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रांचीः हमारे देश के अलग-अलग हिस्सो में विभिन्न तरीके से होली खेलने की प्रथा है. कहीं लठमार होली तो कहीं कीचड़ और मिट्टियों वाली होली खेली जाती है. आपने रंगों वाली होली और वृन्दावन की फूलों वाली होली के बारे में तो जरुर सुना होगा. लेकिन क्या आपने कभी ढेलामार होली के बारे में सुना है? नही...तो आइए आज हम आपको ढेलामार होली के बारे कुछ रोचक बातें बताते है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है जो अब भी मनाई जाती है.
जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में होली खेलने की प्रथा अलग है उसी तरह झारखंड में भी होली खेलने की एक अद्भुत प्रथा है जिसमें प्रमुख है ढेलामार. ढेलामार होली खेलते हुए लोग काफी खूब मस्ती करते है और ढेले से एक-दूसरे को मारते हुए होली सेलिब्रेट करते है. दरअसल यह होली झारखंड के लोहरदगा जिले के बरही में खेला जाता है. कहा जाता है कि यह प्रथा सदियों से चली आ रही है जिसे वहां के लोग अब भी मानते है.
पत्थरों (ढेलामार) की वर्षा
जानकारी के लिए बता दें, झारखंड में लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के बरही गांव में होली खेलने की यह परंपरा काफी पुरानी है जिसे लोग नाम ढेलामार होली कहते है. इसमें लोग रंगों की बजाय पत्थरों से होली खेलते हैं और होली के दिन लोगो पर पत्थरों की बरसात करते है. इतना ही जब लोग इस अनोखी तरीके से होली खेलते है तो इसे देखने वालों की भीड़ वहां जुट जाती है. लोग इस होली का काफी आनंद लेते हुए दिखते है. लोगों के मुताबिक, यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है लेकिन होली खेलने का अंदाज आज भी वही है.
गड़े खंभे से जुड़ी है प्रथा
रिपोर्ट्स के मुताबिक, बरही गांव में स्थित देवी मंडप के पास होलिका दहन किया जाता है. जहां पर एक लकड़ी का खंभा गाड़ा जाता है, और होली के दिन लोग इस खंभे को छूने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं. कहा जाता है जो लोग इस खंभे को छूने में सफल रहते हैं उन्हें सौभाग्य की प्राप्ति होती है. पहले लोग खंभे को छूने के लिए भागते है और दर्शकों में शामिल लोग इन पर पत्थरों की बरसात करते हैं.
दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते है देखने
मान्यता के अनुसार इन लोगों को पत्थर से चोट नहीं लगती. और जो लोग बिना डरे पत्थरों को छू लेते हैं उन्हें सुख और शांति की प्राप्ति होती है. गांव के लोग बताते हैं कि आज तक कभी किसी को इन पत्थरों से चोट नहीं लगी. इस अनोखी होली को देखने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में लोग आते हैं. सेन्हा के पूर्व जिला परिषद राम लखन प्रसाद ने बताया कि यह परंपरा हजारो वर्ष पुरानी है. आपसी सौहार्द के साथ ढेलामार होली मनाई जाती है.