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झारखंड ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के वार्षिक अधिवेशन का तीसरा दिन

विज्ञान और मस्ती भरे हैरी पॉटर थीम पर आधारित ग्लूकोमा सेशन को नेत्र चिकित्सकों ने काफी पसंद किया: डॉ भारती कश्यप
झारखंड ओफ्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी के वार्षिक अधिवेशन का तीसरा दिन
फ़लक शमीम/न्यूज़11 भारत

हजारीबाग/डेस्क: झारखण्ड ओफ्थाल्मोलॉजिकल सोसाइटी एवं हजारीबाग ओफ्थाल्मिक फोरम के संयुक्त तत्वधान में नेत्र रोग विशेषज्ञों के तीन दिवसीय 21वें वार्षिक सम्मेलन के तीसरे दिन तीन नवीनतम तकनीकी सत्र का आयोजन किया गया. 

तकनीकी सत्र के विवरण 

पहले सत्र में ऐसी बीमारियों पर चर्चा की गई जो वास्तविकता में कुछ और होती है पर दिखती कुछ और है. ऐसी बिमारियों के पहचान में काफी परेशानी आती है. तो किस तरह से ऐसी बीमरियों को पहचाना जाये इसको बताया गया. इस सत्र में डॉ. बिभूति कश्यप, डॉ. रीमा बंसल, डॉ. अभिषेक ओंकार, डॉ. मलय द्विवेदी और डॉ. स्वर्णिम ने अपने अपने प्रस्तुति दी. डॉ  कीर्ति  सिंह  डायरेक्टर  गुरुनानक  हॉस्पिटल, न्यू दिल्ली जो मस्ती भरे साइंटिफिक सेशन- हैरी पॉटर सत्र की रचयिता है,  उन्होंने बताया कि हैरी पॉटर एक लोकप्रिय पुस्तक श्रंखला है.  जिसमें अच्छे जादूगर (हैरी पॉटर और उसके दोस्त), क्रूर और मायावी जादूगर वोल्डमॉर्ट से लड़ते है. हैरी पॉटर 10 से 16 साल की उम्र तक इस जादूगर से लड़ता है और आख़िर में कामयाब हो जाता है. काला मोतिया (ग्लूकोमा) इस क्रूर जादूगर की तरह है जो आंखों की रोशनी छीन लेता है और डॉक्टर जो इससे अपनी पूरी ताक़त से लड़ रहे हैं वो हैरी पॉटर और उसके दोस्त है. तकनीकी उन्नति और निदान शक्ति, ऑपथैल्मोलॉजी साइन्स ने बहुत ऊंची चोटी तक पहुंचा दी है. इन सबकी सहायता लेकर, काला मोतिया से बचा जा सकता है. इस कोर्स में हैरी पॉटर के दोस्त विभिन्न उन्नति, जो ग्लूकोमा डायग्नोसिस और ट्रीटमेंट मे हुई है, उसका विवरण वीडियो के माध्यम से बताएंगे. 

प्रोफेसर कीर्ति सिंह, ग्लूकोमा के सन्दर्भ में पिछले 40 साल से इस बीमारी से पीड़ित मरीज़ो का इलाज कर रही हैं. वह हिन्दुस्तान के सुप्रसिद्ध मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं. इस कोर्स में उनके साथ कोलकाता, दिल्ली, रांची और मध्य प्रदेश के डॉक्टर भी भाग ले रहे हैं. इस मायावी क्रूर काला मोतिया यानि ग्लूकोमा का नाश किस-किस विभिन्न तरीक़ो से हो सकता है, वो इस कोर्स मे रोमांचक अद्भुत तरीक़ो से पढ़ाया जा रहा है. हर एक लेक्चर न्यूनतम साइंटिफिक आविष्कारो पर आधारित है. इस सत्र में डॉ. विनीता रामनानी, डॉ. कृति सिंह, डॉ. जे.एस. भल्ला, डॉ. मैत्रर्यी दास, डॉ. अनिदया अनुराधा, डॉ. राशी श्याम, डॉ. तनिषा ओझा ने हैरी पॉटर के अलग-अलग कैरेक्टर पर ग्लूकोमा की नयी-नयी ट्रीटमेंट पद्धति पर प्रकाश डाला.

साइंटिफिक कमिटी की चेयरपर्सन डॉ. भारती कश्यप ने बताया कि ग्लूकोमा यानी काला मोतिया क्या है? इस बीमारी में आंखों की नस (ऑपटिक नर्व) कमज़ोर हो जाती है. आंख का प्रेशर बढ़  जाने से और खून  के दौरे के कम होने से ऑपटिक नर्व मरने लगती है. यह बीमारी दो प्रकार की होती है, एक जिसमें आंख के पानी के निकालने का रास्ता छोटा हो जाता है (बंद कोण ग्लूकोमा). दूसरा जिसमें वह खुला रहने के बावजूद, सही तरीके से पानी का निकास नहीं कर पाता (खुला कोण ग्लूकोमा). इन दोनों प्रकार के ग्लूकोमा के अंतर को समझना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि इन दोनों का इलाज अलग होता है. खुला कोण ग्लूकोमा में दवाइयाँ काम करती है, जबकि बंद  एंगल मे लेज़र भी आवश्यक है. इसके लिए गोनियोस्कोपी की जांच बहुत जरूरी है. गोनियोस्कोपी क्या है? इसमे आंख के ऊपर एक छोटा सा यंत्र रख के, उसमे जड़ी शीशे के ज़रिए आंखों के अन्दर के पानी के बहाव का रास्ता देखा जाता है.

डॉ. कीर्ति सिंह ने बताया कि काला मोतिया के लिए क्या क्या जांच ज़रूरी हैं? 

 चार जांच ज़रूरी है, जैसे चारपाई का चार पाए. पहला – आंख का प्रेशर, दूसरा – आंख की ऑपटिक नर्व का चेक, तीसरा – गोनियोस्कोपी (ताकि पता चले के रास्ता खुला है या बंद), चौथा - नस के कमजोर होने से, विजुअल फील्ड (नज़र का दायरा) कितना कम हुआ है. ग्लूकोमा ज्यादातर वृद्धावस्था के समय  होता है और आमतौर पर यह 50 वर्ष की आयु के बाद होता है, लेकिन कुछ विशिष्ट स्थितियां हैं जिनमें  कम उम्र (<40 वर्ष) में भी विकसित हो सकता है. जैसे ज्यादा समय तक स्टेरॉयड आई ड्रॉप के इस्तेमाल करने से आंखों के अंदरुनी भाग यूवीया की  सूजन  होने  से, आंखों में चोट लगने से, आंखों में ज्यादा माइनस पावर होने से, ग्लूकोमा की पारिवारिक इतिहास होने से. आज कल बंद कोण ग्लूकोमा ज्यादा पाया जा रहा है.

काला मोतिया क्यों होता है?

 इसमें ऑप्टिक नर्व पर नुकसान पहुंचता है. आंखों का प्रेशर बढ़ने पर आंखों को नुकसान पहुंचता है, ऑप्टिक नर्व  में रक्त की आपूर्ति कम मात्रा में होने से यह समस्या होती है. आंखों के अंदरूनी भाग के सुजन को युभीआईटिस कहते हैं. इस सेशन में डॉ. बिभूति कश्यप, डॉ. रीमा बंसल, डॉ. स्वेता वालिया, डॉ. पार्थ राणा, डॉ. देवाशीष दास, डॉ. राहुल प्रसाद ने इस बीमारी की पहचान एवं उपचार के अलग-अलग तकनीको पर प्रकाश डाला. केराटोकोनश बीमारी कम उम्र के लोगों में ज्यादा होती है और एक खास प्रकार के लेज़र कर इस बीमारी को आगे बढ़ने से रोका जा सकता है. इस पर एम्स नयी दिल्ली के डॉ. प्रफुल महाराणा ने व्यख्यान दिया. आयोजक समीति मुख्य संयोजक डॉ. सुजोय सामंता एवं सह संयोजक तीर्थजीत मोइत्रा कि मेहमान नवाजी को अतिथि चिकित्सकों ने काफी सराहा.

 
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