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जांच में खुलासा: कोल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए गायब कर दिए वित्तीय दस्तावेज

वन विभाग के अफसरों ने कागजी हेराफेरी कर पहुंचाया 1824.5 करोड़ का अनुचित लाभ
जांच में खुलासा: कोल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए गायब कर दिए वित्तीय दस्तावेज
अमित सिंह/न्यूज11 भारत




रांची: झारखंड की पहचान जल, जंगल और जमीन थी. मगर कुछ लालची अफसरों की वजह से अब इस राज्य की पहचान धूमिल हो रही है. भ्रष्टाचार, कमिशनखोरी और अवैध कारोबार से प्रदेश का नाम जुड़ रहा है. ऐसे में वन विभाग का एक बड़ा मामला सामने आया है. वन विभाग के अफसरों ने कोल कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए वित्तीय दस्तावेज गायब कर दिया. अफसरों ने सरकारी दस्तावेज सिर्फ इसलिए गायब किए ताकि वे कोल कंपनियों को फायदा पहुंचा सके. कोल कंपनियों को अरबों का फायदा पहुंचाने के लिए वन विभाग के अफसरों ने सारे नियम कानून को ताक पर रख दिया. यह खुलासा सरकार की जांच में हुआ है. इसके बाद पूरे मामले की विस्तृत जांच वन विभाग द्वारा की गई. उसके बाद पांच सदस्यीय जांच टीम का गठन कर सरकार जांच करवा रही है. फाइनल रिपोर्ट अभी सामने नहीं आई है. प्रारंभिक जांच में ही वन विभाग के अफसरों की हेराफेरी सामने आ गए है.

 


 

वन विभाग के अफसरों वित्तीय दस्तावेजों में हेराफेरी कर कोल कंपनियों को 1824.5 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ पहुंचाने का काम किया है. नार्थ कर्णपुरा की केरेडारी कोल माइनिंग परियोजना से जुड़ा है. इस क्षेत्र में खनन के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए 2050 करोड़ की समेकित वन्यजीव प्रबंधन परियोजना बनाई गई थी. वित्तीय दस्तावेज गायब कर योजना की लागत 225.25 करोड़ कर दी गई. पहले इसका खुलासा वन विभाग की आंतरिक जांच में हुआ. राज्य सरकार द्वारा कराए गए व्यापक जांच में कई खुलासे सामने आ रहे है. सरकार की जांच जैसे-जैसे आगे बढ रही है, वैसे-वैसे इस हेराफेरी में शामिल अफसरों के हाथ पांच फुलने शुरू हो गए है. इस मामले का दबाने के लिए वन विभाग के अफसर मुख्यालय में जोर अजमाइस में लगे हुए है.

 

परियोजना से प्रदूषण की चपेट में पांच लाख आबादी

 

रांची, चतरा, लोहरदगा और हजारीबाग के 3.146 लाख हेक्टेयर में नॉर्थ कर्णपुरा कोल ब्लॉक का फैलाव है. इसके 55200 हेक्टेयर में 60 से 100 कंपनियां आने वाले समय में करेंगी. कोल ब्लॉक के आवंटन से पहले खनन के दुष्प्रभाव को काम करने के लिए समेकित वन्यप्राणी प्रबंधन योजना बनाई गई थी. वन विभाग के सर्वे के मुताबिक बड़े स्तर पर खनन से क्षेत्र की प्राकृतिक, वनस्पति, जैव संपदा, वन्यजीव, वन्यजीवों का रास्ता और पांच लाख की आबादी बुरी तरह प्रदूषण की चपेट में आएगी.

 

प्रदूषण के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए बनी थी योजना 

 

प्रदूषण के दुष्प्रभाव को रोकने के लिए नवंबर 2015 में 2050 करोड़ की समेकित वन्यप्राणी प्रबंधन योजना तेयारी गई थी. योजना का वित्तीय लक्ष्य 10 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर खनन क्षेत्र निर्धारित किय गया. यह राशि खनन कंपनियों को मिलकर खर्च करना है. राज्य सरकार ने अगस्त 2018 में पीसीसीएफ वन्यजीव से नॉर्थ कर्णपुरा की समेकित योजना के अंतिम प्रारूप को स्वीकृति के लिए सौंपने का निर्देश दिया. पीसीएफ वन्यजीव का पदभार ग्रहण करने के बाद पीके वर्मा ने अध्ययन के दौरान पूरे खेल को पकड़ा था. अब नए सिरे से 2089 करोड़ की योजना बनाकर सरकार को भेजी गई. नए प्रस्ताव पर ही काम चल रहा है.

 

परियोजना के दुष्प्रभाव

 

-देश की सबसे बड़ी खनन परियोजना का वनस्पति, दो लाख हेक्टर वन और कृषि क्षेत्र, वन्यजीवों व उनके प्राकृतिक पर्यावास, पांच लाख की आबादी, जैव विविधता पर व्यापक दुस्प्रभाव पड़ेगा. 

-दामोदर नदी के तीन महत्वपूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र तेनुघाट, उत्तरी कोयल, पलमीर और फलगू प्रभावित होंगी.
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