रांची: राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि हमारे बच्चों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. हर बच्चा में कोई न कोई प्रतिभा होती है. आवश्यकता है उनमें निहित प्रतिभा को निखारने की ताकि हमारे बच्चों का सर्वांगीण विकास हो सके. उन्होंने कहा कि सभी बच्चों को उनके अधिकार मिले, वे पढाई करे और उन्नति करें. आज बहुत से परिवार अर्थाभाव के कारण बच्चों को मजदूरी के लिये भेज देते हैं, शिक्षा से वंचित रखते हैं. इस दिशा में हम सभी को ध्यान देने की जरूरत है. राज्यपाल आज राजभवन में विश्व बाल दिवस पर यूनिसेफ, झारखंड द्वारा आयोजित कार्यक्रम में बाल पत्रकारों को संबोधित कर रहे थे. कार्यक्रम में यूनिसेफ के प्रमुख प्रसांता दाश तथा कम्यूनिकेशन ऑफिसर आस्था अलंग सहित यूनिसेफ के अधिकारीगण एवं बाल पत्रकार मौजूद थे.
विभिन्न कार्यक्रमों का किया गया आयोजन
आज विश्व बाल दिवस के अवसर पर बच्चों ने राज भवन में यूनिसेफ द्वारा आयोजित पेंटिंग प्रतियोगिता “रिइमेजनिंग द फ्यूचर इन अ पोस्ट कोविड वर्ल्ड" में बेहतर पेंटिंग प्रस्तुत कर सबको आकर्षित किया. राज्यपाल ने सभी बच्चों के पेंटिंग को देखकर संवाद स्थापित करते हुए विस्तृत जानकारी ली. उन्होंने बाल पत्रकारों के मनोबल बढ़ाते हुए उनके मध्य प्रमाण पत्र वितरित किये. लॉकडाउन में उनके अभिभावक घर के बाहर नहीं जाने देते थे. विद्यालय खुलने के बाद स्थिति में परिवर्तन आया है. बाल पत्रकारों ने विद्यालयों में कोविड टीकाकरण, खेलकूद गतिविधियों को प्रोत्साहित करने पर बल देने हेतु कहा. बाल पत्रकार सृष्टि द्वारा "कोरोना के बाद स्कूल" शीर्षक पर कविता सुनाया गया. प्रीति टोप्पो द्वारा शिक्षा शीर्षक पर कविता सुनाया. कार्यक्रम में बोलते हुए प्रसांता दाश ने कहा कि कोविड-19 महामारी दुनिया भर में व्यवधान का कारण बनी हुई है. विश्व बाल दिवस के अवसर पर राज्यपाल के द्वारा राजभवन में आयोजित चित्रांकन प्रतियोगिता में भाग लेकर बच्चों ने इन चुनौतियों एवं समस्याओं को अपनी कला के माध्यम से चित्रित किया है.
बच्चों की चुनौतियां क्या हैं और वे क्या चाहते हैं
सभी बच्चों के अपने सपने होते हैं और उन्हें पूरा करने का भी उन्हें अधिकार है. बच्चों के अधिकारों के संरक्षक तथा एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में यह सुनिश्चित करना हम सभी का कर्तव्य है कि बच्चे अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचे और उनका संपूर्ण विकास हो. यूनिसेफ की कम्यूनिकेशन ऑफिसर आस्था अलंग ने उक्त अवसर पर कहा कि बच्चों ने पिछले डेढ़ साल में अपने घरों में सीमित सामाजिक जुड़ाव के साथ बिताए हैं. यह समझने के लिए कि बच्चों की चुनौतियां क्या हैं और वे क्या चाहते हैं. इस परिचर्चा का आयोजन इस उद्देश्य के साथ किया गया ताकि बच्चों को उन महत्वपूर्ण मंचों का हिस्सा बनाकर निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जा सके.