न्यूज11 भारत
रांचीः आज से ठीक 47 साल पहले यानी 25 जून, 1975 तारीख को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला धब्बा कहा जाता है. जानकारी के अनुसार, इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी देशभर में आपातकाल घोषित किया था जो 21 मार्च 1977 तक यानी 21 महीने तक चला. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में देश में क्यों आपातकाल लगा और उसका क्या-क्या असर रहा...आइए जानते है...
21 महीनों के लिए लगा था आपातकाल
कहा जाता है कि 25 जून, 1975 तारीख को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन देशभर में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. अंग्रेजों से स्वतंत्र होने के बाद भारत के इतिहास में इसे सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल कहा गया. इस दौरान आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए, नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई थी. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी के आदेश पर भारी संख्या में राजनीतिक विरोधियों को कैद करके रखा गया था. उस वक्त प्रेस पर भी प्रतिबंध लगाई गई थी. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान भी चलाया गया था. इस समयावधि को जयप्रकाश नारायण ने 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था. अब चलिए आगे विस्तार से जानते है कि इस आपातकाल में क्या-क्या हुए थे और इसे भारतीय इतिहास के लोकतंत्र का काला अध्याय क्यों कहा जाता है.
देश में क्यों और कब लगता है आपातकाल
जब देश की कानून व्यवस्था बिगड़ने लगती है, बाहरी आक्रमण और वित्तीय संकट के हालत बदत्तर होने को होती है ऐसी अवधि में पूरे देश में आपातकाल की घोषणा की जाती है. लेकिन भारत में 25 जून 1957 में जो आपातकाल घोषित किया गया था उस आपातकाल का मतलब था कि इंदिरा गांधी जब तक चाहें सत्ता में रह सकती थीं. और अगर सरकार चाहे तो कोई भी कानून पास करवा सकती थी.
जेपी की चुनौती
उस वक्त गुजरात और बिहार में शुरू हुए छात्र आंदोलन का नेतृत्व भारतीय स्वतंत्रता सेनानी व लोकनायक जयप्रकाश नारायण कर रहे थे. हाईकोर्ट में चुनावी मुकदमा हारने के बाद उन्होंने 25 जून को इंदिरा गांधी को रामलीला मैदान से खुली चुनौती देते हुए उनसे इस्तीफा मांगा था.
इंदिरा गांधी पर लगे थे चुनाव में धांधली का आरोप
1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में बेचैनी दिखी. यह सब 12 जून को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले से हुआ, जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया, और उनपर 6 सालों तक कोई भी पद संभालने और चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लेकिन इंदिरा गांधी ने कोर्ट के इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया और मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को देशभर में आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई. कहा जाता है कि 25 और 26 जून की रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के दस्तखत के साथ देश में आपातकाल लागू हो गया था. अगली सुबह रेडियो पर इंदिरा ने कहा, "भाइयों और बहनों, राष्ट्रपति जी ने आपातकाल की घोषणा की है. इससे आतंकित होने का कोई कारण नहीं है."
छोटे-बड़ें नेताओं की हुई थी भारी गिरफ्तारी
आकाशवाणी पर प्रसारित अपने एक संदेश में इंदिरा गांधी ने यह भी कहा था कि, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील कदम उठाए हैं, तभी से मेरे खिलाफ गहरी साजिश रची जा रही थी." वहीं देश में आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिस, मोरारजी देसाई, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी समेत कई बड़ें नेताओं को जेल में बंद कर दिया गया था. कहा जाता है कि छोटे-बड़े समेत लोगों की इतनी गिरफ्तारी की गई थी कि जेल में जगह भी कम पड़ गई थी.
20 फीसदी बढ़ी थी महंगाई
महंगाई आसमान छूने लगी थी. खाने-पीने के दाम 20 गुना बढ़ गए थे जिसकी वजह से सरकार की आलोचना शुरू हो गई. कांग्रेस के अंदरूनी गुटों ने सरकार की नीतियों का विरोध शुरू कर दिया था. जिस कारण इंदिरा सरकार चारों तरफ से पस्त हो गई थी.
प्रेस की काट दी गई बिजली
उस वक्त आपातकाल का मतलब मीडिया की आजादी का छिन जाना था. जेपी की रामलीला मैदान में हुई 25 जून की रैली की खबर देश में न पहुंचे इसलिए दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित अखबारों के दफ्तरों की बिजली रात में ही काट दी गई. ताकि खबरें अखबरों में छपे ही नहीं. इतना ही नहीं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने पांच सूत्री एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया. इसमें नसबंदी, वयस्क शिक्षा, दहेज प्रथा को खत्म करना, पेड़ लगाना और जाति प्रथा उन्मूलन शामिल था. इस बीच सिर्फ 19 महीने में देशभर में करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई थी.