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रांची: पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए मुरमुरे एक स्टेपल फूड, यानी मुख्य भोजन है, वहां के लोग इसे सब्जी के साथ भी खाते हैं. वहां की जीवनशैली में मुरमुरे का इस्तेमाल बहुतायत से होता है. मुरमुरे पर GST शायद बहुतों के लिए हल्की बात होगी, लेकिन पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए आक्रोशित होने का एकअहम् मुद्दा हैं. मुरमुरे पर GST को लेकर बीते दिनों एक रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी नाराजगी जाहिर की आक्रोशित होते हुए कहा था की, कहा- भाजपा के लोग अब मुरी नहीं खाएंगे? आइये जानते हैं पश्चिम बंगाल के लोगो को अतिप्रिय मुरमुरे के बारे में विस्तार से .
मुरमुरे किसे कहते हैं?
मुरमुरे चावल से तैयार किए जाने वाला एक फूड आइटम है. जिसे तेज आंच पर तैयार किया जाता है. ये हेल्थ के लिए फायदेमंद होता है. क्योंकि इसमें तेल, वसा जैसे तत्व नही होते हैं. मुरमुरे नुकसान भी नही पहुंचाते हैं.
मुरमुरे में मौजूद होते हैं कई पौष्टिक तत्व
मुरमुरे में कैलोरी और फैट की मात्रा बहुत ही कम पाई जाती है. 100 ग्राम मुरमुरे में 402 कैलोरी, 0.5 ग्राम फैट, 0.1 ग्राम सैचुरेटेड फैट , 0 एमजी कोलेस्ट्रॉल, 113 एमजी कैल्शियम, 90 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 1.7 ग्राम आहार फाइबर, 6 ग्राम प्रोटीन, 6 मिलीग्राम कैल्शियम, 25 मिलीग्राम मैग्नीशियम, 31.7 मिलीग्राम आयरन, 0.1 मिलीग्राम पाइरोडॉक्सिन (विटामिन बी 6) पाया जाता है. इसीलिए डायटिशियन भी इसे खाने की सलाह देते हैं. लोग हल्की भूख के लिए इसे अक्सर इस्तेमाल करते हैं.
अशोक की रसोई में कलिंग जितने के बाद 'मुड़ी मनसा ' बना था
'मुरी' सिर्फ बंगाल के लोगों का फेवरेट नहीं, यह मुंबई वाली भेल पुरी के लिए भी जरूरी है. आंध्र प्रदेश का स्वादिष्ट 'मुंठा मसाला', कोल्हापुर का 'भडंग मुरमुरा' भी मुरमुरे के बिना अधूरा है. मयूरभंज का फेमस 'मुड़ी मनसा' में भी मुरी का ही इस्तेमाल होता है. इस डिश में मटन करी को मिट्टी के बर्तन में धीमी आंच में पकाया जाता है और इसमें मुरमुरे और हरी मिर्च को मिलाया जाता है. इस डिश से जुड़ी कई कहानियों में यह मशहूर है कि कलिंग के साथ युद्ध जीतने के बाद सम्राट अशोक की रसोई में यह पहली बार बना था.
मुरमुरे को हमेशा एयरटाइट डिब्बे में रखना चाहिए
मुरमुरा थोक और खुले पैकेट में दोनों तरह से मिलता है, और हमेशा ताजा और करारा मुरमुरा ही अच्छा होता है. पुराने का स्वाद खराब होता है और एक बासी स्मेल भी आती है, घर लाने के बाद मुरमुरे नॉर्मल टेंप्रेचर में रखकर 3 से 4 हफ्ते के अंदर खा लेना चाहिए. डिब्बे हमेशा एयरटाइट हो और अच्छी तरह बंद हों नहीं तो हवा और नमी से वो नर्म हो जाएंगे. मुरमुरे बिहार, झारखंड, असम और नेपाल के लोगों के खाने में भी शामिल है. महाराष्ट्र की भेलपुरी का तो मशहुर है. मध्य प्रदेश के लोग नमकीन में मुरमुरे को इस्तेमाल करते हैं. छत्तीसगढ़ के घरों में मुरमुरे के लड्डू बनते हैं. और तो और देश के कई मंदिरों में और मजारों पर प्रसाद के तौर पर भी यह चढ़ाया जाता है.
प्रसाद में भी चढ़ाया जाता है मुरमुरा
प्राचीन काल से ही कुछ लोग मानते हैं की मुरमुरा का इस्तेमाल होता है. वहीं कुछ का कहना है कि 15वीं शताब्दी में मुरमुरे की खोज पहली बार हुई थी. जब चावल खेत से कटते थे तब चौड़े मुंह वाले मिट्टी के बर्तन को आधे रेत यानी बालू से भरा जाता था. उस बर्तन में चावल को डाल गर्म किया जाता था. गर्मी से चावल के ऊपर की भूसी निकल जाती है और वो फूल जाता है. इसे भगवान को प्रसाद के तौर पर चढ़ाया जाता था.1930 में केमिस्ट और इंडस्ट्रलिस्ट प्रफुल्ल चंद्र रे पहली बार ‘मुरी, चूड़ा और बिस्कुट में मौजूद पौषक तत्त्व के बार में एक आर्टिकल लिखा था. उन्होंने इस आर्टिकल में तीनों की खाने की चीजों में मौजूद पोषक तत्त्व को कंपेयर कर एक टेबल बनाया और समझाया कि 'मुरी' और चावल, बिस्कुट से बेहतर है. प्रफुल्ल चंद्र रे ने ही देश में पहली दवा कंपनी बंगाल केमिकल्स एंड फार्मास्युटिकल्स की स्थापना की थी.
मुरमुरे खाने के फायदे
- मुरमुरे का सेवन शरीर को ऊर्जा प्रदान करने में सहायक हो सकता है
- कब्ज को दूर करने में सहायक
- हड्डियों को मजबूत बनाता है
- कोलन कैंसर से बचाव करता है
- दिमाग के लिए अच्छा होता है
- रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है
- वजन को नियंत्रित करने में सहायक होता है
- मिनरल्स और विटामिन से भरपूर होता है
मुरमुरे खाने के नुकसान
- मुरमुरे के अधिक सेवन से डायबिटीज का खतरा हो सकता है,क्योंकि चावल का ग्लाइसेमिक इंडेक्स ज्यादा होता है, जो रक्त में ग्लूकोज का स्तर बढ़ा सकता है
- मुरमुरे में कार्बोहाइड्रेट भी होता है जो मोटापा का कारण हो सकता है