नीरज कुमार साहू/न्यूज11 भारत,
बसिया/डेस्क: बसिया के कोनबीर सरहुल अखाड़ा में हर वर्ष की भांति प्राकृतिक पर्व सरहुल धूमधाम से मनाने को लेकर आदिवासी एकता मंच के बैनर तले कार्तिक भगत के अध्यक्षता में बैठक रखी गई. बैठक में 11 अप्रैल को होने वाले प्राकृतिक पर्व सरहुल धूमधाम से और शांतिपूर्ण तरीके से मनाने का लिया गया निर्णय.
बैठक के अध्यक्षता कर रहे हैं कार्तिक भगत ने बताया कि सरहुल की शोभा यात्रा 11 अप्रैल को 2:00 बजे उत्तरी क्षेत्र पाड़हा भवन बसिया एवं खुदी चौक कोनबीर से प्रारंभ होकर कोनबीर सरहुल अखाड़ा तक जाएगी. बैठक में मुख्य रूप से कार्तिक भगत, रोशन बारवा, विनोद भगत, शशिकांत भगत, अजीत गुड़िया, अमर डंगवार, दिलीप तिर्की, सुशील सोरेंग आदि उपस्थित थे.
प्राकृतिक पर्व सरहुल
प्राकृतिक पर्व सरहुल झारखंड का एक मुख्य त्यौहार है आदिवासियों के प्राकृतिक प्रेम के प्रतीक के रूप में सरहुल पर्व पूरे झारखंड में मनाया जाता है यह पर्व आदिवासियों के प्राकृतिक प्रेम का भी प्रतीक है.सरहुल दो शब्दों से बना हुआ है 'सर 'और 'हुल '. सर का मतलब सखुआ का फूल होता है वहीं हुल का मतलब क्रांति होता है अर्थात सखुआ फूलों के खिलने की क्रांति को सरहुल कहा गया है.सरहुल पर्व आदिवासियों का सबसे प्रमुख पर्व है, इस पर्व के साथ ही फसलों की कटाई शुरू होती है, सरहुल से ही आदिवासियों का नववर्ष भी शुरू होता है.सरहुल पर्व झारखंड की विभिन्न जनजाति अलग-अलग नाम से मनाती है खड़िया जनजाति जंकौर पर्व, मुंडा बा पर्व, उरांव खुदी पर्व और संथाल जनजाति बाहा पर्व के नाम से मनाते हैं.