रांची: भादो एकादशी में मनाए जाने वाले भाई-बहनों का पारंपरिक प्राकृतिक पर्व करमा लगातार दूसरे साल कोविड गाइडलाइन के बीच मनाया जाएगा. झारखंड के आदिवासी-मूलवासी, हिंदु एवं सरना धर्मी यह पर्व अपने-अपने तरीके से मनाते हैं. आदिवासी समाज का यह प्रमुख त्योहार है. इस त्योहार को लेकर आदिवासी समाज में महीनों से उत्साह एवं तैयारी की जाती है. सरना धर्म बहनें करमा पर्व के दिन उपवास पर रहेंगी. देर शाम शहर के सभी प्रमुख सरना स्थल एवं अखरा में इसकी पूजा-अर्चना पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ मनाया जाएगा.
कोविड को लेकर सरना समिति ने जारी किया गाइडलाइन
विभिन्न सरना समितियों ने इसको लेकर विशेष गाइडलान जारी किया है. केंद्रीय सरना समिति के सभी गुट के अध्यक्ष अजय तिर्की, फूलचंद तिर्की, नारायण उरांव, बबलू मुंडा, आदिवासी जनपरिषद के प्रेमशाही मुंडा आदि ने दिशा-निर्देश जारी किया है. कहा है कि कोविड को देखत हुए अखरा में अधिक भीड़-भाड़ न लगाएं. तय गाइडलाइन के तहत ही लोग शामिल हों. चेहरे पर मास्क जरूर लगाएं. बच्चों को अधिक संख्या में लाने से बचें. सभी सरना स्थल में सेनेटाइजर की व्यवस्था रखें. करमा पूजा पूरे विधि-विधान के साथ पहान द्वारा कराएं. पूजा बाद ढ़ोल-मांदर एवं वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल करें. आधुनिक नागपुरी गीतों का प्रयोग न करें. 18 अक्तूबर को परना होगा और करम डाली का विसर्जन किया जाए.
सरना स्थलों की हो रही है साज-सज्जा, साफ-सफाई
करमा पर्व को लेकर सरना स्थलों एवं अखरा को सजाया जा रहा है. साफ-सफाई की जा रही है. साऊंड सिस्टम एवं आकर्षक विद्युत सज्जा किया जा रहा है. नगर निगम प्रशासन से भी सभी सरना स्थलों की साफ-सफाई की मांग की गयी है. नगर निगम भी करमा एवं सरना स्थल की साफ-सफाई में जुटा है.
अच्छी खेती-बाड़ी एवं फसल होने को लेकर होता है करमा पर्व
आदिवासी समाज में करमा पर्व अच्छी खेती-बाड़ी एवं फसल होने की कामना को लेकर की जाती है. यह मौसम बारिश को होता है. इसलिए अच्छी फसल हो इसकी कामना भी की जाती है. यह पर्व मूल रूप से भाई-बहन के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है. इसलिए झारखंड के मूलनिवासी, हिंदू भी इस पर्व को अपने तरीके से मनाते हैं.
जावा फूल को उगा कर उसे सरना पूजा स्थल में रखा जाएगा
सभी करमा स्थल में पूजा के एक दिन पूर्व जावा फूल को उगा कर दूसरे दिन पूजा के समय उसे अखरा के पूजा स्थल में रखा जाता है. इसके बाद करम डाली को नाचते-गाते पुरूष उसे पूजा स्थल में लाकर गाड़ते हैं. इसके बाद देर शाम 7 बजे के बाद पाहनों द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ करमा पर्व की पूजा होती है. इस पूजा में सरना धर्म बहनें शामिल होती हैं. जबकि पुरूष ढ़ोल-मांदर के साथ नृत्य-संगीत करते हुए उनका साथ देते हैं.