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सिमडेगा: खेल की नगरी सिमडेगा अपने हॉकी के पुर्योद्धा जस्टिस केरकेट्टा को खो कर गमगीन है. रविवार को उनके पैतृक आवास कोरको टोली में उनका अंतिम संस्कार किया गया. जिसमें खेल जगत के और राजनीतिक जगत के कई लोग शामिल होकर उन्हे श्रद्धांजलि दी.
हॉकी स्टीक के धारदार खेल से विपक्षी टीम के पसीने छुड़ाने के साथ साथ अपनी बंदूक की गोली से दूर के दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले पुर्योद्धा सिमडेगा के लाल जस्टिन केरकेट्टा का आकस्मिक निधन ह्दयगति रूक जाने के कारण शनिवार को हो गई थी. रविवार को उनके पैतृक आवास अघरमा के कोरको टोली में उनका अंतीम संस्कार पारंपरिक विधि विधान के साथ किया गया.
1947 में हुआ था जस्टिन केरकेट्टा का जन्म
विश्व कप सहित कई अंतर्राष्ट्रीय प्रतियगिताओ में वे भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व कर भारतीय हॉकी को बुलंदी पर पंहुचाने वाले खिलाड़ी जस्टिस केरकेट्टा का जन्म 1947 में हुआ था. वे 1978 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने के साथ-साथ कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. वे बिहार रेजीमेंट में भारतीय सेना में नौकरी करते थे. 1971 विश्व युद्ध में भी शामिल होकर दुश्मनों के दांत खट्टे किए थे. सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वे कई 1982 से 1998 तक वे मेकॉन में हॉकी खिलाड़ियों को कोचिंग भी देते थे. तत्पश्चात वे कोलेबिरा प्रखंड मुख्यालय में मकान बनाकर रहने लगे और किसी भी छोटे बड़े हॉकी प्रतियोगिताओं में भाग लेते रहे. कोलेबिरा के बरवाडीह विद्यालय में हर वर्ष होने वाले हॉकी प्रतियोगिता में भी बढ़-चढ़कर अपनी सहभागिता देते थे. साथ ही जयपाल सिंह मुंडा हॉकी एकेडमी में ये मुख्य ट्रेनर के रूप में भी योगदान देकर हॉकी की प्रतिभा को निखार दे रहे थे. उनकी आकस्मिक मौत से खेल जगत को एक बड़ा झटका लगा है. जस्टिन अपने पीछे चार बच्चे और पत्नी को छोड़ गए हैं. उनके चारों बच्चों की शादी हो चुकी है.
नम आंखों से दी गई अंतिम विदाई
जस्टिन केरकेट्टा के बचपन के साथी पोलिकार्प केरकेट्टा भी उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए. उन्होने नम आंखों से जस्टिन के बारे बताया कि जस्टिन के साथ वे भी आरसी विद्यालय कोरको टोली से शिक्षा शुरू की थी. उसके बाद वे दोनों एक साथ अघरमा स्कूल में पढ़ाई किए. उन्होंने बताया कि बचपन से ही जस्टिन हॉकी को अपना सबकुछ मानते हुए खेलना शुरू कर दिए थे. हॉकी के प्रति उनका जुनून बचपन से रहा. उनकी संगत में पोलिकार्प भी स्कूल के दिनों में उनके साथ खेलते थे. लेकिन बाद में जस्टिन आगे की पढ़ाई के लिए बसिया चले गए तब पोलिकार्प ने खेलना छोड़ दिया. पोलिकार्प ने बताया कि हॉकी के प्रति जस्टिन का जुनून उन्हें भारतीय हॉकी टीम में जगह दिलाई और फिर 1978 में जस्टिन जब हॉकी वर्ल्ड कप खेलने गए तब यहां पूरा गांव उत्साहित हुआ था. उन्होंने बताया कि 1978 का हॉकी वर्ल्ड कप अर्जेंटिना में हुआ था. उस वक्त टीवी आदि तो नहीं था. रेडियो में लोग मैच का हाल जानते थे. मैच के दौरान पूरे गांव वालों ने इक्कठे होकर रेडियो पर मैच का हाल जाना था. जस्टिन का नाम रेडियों में आते ही ग्रामीण झूम उठते थे. उन्होने कहा जस्टिन का अचानक निधन होना खेल जगत के लिए बहुत बड़ी क्षति है.
जस्टिन केरकेट्टा के अंतीम विदाई में रविवार को सुबह से ही उनके गांव कोरको टोली में लोगों के आने का तांता लगा रहा. पूर्व भारतीय महिला हॉकी टीम की कैप्टन सुमराय टेटे, ओलंपिक संघ के जिलाध्यक्ष श्रीराम पुरी, जयपाल सिंह मुंडा हॉकी एकेडमी के जिलाध्यक्ष दिलीप तिर्की, हॉकी झारखंड के माइकल दा, हॉकी एशोसियेशन के कई पदधारी, कई खिलाड़ी, कोलेबिरा और सिमडेगा विधायक सहित कई लोग शामिल हुए.