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रावण को आज भी बुराई के प्रतीक के रूप में माना जाता है. रावण दहन इसका ज्वलंत उदाहरण है. आज भी जब रावण दहन होता है तो सभी के मन में ये सवाल जरुर होता है कि क्या रावण के सच में दस सिर थे. हालांकि बुजुर्गों का मानना है कि रावण के दस सिर दस बुराईयों का प्रतीक हैं. काम, क्रोध, लोभ, मोह, द्वेष, घृणा, पक्षपात, अहंकार, व्यभिचार, धोखा ये सभी रावण के दस सिरों के रूप में दर्शाए गए हैं. दरअसल, रावण महर्षि विश्रवा और कैकसी नामक राक्षसी जोकि राक्षस के राजा महाराज सुमाली की बेटी थी. रावण को अपने पिता महर्षि विश्रवा से वेद-शास्त्रों का ज्ञान मिला था और अपनी माता कैकसी से राक्षसी प्रवृति मिली थी. रावण का एक दूसरा रूप भी है, जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं.
रावण एक कुशल वीणा वादक भी थे
रावण ब्राह्मण कुल से थे और उससे विद्वान सारे संसार में नहीं था. रावण एक कुशल वीणा वादक भी थे. ऐसा माना जाता है कि रावण से शास्त्रार्थ करने का साहस उस समय के बड़े से बड़े पंडित में भी नहीं था और रावण जब वीणा बजाता था तो क्या मनुष्य क्या राक्षस यहां तक की देव लोक की अप्सराएं भी स्वयं को रोक नहीं पाती थी. रावण की वीणा की तान सुनकर मंत्रमुग्ध हो कर नृत्य करने लगती थी. रावण बहुत ही बड़ा शिवभक्त था. रावण की गर्जना सुनकर बड़े से बड़े योधा के भी पसीने छूट जाते थे. रावण में अद्भुत बल था और जब तक किष्किन्धा नरेश बाली से रावण का सामना नहीं हुआ तब तक रावण अपराजित था.
रावण के दो भाई और एक बहन थे
आपको बता दें कि लंकानरेश रावण के दो भाई और एक बहन थी. जिनका वर्णन रामायण में भी है. रावण के बाद कुम्भकरण जोकि छह महीने सोने और छह महीने जागने के लिए मशहूर था. सबसे छोटा विभीषण जिसने रावण का साथ छोड़ कर प्रभु राम का साथ दिया था और आखिर में बहन शूर्पनखा जिसने वनवास के दौरान लक्ष्मण के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा था और क्रोधित हो कर लक्ष्मण ने शूर्पनखा के नाक और कान काट दिए थे.
भगवान शिव ने रावण को दक्षिणा में दिया था लंका
रावण शिव का अनन्य भक्त था. रामायण में कई जगह इसका उल्लेख भी किया गया है. लंका के बारे में एक दन्तकथा प्रचलित है की शिव ने लंका का निर्माण देवी पार्वती के कहने पर कराया था परंतु गृहप्रवेश के समय रावण ने भगवान शिव से लंका दक्षिणा में मांग ली थी. ब्राह्मण होने के कारण शिव रावण को मना नहीं कर सकते थे और मजबूरीवश उन्होंने रावण को लंका दान में दे दी थी. रावण की शिवभक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे कई वरदान भी दिए थे.
एक बार रावण भगवान शिव की अराधना कर रहा था. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने दस बार अपना सिर काटकर भगवान शिव को चढ़ा दिया था. रावण के भक्तिभाव से प्रसन्न होकर भगवान ने रावण को दशानन होने का वरदान दिया और साथ ही साथ ये भी वरदान दिया की रावण के प्राण तब तक कोई नहीं ले पाएगा जब तक कोई उसकी नाभि पर प्रहार नहीं करता. रावण के प्राण उसकी नाभि में था और रामायण के युद्ध में प्रभु राम ने कई बार रावण का सिर काट दिया कई कोशिश की फिर भी रावण को नहीं मार पाए. अंततः विभीषण के कहने पर प्रभु राम ने रावण की नाभि में बाण मारा तब जाकर रावण की मृत्यु हुई .