नहीं है. और ना ही कोई कला. जब हम रोते हैं या आंखों में तेज हवा लगती है, गाड़ी-बाइक पर चलते समय अक्सर आंखों से आंसू, या कहें तो पानी निकलने लगता है. तभी अनायास नहीं चाहते हुए भी हमारी पलके आंखों को पूरी तरह ढक देती है. तभी हम अपनी आंखों को बन्द कर लेते हैं. कहने का मतलब है कि हम पलकों का उपयोग अपनी आंखों की सुरक्षा के लिए करते हैं, लेकिन अमर वर्मा के पास तो अपने आंसू को रोकने की भी ताकत नहीं है. अमर वर्मा की पलके पूर तरह बंद नहीं होती. वह आंखों को पूरी तरह ढक नहीं पाती. पलकों में हलचल देखने को मिलती है, मगर आंखें खुली की खुली रह जाती है.
कई डॉक्टरों से इलाज कराया, मगर कोई फायदा
अमर वर्मा के जीवन में एक ऐसा समय आया, जब उनका बायां पैर खराब हो गया था. और रिम्स अस्पताल में अपना इलाज करवाने गए. उसी दौरान उन्हें एक इंजेक्शन दिया गया. उस इंजेक्शन का रिएक्शन हो गया. जिस वजह से उनके साथ एक ऐसी घटना हुई कि पलकों ने आंखों का साथ छोड़ दिया. उसी समय से पलक में थोड़ी हरक्कत दिखती है, मगर पलके पूरी तरह झपकती नहीं. आंखों को पूरी तरह ढक नहीं पाती. कई डॉक्टरों के पास चक्कर लगाए, लेकिन आज तक इसका इलाज नहीं हुआ. डॉक्टरों ने दवाईया खिलाई, आंखों में दवाईयां डलवाई, मगर कोई फायदा नहीं हुआ.
जाने क्या कहते है आई स्पेशलिस्ट
आई स्पेशलिस्ट डॉक्टर हसमुद्दीन ने बताया कि अमर वर्मा पिछले करीबन 25 सालों से उनके पास आ रहा है. डॉक्टर उनको निशुल्क सेवा भी दे रहे हैं. अमर वर्मा को जॉनसन सिंड्रोन की बीमारी हो गई है. जॉनसन सिंड्रोम एक ऐसी बीमारी है, जब कोई दवा किसी शरीर में जाकर के रिएक्शन करता है, तो यह बीमारी आंख पर उभर आती है. जिसके कारण अमर के आंखों का कक क्रोनिया खराब हो गया है. डॉक्टर्स अपनी मेहनत पूरी कर रहे हैं. मगर अबतक सफलता नहीं मिल पाई है. ऐसा भी नहीं है कि इस बीमारी का इलाज नहीं है. इसी उम्मीद से से कोशिश जारी है. सभी चाहते हैं कि किसी तरीके से अशोक वर्मा ठीक हो जाए. उसकी आंखें पूरी तरह पलकों से बंद हो.
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डॉक्टर कश्यप के अनुसार हमारे आंख में कई नसें होती है, जो आंख खोलने और बंद करने का काम करती हैं और अमर वर्मा का आंख का नस दब गया है, जिसके कारण उनको जॉनसन सिंड्रोम की बीमारी हो गई है. उनका क्रोनिया खराब हो गया है. इसी नस दबने के कारण व आंख के पलक को झटका नहीं पाते हैं. अगर देखा जाए, तो इसमें कोई छोटा ऑपरेशन से भी वह ठीक हो सकते हैं या फिर बड़ा ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है.
पत्नी दूसरों के घर में काम कर पाल रही परिवार का पेट
अमर वर्मा का एक छोटा सा दुकान है. दो बेटियां और दो बेटे हैं. एक बेटी की शादी हो गई है. दूसरी बेटी अभी छोटी है. एक बेटा शादी के बाद परिवार को छोड़कर चला गया. छोटे बेटे से भी उम्मीद नहीं है. अमर वर्मा अपनी पत्नी के सहारे ही अब अपना जीवन काट रहे हैं. पत्नी दूसरों के घरों में जाकर झाडू-पोछा का काम करती है. उससे जो भी थोड़ा बहुत पैसा होता है, उसी से परिवार का पेट पल रहा है. पत्नी नीता देवी से बातचीत करने पर उन्होंने बताया जब से उनकी आंखें खराब हुई, तब से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कोई परेशानी नहीं है. दूसरे के हंसी का पात्र बनने से अच्छा है, दूसरों के घरों में जाकर काम करना. हमें सरकार से पैसा नहीं चाहिए, बस इनकी आंखें ठीक हो जाए, इलाज की ऐसी व्यवस्था करा दे.