शशि तिग्गा/ न्यूज11भारत
झारखंड के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में तीन हजार से अधिक लोगों की मौत का राज बोतल में बंद है. इनमें हजारों बॉटल्स में अब किसी काम की नहीं रही. मतलब मौत का राज अब इसमें दफन हो गया है. फिर भी इन्हें इसलिए रखा गया है कि पता नहीं कब किसी जांच में इसकी जरूरत पड़ जाए. स्थिति यह हो गई है कि रिम्स के फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी विभाग में रखने की जगह भी कम पड़ने लगे हैं. विभाग के 2010 से 9 सितंबर 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार यहां 3094 विसरा रखे हैं. जिसमें 89 प्रतिशत विसरा पेंडिंग है. दरअसल जहर के शक से होनी वाली मौत के मामलों में विसरा को रखा जाता है. रिम्स में औसतन हर महीने 250-300 पोर्स्टमार्टम होते हैं. जिसमें से 10-15 मामले जहर के इस्तेमाल को लेकर होते हैं.
छह माह में होने लगता है खराब
जर्नल ऑफ फॉरेंसिक केमिस्ट्री एंड टॉक्सिकोलॉजी में छपे जर्नल सीनरी ऑफ यूजफुलनेस ऑफ विसरा प्रिजर्वेशन के अनुसार रिजर्वेशन का एवरेज 10.36% है. जर्नल के अनुसार विसरा को केवल तभी संरक्षित किया जा सकता है, जब सैंपल में अच्छे क्वालिटी के केमिकल यूज किए गए हो. इस जर्नल में अपना योगदान देने वाले रिम्स के फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी के असिस्टेंट प्रोफेसर और पूर्व उपाधीक्षक डॉक्टर संजय कुमार ने बताया कि इसे जल्दी से एकत्र कर प्रयोगशाला में परीक्षण करना होता है. कुछ समय बाद परीक्षा परिणाम कुछ भी उपयोगी नहीं निकलेगा.
विसरा रिसीव करने में पुलिस बरतती है सुस्ती
पोस्टमार्टम के बाद विसरा कलेक्ट करने की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. केस आई के माध्यम से कलेक्शन के बाद विसरा को जांच के लिए फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री भेजनी होती है. मगर विसरा रिसीव करने में पुलिस पूरी तरह सुस्ती बरती है. यही वजह है कि रिम्स के पोस्टमार्टम से मात्र 11 प्रतिशत विसरा ही पुलिस द्वारा केमिकल और टॉक्सिकोलॉजी एनालिसिस के लिए एफएसएल भेजा गया.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी बेअसर
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2014 में ही आदेश जारी कर कहा था कि जहर से होने वाली मौत के मामलों में विसरा परीक्षण अनिवार्य है. जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता वाली पीठ ने निर्देश दिया था कि जिन मामलों में जहर का संदेह है, पोस्टमार्टम के तुरंत बाद विसरा को एफएसएल को भेजा जाना चाहिए. अभियोजन एजेंसियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विसरा वास्तव में जांच के लिए एफएसएल को भेजा गया या नहीं. दूसरी ओर एफएसएल को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि विसरा की तुरंत जांच कर जांच एजेंसियों/अदालतों को रिपोर्ट भेजी जाए. एपेक्स कोर्ट ने फैसले की कॉपी सभी उच्च न्यायालयों, अभियोजन निदेशक, सचिव, गृह मंत्रालय, सचिव, गृह विभाग और निदेशक, एचसी के अधिकार क्षेत्र में फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला को भेजी है. मगर इस आदेश का असर नहीं पड़ रहा. पुलिस की लापरवाही साफ नजर आ रही है. इस कारण कई लीगल मामलों में असर पड़ रहा है.दूसरी ओर अस्पताल में पड़े-पड़े विसरा भी बेकार हो रहे हैं.
क्या होता है विसरा
मेडिकल टर्म में पोस्टमार्टम के दौरान इकठ्ठा किए जाने वाले बायो सैंपल को विसरा कहा जाता है. जैसे- फेफड़ा, किडनी, आंत, हृदय, मस्तिष्क जैसे मानव शरीर के अंदरूनी अंगों के नमूनों के संकलन को विसरा कहते हैं. ये सैंपल उन केसेज में इकठ्ठा किए जाते हैं जिसमें व्यक्ति की मौत किसी जहरीले पदार्थ से हुई हो. जांच के बाद ही ये कंफर्म होता है कि वह जहरीला पदार्थ क्या था?
रिम्स में विसरा के आंकड़े
वर्ष विसरा
2010 - 287
2011 - 310
2012 - 225
2013 - 282
2014 - 296
2015 - 217
2016 - 271
2017 - 286
2018 - 248
2019 - 241
2020 - 235
2021 (9th sep) - 196