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रांची: मनरेगा के तहत किए गए बागवानी योजना से झारखंड के किसान विशेषकर महिला किसान आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े हैं. इस योजना से अकुशल श्रमिकों के जीवन, आजीविका के लिए दीर्घकालीन टिकाऊ परिसंपत्ति का निर्माण हुआ हैं. इसको लेकर उषा मार्टिन यूनिवर्सिटी के प्रबंध निकाय प्रोफेसर डॉ अरविंद हंस और उनके नेतृत्व में अध्ययन कर रहे प्रेमशंकर सहित अन्य ने राज्य के गुमला व खूंटी जिला के पांच प्रखंडों में 130 लाभुकों के उपर सर्वे किया. जिससे पता चला कि इस योजना से आर्थिक उन्नति के साथ सामाजिक और व्यक्तिगत पहचान दिलाने में इस योजना की महत्वपूर्ण भागीदारी रही है. वर्ष 2021 तक कुल 61,231 लाभुक परिवार इस योजना से जुड़े, जिन्होंने 52314 एकड़ जमीन में इस योजना का लाभ लिया. योजना में शामिल लाभुकों ने सर्वे में बताया कि 72.56 फीसदी महिलाओं ने दावा किया कि इस यह योजना समावेशी योजना के रूप में वे सफल रही. इस योजना में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का समावेश लगभग 83.76 फीसदी रहा. इस योजना में गैर सरकारी संगठनों, समुदाय आधारित संगठनों और विभागीय प्रशिक्षणा और सहायता के प्रावधान ने सीमांत वर्ग के परिवारों को आकर्षित किया और अधिकांश लाभार्थियों को सहायता सुनिश्चित की. साथ ही योजना से संकटकाल में 50 फीसदी परिवारों का पलायन भी रूका.
क्या थी योजना
वर्ष 2016 में खूंटी, गुमला, लातेहार, पाकुड़ जिलों के नौ प्रखंडों में एक पायलट के रूप में ग्रामीण विकास विभाग झारखंड सरकार द्वारा मनरेगा के तहत बागवानी शुरू की. आने वाले दिनों में इसकी सफलता को देखते हुए 24 जिलों में यह चलाई जाने लगी. बिरसा मुंडा बागवानी योजना के नाम से इसकी शुरूआत हुई. तब तीन वर्षो की योजना थी और इसमें मुख्य रूप से आम की बागवानी होती थी. वर्ष 2020 में इसका नामकरण बिरसा हरित ग्राम योजना किया गया. इसमें बदलाव करते हुए योजना के तहत लाभुकों को वर्षो तक सुविधाएं मिलने शुरू हुई. इसमें मिश्रित फलों में जैसे नींबू व स्थानीय विशेष की मांग पर आधारित उपज को बढ़ावा दिया गया. इससे गांव में आमदनी भी बढ़ी और रोजगार के नए मार्ग खुले.