Ranchi : टाटीसिलवे के स्वर्णरेखा नर्सिंग होम में अनोखा मामला, एक साल की बच्ची के पेट से ऑपरेशन कर डॉक्टरों ने निकाला बच्चा, विश्व में अब तक 200 से भी कम मिले है ऐसे मामले.
दरअसल रांची में एक अनोखा मामला सामने आया है. एक साल की बच्ची के पेट से डॉक्टरों में एक बच्चे को निकाला है. कुछ दिन पहले गिरिडीह के एक माता-पिता दर्द से कराहती अपनी एक साल की बच्ची को लेकर टाटीसिलवे स्थित स्वर्णरेखा अस्पताल पहुंचे. वे डॉक्टरों से मिन्नतें कर रहे थे कि मेरी एक साल की बेटी के पेट में बड़ा गोला हो गया है, दर्द से परेशान है. पेट में पूरी तरह सूजन बढ़ता जा रहा है. यह ठीक नहीं हो रहा. ऑपरेशन करके बचा बच्ची को बचा लीजिए. जब डॉक्टरों में जांच किया, बच्ची के पेट में सूजन की वजह जानने के लिए जब अल्ट्रासाउंड कराया गया तो डॉक्टरों को संदेह हुआ. उन्होंने बारी बारी से सोनोग्राफी, सीटी स्कैन और एमआरआई भी करा लिया. जांच के बाद पुष्टि हुई कि बच्ची के पेट में बच्चा है. अस्पताल के डॉ आलोक चन्द्र प्रकाश और उनकी टीम ने तुरंत ऑपरेशन का मन बनाया और सर्जरी कर बच्ची के पेट से अविकसित बच्चे को बाहर निकाला.
डॉ ने बताया कि ऑपरेशन के बाद बच्ची बिल्कुल स्वस्थ है, उसे अस्पताल से डिस्चार्ज भी कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि यह मामला खुद में ही काफी अनोखा मामला है. दुनिया भर में अब तक इस तरह के 200 से भी कम मामले मिले है. भारत के कुछ राज्यो में भी 5-6 मामले ऐसे मिल चुके हैं. इसे मेडिकल भाषा में फिटस इन फिटू कहा जाता है. यह काफी रेयर है, कहा जाता है कि ऐसे मामले 50 लाख में एक में पाए जाते हैं.
55 हजार में हुआ ऑपरेशन
डॉ के अनुसार, उक्त ऑपरेशन में कम से डेढ़ से दो लाख खर्च होते. चूंकि यह अनोखा मामला था और परिजन काफी गरीब थे, इस सभी को देखते हुए ऑपरेशन करीब 55 हजार में किया गया. डिस्चार्ज के दौरान बच्ची को 20 दिनों के बाद रिव्यू के लिए दोबारा बुलाया गया है. अस्पताल से जाते हुए बच्ची के परिजनों में चिकित्सकों का आभार जताया. परिजनों के पास किसी तरह का सरकारी योजना का लाभ भी नहीं था.
क्या है फिटस इन फिटू
एक्सपर्ट डॉक्टरों के अनुसार, फिटस इन फिटू मतलब भ्रूण के अंदर एक और भ्रूण. जब महिला और पुरुष का स्पर्म का विभाजन होता है और जुड़वा बच्चे होते हैं. लेकिन इस स्थिति में स्पर्म डिवीजन के बाद एक बच्चा विकसित होता है और दूसरा विकसित नहीं होता है. दूसरा पहले के शरीर में चिपका रह जाता है. 80% मामलों में भ्रूण विकसित हो रहे बच्चे के पीठ में चिपक जाता है और 20% मामलों में यह कमर के हड्डी या सिर की हड्डी में चिपक जाता है.