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रांची/डेस्क: हर तरफ गुंज है कि देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. सरकार भी द्वार तक जाकर लोगों को योजनाओं के लाभ देने का दावा भी कर रही है. ये सारे शब्द के एक बड़े प्लेटफार्म पर विकास को दिखाकर दिल को शकुन तो देते हैं. लेकिन यहीं कुछ ऐसी तस्वीरे भी कभी-कभी सामने आ जाती है. जो विकास से कोसों दुर खाट पर झुलते सिस्टम की कहानी बयां करती है. तब अमृत महोत्सव और द्वार तक पंहुचती सरकार की योजनाएं बेमानी लगने लगती है. सिमडेगा में फिर से एक ऐसी तस्वीर सामने आई है जो विकास के सारे दंभ को दरकिनार कर बता रही है कि सिस्टम खाट पर है.
सिमडेगा जिला में आज भी कई क्षेत्र और वहां के रहने वाले लोग बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीवन बिताने को मजबूर हैं. जहां तक ना तो सड़क है ना हीं अन्य सुविधा. ऐसा हीं एक नजर आज सिमडेगा जिला के जलडेगा प्रखंड अंतर्गत हुतुतुआ गांव में देखने को मिली. जानकारी के अनुसार, हुतुतुआ स्कूल टोली निवासी जयंती कंडूलना को आज अहले सुबह लेबर पेन हुआ, जिसके बाद उसके घरवालों ने एंबुलेंस को फोन कर बुलाया. एबुलेंस तो आया लेकिन रास्ता नहीं होने के कारण वह गिरजा टोली से आगे नहीं जा सका. अंत में जयंती के घरवाले थक हरकत दर्द से तड़पती जयंती को लगभग तीन किलोमीटर खटिया पर सुला कर गिरजा टोली तक लेकर आए. तब जाकर उसे एंबुलेंस में बैठाया जा सका.
आज देश आजादी के अमृत महोत्सव मनाते हुए विकास के दंभ भर रहा है. सरकार द्वार गांव के अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाओं के लाभ पंहुचाने का दावा कर रही है. अधिकारी सुदूर गांव तक जा रहे हैं. लेकिन हुतुतुआ स्कूल टोली का दर्द अब तक गांव वालों को क्यों टिस दे रहा है. ये किसी ने नहीं देखा. आखिर इनकी समस्या का कब होगा समाधान ? कब तक यहां के लोगों की मिलेगी मूलभूत सुविधा होगी प्राप्त ? आखिर कब तक इनके द्वार पंहुचेगी सरकार? आखिर कब ये मनाएंगे आजादी का अमृत महोत्सव?
सवाल बहुत हैं. और ये सारे सवाल सिर्फ एक हुतुतुआ स्कूल टोली की नहीं. हुतुतुआ स्कूल टोली की कहानी तो बस एक बानगी है जो सामने आकर विकास की गति का आईना दिखाई है. इस तरह के कई गांवों की कहानी पहले भी सामने आए हैं. लेकिन सवाल है कि इन सभी जगहों पर उम्मीद का दिया जलाकर विकास की रोशनी कौन और कब पंहुचाएगा.