बालू घाटों की निविदा में पर्यावरण क्लीयरेंस और सुप्रीम कोर्ट का न्यायादेश का रखें ध्यान
बालू घाटों के ऑक्शन में राज्य सरकार ने बालू खनन प्रबंधन नियमावली और निगरानी नियमावली का नहीं किया पालन
न्यूज11 भारत
रांची: झारखंड राज्य खनिज विकास निगम ने नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल (एनजीटी) से कहा है कि 30 सितंबर 2021 के बाद से राज्य के किसी बालू घाटों का ऑक्शन नहीं हुआ है. एनजीटी में भूमि अधिग्रहण विस्थापन एवं पुनर्वास किसान समिति की याचिका पर सुनवाई के दौरान झारखंड सरकार ने हलफनामा अदालत में पेश किया. याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस बी अमित स्थालेकर और विशेषज्ञ सदस्य शैबाल दासगुप्ता की पीठ ने कहा है कि याचिकाकर्ता की तरफ से निकाली गयी टेंडर को रद्द करने की मांग की थी. इसमें याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया था कि जेएसएमडीसी की तरफ से जिला सर्वेक्षण रिपोर्ट बालू ऑक्शन को लेकर नहीं किया. निगम की तरफ से समेकित बालू खनन प्रबंधन नियमावली 2016 और बालू खनन के प्रवर्तन और निगरानी नियमावली 2020 के नियमों का पालन नहीं किया गया.
पिछले वर्ष 30 सितंबर को निकाली गयी थी बालू घाटों की निविदा
30 सितंबर 2021 को जेएसएमडीसी की तरफ से बालू खनन को लेकर माइन डेवलपर सह ऑपरेटर (एमडीओ) के लिए वैधानिक क्लीयरेंस, बालू की ढुलाई और बालू को स्टॉकयार्ड तक पहुंचाने, स्टाकयार्ड से वाहनों के जरिये बालू पहुंचाने को लेकर निविदा आमंत्रित की गयी थी. बालू उत्खनन को लेकर जो रिपोर्ट जिला स्तरीय पर्यावरण समिति ने तैयर की थी, उसे राज्य स्तरीय समिति ने भी पास कर दिया गया. इस निविदा को देखकर लगता है कि सरकार ने जानबूझ कर अपने फायदों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अनुपालन नहीं किया. इसमें संबंधित अधिकारियों का वेस्टेड इंटरेस्ट दिखता है.
NGT का मानना है कि बालू का खनन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के आलोक में हो
यह हवाला दिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल अपील 3661-3662 ऑफ 2020 के फैसले के तहत बिहार सरकार ने सभी जिलों के लिए फ्रेश डीएसआर बनाने की जवाबदेही प्रमंडलीय समिति, जल संसाधन विभाग, राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद, वन विभाग, खनन पदाधिकारी से यह रिपोर्ट बनाने का निर्देश दिया था. इसके बाद ही बिहार राज्य खनिज विकास निगम को बालू खनन की अनुमति दी गयी. इसमें पर्यावरण को किसी तरह का डैमेज नहीं होने की बातें कही गयी. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अधिकतर राज्यों में पालन नहीं होता है. केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की तरफ से जारी निर्देशों के आधार पर जिला स्तरीय रिपोर्ट भी तैयार नहीं किये जाते हैं.