न्यूज11 भारत
रांची: देश के शीर्ष न्यायालय ने शुक्रवार को टीवी न्यूज कंटेंट पर रेग्युलेशन की कमी पर अफसोस जताया .साथ ही कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषण समाज के लिए एक 'बड़ा खतरा' हैं और भारत को 'स्वतंत्र एवं संतुलित प्रेस' की जरूरत है. शीर्ष अदालत ने कहा कि टीआरपी की होड़ में समाज विभक्त हो रहा है आजकल सब कुछ टीआरपी (टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट) से संचालित होता है और सभी चैनल एक-दूसरे के साथ होड़ कर रहे हैं और इससे समाज में विभाजन पैदा हो रहा हैं. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई टीवी समाचार एंकर, नफरत फैलाने वाले भाषण के प्रचार की समस्या का हिस्सा बनता है, तो उसे प्रसारण से क्यों नहीं हटाया जा सकता. न्यायालय ने कहा कि प्रिंट मीडिया के उलट, न्यूज चैनलों के लिए कोई भारतीय प्रेस परिषद नहीं है. साथ ही कहा कि हम स्वतंत्र भाषण चाहते हैं परंतु किस कीमत पर . मालूम हों कि देश भर में नफरती भाषणों की घटनाओं पर अंकुश लगाने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, 'घृणास्पद भाषण एक बड़ा खतरा बन गया है, इसे रोकना होगा.' मीडिया ट्रायल पर चिंता जताते हुए बेंच ने एयर इंडिया के एक विमान में एक व्यक्ति द्वारा महिला सहयात्री पर कथित तौर पर पेशाब किए जाने की हालिया घटना की ओर इशारा करते हुए कहा, 'उसका नाम लिया गया. मीडिया के लोगों को समझना चाहिए कि उसके खिलाफ अभी भी जांच चल रही है और उसे बदनाम नहीं किया जाना चाहिए.
यदी एंकर पर कार्यवाई हुई तो सब लाइन में आयेंगे
न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने दावा किया कि पिछले एक साल में हजारों शिकायतें मिली हैं और चैनलों के खिलाफ कार्रवाई भी की गई है. पीठ ने कहा, 'सीधे प्रसारित किसी कार्यक्रम में, कार्यक्रम की निष्पक्षता की कुंजी एंकर के पास होती है. यदि एंकर निष्पक्ष नहीं है, तो वह वक्ता को म्यूट करके या दूसरी तरफ से सवाल न पूछकर जवाबी मत नहीं आने देता. यह पूर्वाग्रह का प्रतीक चिह्न है. वकील ने कहा कि, 'कितनी बार एंकर के खिलाफ कार्रवाई की गई है? मीडिया के लोगों को यह एहसास होना चाहिए कि वे बड़ी शक्ति वाले पदों पर बैठे हैं और उनका समाज पर प्रभाव है. वे समस्या का हिस्सा नहीं हो सकते. इसके साथ ही जस्टिस जोसेफ ने कहा कि अगर न्यूज एंकर या उनके प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की जाती है, तो सभी लाइन में आ जाएंगे.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बेहद जरूरी और संवेदनशील : कोर्ट
जस्टिस जोसेफ ने कहा कि टीवी चैनल एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं क्योंकि समाचार कवरेज टीआरपी से प्रेरित है. उन्होंने कहा, 'वे हर चीज को सनसनीखेज बनाते हैं और दृश्य तत्व के कारण समाज में विभाजन पैदा करते हैं. अखबार के उलट, विजुअल माध्यम आपको बहुत अधिक प्रभावित कर सकता है और दुर्भाग्य से दर्शक इस तरह की सामग्री को देखने के लिए पर्याप्त रूप से परिपक्व नहीं हैं.' वहीं जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि अगर टीवी चैनल नफरती भाषण के प्रचार में शामिल होकर कार्यक्रम संहिता का उल्लंघन करते पाए जाते हैं, तो उनके प्रबंधन के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. अदालत ने केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज से कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक बहुत ही महत्वपूर्ण एवं नाजुक चीज है और सरकार को वास्तव में इसमें हस्तक्षेप किए बिना कुछ कार्रवाई करनी होगी. नटराज ने कहा कि केंद्र इस समस्या से अवगत है और नफरत भरे भाषणों की समस्या से निपटने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) में संशोधन लाने पर विचार कर रहा है.