अमित सिंह, न्यूज11 भारत
रांची: राष्ट्रीय तापविद्युत निगम, एनटीपीसी लिमिटेड की 21 परियोजनाएं देश में संचालित हो रही हैं. इसमें से 15 परियोजनाएं कोयला आधारित है. इन परियोजनाओं में उच्च स्तर के कोयले की आपूर्ति होती है. कोयले की आपूर्ति एनटीपीसी के कोल परियोजनाओं से की जाती है. हजारीबाग जिले के पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना से एनटीपीसी के कई शाखाओं में कोयले की सप्लाई रेलवे रैक से होती है. एनटीपीसी के इस पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना से 100 करोड़ से ज्यादा का कोयला गायब करा दिया गया है.
यानी एनटीपीसी के पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना से तापविद्युत संयत्र के लिए निकाला गया 100 करोड़ से ज्यादा का कोयला चोरी कर खुले बाजार में बेच दिया गया है. कोयला चोरी के इस खेल को पूरे योजनावद्ध तरीके से एक सिंडिकेट हैंडल कर रहा है. इस सिंडिकेट में एनटीपीसी, त्रिवेणी सैनिक प्राइवेट लिमिटेड, माइनिंग, फॉरेस्ट, प्रदूषण और पुलिस विभाग के लोग शामिल है. करोड़ों के कोयला चोरी की जांच सीवीओ ने शुरू कर दी है. एनटीपीसी से कोयला उत्पादन, डिस्पैच और ट्रांसपोर्टिंग से संबंधित दस्तावेज मांगे हैं. यह जांच हजारीबाग के मंटू सोनी की शिकायत के बाद शुरू हुई है.
2017 से ही जारी है परियोजना में कोयला चोरी का खेल
न्यूज 11 भारत ने पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना में कोयला चोरी की पड़ताल की, तो पता चला कि 2017 से अबतक परियोजना से 100 करोड़ से ज्यादा का कोयला चुरा कर खुले बाजार में बेच दिया गया है. इसके लिए सिंडिकेट के मेंबर्स योजनावद्ध तरीके से काम करते थे. कोयला चोरी को सही ठहराने के लिए कागजी खानापूर्ति करते है. इसी खानापूर्ति में मोटरसाइकल और ऑटो के नंबर ट्रांसपोर्टिंग चालान में डाल दिया, जो माइनिंग डायरेक्टर की जांच में पकड़ा गया. अब पता चला है कि एक ही चलान पर एक डंपर परियोजना से एक बार नहीं, दो से तीन बार कोयला लेकर बाहर निकलता था. मिले साक्ष्य के अनुसार सिंडिकेट के मेंबर जिस डंफर से कोयला चोरी करवाते थे, उसके चालान पर इतना समय लिखा जाता है, जितना समय में एक डंफर खदान से एक ट्रीप वैद्य और कम से कम दो ट्रीप अवैध कोयले की ढुलाई कर सके. ऐसे में किसी को पता भी नहीं चलता है और सबकी आंखों के सामने एनटीपीसी का कोयला खुले बाजार में डंपर से निकाल कर बेच दिया जाता है. कोयला चोरी का यह खेल 2017 से अबतक जारी है. एक अनुमान के अनुसार पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना से 100 करोड़ से ज्यादा कोयला चुरा कर खुले बाजार में बेचा जा चुका है.
चालान में समय डाल कर ऐसे होता है कोयला चोरी का खेल
पंकरी बरवाडीह कोल परियोजना से रेलवे साइडिंग की दूरी 30 किलोमीटर की है. इस दूरी को एक डंपर, हाईवा या ट्रक फुल लोड कोयला लेकर अधिकतम एक घंटे में तय कर सकता है. मगर माइनिंग डिपार्टमेंट द्वारा जारी चालान पर 5 से 20 घंटे का समय कोयला ढुलाई के लिए दिया जाता है. कई चालान में ऐसा पाया गया है. एक घंटे के बजाए 5 से 20 घंटे का समय इसलिए दिया जाता है, ताकि उसी चालान पर परियोजना से कोयला लेकर खुले बाजार में (डंपर, हाईवा या ट्रक) बेचकर वापस आ सके. इतना ही नहीं, एक ही चालान पर चोरी का कोयला लेकर एक से ज्यादा ट्रिप करें. तभी तो एक घंटे में तय होने वाली दूरी को परियोजना में त्रिवेणी सैनिक प्राइवेट लिमिटेड के तहत चलने वाले कई डंपर, हाईवा या ट्रक 20 घंटे से ज्यादा समय में तय करते हैं. इस संबंध में सीवीओ को कई साक्ष्य मिले है.
परियोजना से निकलता है चोरी का कोयला, एनटीपीसी ने शिकायत में खुद बताया
कोल परियोजना से खुले बाजार में कोयला लेकर जाते हुए कई गाड़ियों को अबतक पकड़ा जा चुका है. खुद एनटीपीसी के अफसरों ने चोरी का कोयला लेकर जा रहे गाड़ियों के खिलाफ दाड़ी ओपी में मामला दर्ज कराया है. मामला दर्ज होने के बाद यह तो तय हो गया है कि परियोजना के लोडिंग प्वाइंट पर गाड़ियों में कोयला चोरी के लिए सबकी आंखों के सामने लोड किया जाता है. मजेदार बात यह है कि कोल परियोजना की सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे है, ऐसे में सिंडिकेट अपनी पहुंच की बदौलत परियोजना के लोडिंग प्वाइंट पर फर्जी चलान के सहारे चोरी का कोयला लोड करवाता है. चोरी का कोयला हजारीबाग के आसपास डिपो आदि में खपाया जाता है. यह भी कह सकते है कि एक सही चलान पर कई ट्रिप चोरी का कोयला ढोया जाता है.
जांच में सामने आ चुका है कोयला चोरी
जेआइएमएस प्रणाली के तहत कोयला के ई-परिवहन चालान में अनियमितता पाये जाने की बात सामने आई है. इसमें कई ऐसे वाहनों का नंबर भी मिला है, जो टू-थ्री व्हीलर व कार का था. इसके जरिये एनटीपीसी परियोजना से कोयला प्राप्त कर डीओ होल्डर, ट्रांसपोर्टर व लिफ्टर द्वारा ढुलाई का काम किया जाता था, जो खनन निदेशक के अनुसार स्पष्ट तौर पर अवैध था. दूसरी तरफ पुलिस ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोयला चोरी से संबंधित एफआईआर के लिए माइनिंग अफसर ने लिखा था. मगर पुलिस ने एफआईआर करने के बजाए, कोयला चोरी में संलिप्त लोगों से ही पूछताछ कर रिपोर्ट बना दी. जिसमें पुलिस ने खुद बताया है कि चालान पर टैंपररी नंबर थे. पुलिस ने कोयला चोरों के इशारे पर अपनी रिपोर्ट बनाई. तभी तो पुलिस को यह नहीं दिखा कि जिस नंबर को टैंपररी बताया जा रहा है, वह मोटरसाइकल और ऑटो के रेगुलर नंबर थे. टैंपरोरी और रेगुलर नंबर अलग-अलग होते हैं.