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रांचीः प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम अवैध खनन घोटाले और रांची के अनगड़ा में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नाम से आवंटित स्टोन माइंस मामले में जिला खनन पदाधिकारी संजीव कुमार को ग्रिल करेगी. इसमें पूर्व डीएमओ सत्यजीत कुमार से भी ईडी के अफसर जानकारी लेंगे. इसको लेकर रांची डीएमओ को सम्मन भी किया जा चुका है. ईडी के अधिकारियों का मानना है कि 88 डिसमिल जमीन में आवंटित स्टोन माइंस की सारी औपचारिकताएं जिला खनन पदाधिकारी के कार्यालय रांची से की गयी है. डीएमओ रांची की तरफ से लघु खनिज के मामले में स्टोन माइंस के आवंटन की सारी प्रक्रियाएं पूरी की गयी होंगी. इतना ही नहीं अनगड़ा के जिस जगह में माइंस दिया गया, उसकी जमीन की मूल स्थिति और अन्य कागजातों की भी जांच जिला खनन पदाधिकारी कार्यालय से की गयी होगी. इतना ही नहीं खान आवंटन से संबंधित संचिका की मूल प्रति जिले के उपायुक्त के माध्यम से खान एवं भूतत्व विभाग भेजी गयी होगी. ताकि खान आवंटन की औपचारिकताएं पूरी की जा सके. ऐसे में जिला खनन पदाधिकारी रांची एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं, जिनसे पूछताछ पर कई औरम मामलों का पता चल पायेगा.
क्या है स्टोन माइंस लेने की प्रक्रिया
खान एवं भूतत्व विभाग ने लघु खनिज समनुदान नियमावली के तहत स्टोन माइंस, बालू घाट, मोरम, पत्थर का खदान लेने के नियम बनाये हैं., झारखंड गठन के समय या उससे पूर्व पत्थर का कारोबार बेतरतीब ढंग से होता था. आज भी लगभग यही स्थिति बनी हुई है. कोई भी व्यक्ति आवेदन देकर पत्थर की माइंस आवंटित करा सकता है. सबसे पहले जहां पत्थर के पहाड़ हैं, उसकी पहचान कर संबंधित व्यक्ति को आवेदन देना होता है. इसमें जमीन के नेचर की जानकारी भी देनी पड़ती है. जमीन यदि गैर मजरूआ है, तो सरकार को भूमि के लीज के लिए आवेदन देना होगा. यदि रैयती है, तो उसे उक्त भूमि को खरीदना होगा. सबसे पहले आवेदन देना होगा. संबंधित जगह से पत्थर निकालना चाहते हैं. उसमें लिखना होगा कि भूमि गैर मजरूआ है या रैयती. स्टोन माइंस के लिए पांच हजार का आवेदन शुल्क जमा करना पड़ता है. साथ ही सेल्फ एफिडेविट देना होता है कि वह भारत का निवासी है. आवेदन के साथ ही ग्राम सभा की अनुमति पत्र, पैन कार्ड और स्थायी पता का प्रमाण पत्र देना होता है. जिस स्थान का पट्टा लेना है, उस स्थान का विलेज मैप भी देना होता है. आवेदन मिल जाने के बाद जिला खनन पदाधिकारी आवेदन को अंचलाधिकारी (सीओ) के पास भेज कर एनओसी लेता है. इसके बाद संबंधित जिले के वन प्रमंडल पदाधिकारी (डीएफओ) से एनओसी ली जाती है. एनओसी मिलते ही लीज दे दी जाती है.