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झारखंड


मजदूरों का फेफड़ा गलाने वाली फैक्ट्री की हकीकत

मजदूरों का फेफड़ा गलाने वाली फैक्ट्री की हकीकत

सरायकेला : जिले के आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में चंदुका मिनरल्स एंड केमिकल्स फैक्ट्री पत्थर पीसती है और साथ ही मसलती है मजदूरों की जिंदगी. इस बात का खुलास तब हुआ जब न्यूज 11 भारत को इसी फैक्ट्री में काम करने वालें एक मजदूर ने अपनी बात हम तक पहुंचाई. उसने बताया कि चंदुका मिनिरल्स एंड केमिकल्स फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर काला पानी की सजा काटते हैं. उन्हें यातनाएं दी जाती हैं कोरोना काल में फैक्ट्री से निकलने वाले प्रदूषण से जूझने को मजबूर किया जाता है.जिस फेफड़े को कोरोना से खतरा है उस फेफड़े को एक फैक्ट्री में गलाया जा रहा है. एकबार तो हमें ये किसी मजदूर विशेष की आपसी खीज मालूम पड़ी लेकिन इस फैक्ट्री के खिलाफ आई एक और शिकायत ने हमें इसकी पड़ताल को विवश कर दिया. हमारी स्पेशल टीम ने जब फैक्ट्री में जा कर हकीकत जानने की कोशिश की तो हमें गेट पर ही रोक दिया गया बस वहीं से दाल में काला नज़र आने लगा.


हमारी टीम के कुछ सदस्य फैक्ट्री में दाखिल होने में कामयाब हुए और वहां जो देखा वो मजदूरों की शिकायत से कहीं खौफनाक था। फैक्ट्री में पत्थर के डस्ट उड़ रहे थे. पॉल्यूशन और सेफ्टी नियमों की धज्जियां उड़ रही थी. मजदूरों के सिर पर ना हेलमेट था ना चेहरे पर सही मास्क. उन्होंने रुमाल या गमछे को अपने चहरे पर बांध रखा था. किसी ने मास्क पहना भी था तो आर्डिनरी पुराना मास्क. ना हीं उनके पैरों में सेफ्टी जूते थे.जिनकों मुहैय्या कराने की जिम्मेदारी कंपनी की है. हमने कुछ मजदूरों से बात की तो पता चला कि उन्हें गुड़ चना भी नहीं दिया जाता. आलम ये है कि 3 से चार महीने में वहां काम करने वाले मजदूरों के फेफड़े में सिल्कोसिस की बीमारी हो जाती है यानी उनका फेफड़ा गल जाता है और एक साल में मजदूरों की मौत भी हो जाती है. यही वजह है कि इस फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूरों को 3 से 6 महीने बाद यहां नहीं दिखते.


इस फैक्ट्री में पिसने के लिए जो क्वाट्ज पत्थर आते हैं वो भी अवैध तरीके से आते हैं. मजदूरों को पीएफ और ईएसआई की सुविधा भी नहीं दी जाती और खाना पूर्ती के लिए कागजों पर साल में एक बार एक्स-रे दिखाया जाता है. आवाज उठाने वाले मजदूरों को बुरी तरह मारा पीटा भी जाता है एक मजदूर की तो टांग भी तोड़ दी गई है. हलांकि इन आरोपों को लेकर जब हम फैक्ट्री मालिक संगम अग्रवाल के पास गए तो उन्होंने इन आरोपों की तस्दीक भी की और हमारे कैमरे के जीएम को फोन पर गालियां भी देने लगे और बाद में देख लेने की धमकी भी देने लगें. उन्होंने स्वीकार किया कि हां उनके लोगों ने मजदूर की पिटाई की है क्योंकि वो गड़बड़ कर रहा था. उन्हें किसी से डर नहीं लगता भला ये अधिकार उन्हें किसने दिया उनका रसूख इतना कि वो किसी से फोन पर 20 करोड़ का फ्लैट खरीदने की बात कर रहे थे और फ्लैट के बदले ज्यादा से ज्यादा रकम कच्चे में चुकाने की बात कर रहे थे अब जनाब के पास कच्चे में इतने पैसे हैं तो काम भी कच्चा ही होगा. खैर उनका पक्ष लेने के बाद हमने सरायकेला डीसी से सारी बात बताई तो उन्होंने तुरंत पांच सदस्यीय टीम बना कर मामले की जांच करने का भोरोसा दिया. अब जरा सोचिए मालिक का बर्ताव और मजदूरों की दशा ये साबित नहीं करती कि इस फैक्ट्री में पत्थर खरीद से लेकर कोरोनाकाल में मजदूरों की दी जाने वाली सुविधाओं तक सब सब गड़बड़ है ? सही तरीके से जांच करा ली जाए तो उस फैक्ट्री में और कई गड़बड़ियां उजागर हो सकती है. आपराधिक के साथ साथ आय से अधिक संपति के मामले भी उजागर हो सकते हैं. उम्मीद है कि जांच टीम दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी. 


 


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