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सिमडेगा/डेस्क: रमजान का तीसरा अशरा रविवार को मगरिब की नमाज के बाद शुरू हो जाएगा. इस अशरे को जहन्नुम की आग से निजात दिलाने वाला कहा जाता है.
इस अशरे में की गई इबादत के बदले अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ कर उन्हें जहन्नुम की आग से निजात दे देता है. इसी अशरे की कोई एक रात शबे कद्र होती है. इस लिए लोग रात-रात भर जाग कर इबादत करते हैं. बताते हैं कि शबे कद्र में इबादत का सवाब एक हजार रातों की इबादत के बाराबर होता है. इस रात में मांगी गई दुआओं को अल्लाह कुबूल फरमाता है.
सिमडेगा के मस्जिदों में एतिकाफ के लिए बैठेगें लोग
रविवार की शाम मस्जिदों में मगरिब की नमाज के बाद एतिकाफ में बैठने का सिलसिला शुरू हो जाएगा. वैसे तो रमजान का पूरा महीना ही इबादत के लिए महत्वपूर्ण होता है,लेकिन इसके आखिर के 10 दिन सबसे रहमत वाले होते हैं. रमजान के आखिरी अशरे में मस्जिद में एतिकाफ करना सुन्नत है. एतिकाफ करने वाला ईद का चांद देखने के बाद ही मस्जिद से अपने घर को लौटता है. हदीस के मुताबिक एतिकाफ में बैठकर इबादत करने वाले लोगों के अल्लाह सभी गुनाह माफ कर देता है. अगर मोहल्ले का एक शख्स भी एतिकाफ करले तो सभी के लिए यह रहमतवाला होता है.
सिमडेगा में फितरा की राशि 60 रूपए तय
रमजान मुबारक के पवित्र माह पर हर मुसलमान को फितरा की राशि निकालना जरूरी है. मौलाना मिन्हाज रहमानी ने बताया कि इस बार प्रति व्यक्ति ने 60 रूपया फितरा की राशि इमारत ए शरीया के द्वारा तय किया गया है. मौलाना ने कहा कि ईद की नमाज अदा करने से पहले पहले तक फितरा की राशि अदा करना जरूरी है.
बता दें कि रमज़ान मुस्लिम वर्ष का नौवां महीना है. अंग्रेजी में रमज़ान शब्द का सबसे पहला रिकॉर्ड 1500 के दशक के उत्तरार्ध का है, और यह अरबी शब्द रमज़ान से आया है, जिसका अर्थ है "गर्म महीना।" यह 29 से 30 दिनों तक चलता है, और इस्लाम के अनुयायी पूरे समय सूर्योदय से सूर्यास्त तक सख्त उपवास का पालन करते हैं.