झारखंड » सिमडेगाPosted at: अप्रैल 23, 2024 नक्सलवाद का साया उतर गया लेकिन क्रूसकेला पंचायत के कई टोला आज भी जोह रहे विकास की वाट
नदी के पानी पीने को विवश हैं यहां कई ग्रामीण
न्यूज़11 भारत
सिमडेगा/डेस्क:-जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जिले का क्रूस केला पंचायत मुख्यालय पंचायत का पूरा भौगोलिक क्षेत्र ऊंचे पहाड़ों एवं घने जंगलों से घिरा हुआ है. कभी यह इलाका घोर नक्सल प्रभावित के रूप में जाना जाता था. जहां दिन में भी जाना खतरे से खाली नहीं होता था. रात की बात ही कुछ और थी. तब आए दिन लोग नक्सली गतिविधियों से खौफजदा रहते थे. आज यहां नक्सलवाद का साया उतारने के बाद पहले की तुलना में तस्वीर काफी हद तक बदली है. क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों में कमी आई तो क्षेत्र में प्रशासन की पहुंच बढ़ी है. हालांकि यहां पानी की घोर किल्लत आज भी विद्यमान है. कांसजोर जलाशय से पाइपलाइन के माध्यम से घर-घर नल तो लगाए गए हैं,लेकिन इससे पानी नहीं आता है. क्षेत्र में लोग आज भी नदी-नाले का दूषित पानी पीने को विवश हैं.
भेलवाडीह की महिला रिझन देवी ने व्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए कहा कि सरकार या जनप्रतिनिधि सुध नहीं ले रहे हैं. एक साल से हर घर में नल लगाकर छोड़ दिया गया है,लेकिन उसमें अब तक पानी नहीं आया. आखिर इसकी कौन सुध लेगा. क्रूसकेला में सड़क के किनारे दर्जन भर महिलाएं सड़क के किनारे साल-कुसुम के पेड़ के नीचे आराम करतीं नजर आईं.क्षेत्र की बड़ी समस्या पूछने पर सबने एक स्वर में कहा कि आधार लेकर नल लगाया गया था. लेकिन पानी अब तक नहीं दिया गया . सुषमा,संध्या,कुसुम आदि ने बतलाया कि जामटोली में अधिकांश मकान मिट्टी एवं खपरैल के बने हैं.गिने-चुने लोगों को ही पक्का मकान सरकार से मिला है.महिलाओं ने बताया कि क्षेत्र में सड़क-बिजली की सुविधा तो मिली है, लेकिन पानी के लिए अभी भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है. पिछले स्वतंत्रता दिवस के दिन ही केवल नल में पानी आया. उसके बाद से कभी पानी नहीं आया. जामटोली से आगे बढ़ने पर डीपाटोली में भी लोगों ने जल संकट से जुड़ी समस्या बताई.कहा कि गांव में लगा जलमीनार दिखावे की वस्तु बनकर रह गई है.लोग गांव के बगल से बहने वाली पालामाड़ा नदी से पानी लगातार पीने के अलावा अन्य जरूरतें पूरी करते हैं.गांव के दिव्यांग राजू मिंज ने कहा कि नेता केवल चुनाव के वक्त वोट मांगने आते हैं.लेकिन,चुनाव के बाद वे गांव की समस्या देखने या सुनने नहीं पहुंचते हैं.
पांच साल में नहीं बनी गांव से प्रखंड मुख्यालय की सड़क
क्रूसकेला को पाकर टांड़ से जोड़ने वाली सड़क की तस्वीर पांच वर्षों में भी नहीं बदली. आज भी इस रोड से गुजरने वाले लोगों की रूह कांप जाती है. घने वन एवं उबड़-खाबड़ रास्ते से लोगों को साइकिल या पैदल जाना काफी दुष्कर होता है.जगह-जगह सीधी चढ़ाई सड़क दुर्घटना का भी कारण बनती है. अगर टायर पंचर हो जाए तो उसे घिसटकर ले जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. ग्रामीणों के लिए कुछ किलोमीटर का सफर है वैतरणी पार करने जैसा अहसास करा देता है.