रांचीः रांची के रिसालदार हजरत कुतुबुद्दीन रिसालदार बाबा का 214 वां उर्स सादगी के साथ शुरू हो गया है. बताया जाता है कि रिसालदार बाबा अंग्रेजों के समय कमांडर के तौर पर केरल से रांची आए थे और यहीं बस गए, जय और बीएमपी के लोग आज भी उन्हें अपना रिसालदार यानी कमांडर मानते हैं.
हजरत कुतुबुद्दीन रिसालदार बाबा का 214 वां उर्स-ए-पाक कोविड प्रोटोकॉल के कारण बेहद सादगी से मनाया जा रहा है. मजार के अंदर कव्वाली हो रही है नात खानी फातिहा खानी, जैसी रस्मों के साथ उन्हें खिराज-ए-अकीदत पेश किया जा रहा है, मेले नहीं लगे हैं, झूले नहीं लगे हैं, वरना बाबा के उर्स में लाखों लोग शिरकत करते थे मजार के आसपास दिल रखने की जगह नहीं बचती थी.
रिसालदार बाबा आज से लगभग 160 वर्ष पहले केरल से अपनी फौज के कमांडर के तौर पर रांची आए और यही पास की जामा मस्जिद में मुकीम हुए. माना जाता है कि कोई भी बाबा के पास अपनी परेशानी लेकर जाता है, चाहे वो हिंदू हो या मुसलमान किसी से भेद नहीं करते. उनकी दुआओं में असर था बीमार अच्छे हो जाते है.
24 अक्टूबर कि सुबह बाबा की मजार पर जैप वन की टोली बाकायदा सलामी देने आएगी, बिहार से बीएमपी की टुकड़ी भी चादर पोशी करने रांची आती है, गवर्नर से लेकर मुख्यमंत्री और पक्ष-विपक्ष के नेता मंत्री बाबा के मजार पर आकर मन्नते मांगते हैं, बाबा के मजार पर मजहब की दीवारें गिर जाती है.