सिमडेगा: सिमडेगा में पिछले कई वर्षों से गज का राज कायम है. मतवाले जंगली हाथियों का अवगमन जिले के बोलबा, ठेठईटांगर, बांसजोर और बानो में ऐसे होने लगा है, जैसे मानों गांव नहीं जंगल हो. हाथी भरी बरसात लोगों को कर रहा बेघर और वन विभाग हाथियों को भगाने में खामोशी अख्तियार किए हुए है. अब तो ऐसा लगने लगा है कि इन ग्रामीण क्षेत्रों में गज' राज कायम हो गया है.
उजड़ा हुआ तहस-नहस घर, बरसात में भीगते लोग. बेतरतीब पेड़ पौधे और रौंदे हुए खेत. ये नजारा अब सिमडेगा की नियती बनती जा रही है. जंगली हाथियों का आतंक से थर्राने लगा है जिला का ग्रामीण इलाका. हाथी लगातार कर रहा तबाही और वन विभाग तमाशबीन बना खामोशी से इन ग्रामीणों की तकदीर मान बैठा है. तभी तो हाथी मस्तमौले जिला के ग्रामीण क्षेत्रों में विचरण कर रहे हैं और वन विभाग उन्हें घूमता फिरता मजे से देख रहा है. मानो यह जिला का गांव नहीं कहीं का जंगल हो.
तिनका तिनका जोड़ कर सुन्दर नीड़ बनाया था. आशा और विश्वास से रंग कर मन से इसे सजाया था. ऐसा आया हाथी यहां कि सब उजड़ गया, किया धरा सब मिट्टी में मिल गया, न जाने मेरा घर किधर गया. सिमडेगा के बोलबा, ठेठईटांगर और बानो प्रखंड के ग्रामीण प्रतिदिन यही सोंच रहे हैं. वर्षो से इन क्षेत्रों में हाथियों के तबाही मचाते हुए हैं. इस बीच हाथियों ने कई दर्जन घरों को ध्वस्त कर भरी बरसात ग्रामीणों को बेघर कर दिया है. गजराज के इस तरह लगातार आक्रमण से भयभीत है लोग. हाथियों ने एक तरफ जहाँ ठेठईटागंर प्रखंड के ताराबोगा, दुमकी और कोरोमिया पंचायत में तबाही मचाये हुए कईयों के आशियाने उजाडे और लोगों को बेघर किया. वहीं बोलबा के तलमंगा, आलिंगुढ, सरईजोर सहित कई गांवों में हाथियों ने तांडव मचाया और लोगों के घरों को तोड़ कर रखे अनाज खा गये. वहीं बानो के कई ईलाकों में हाथी ने तबाही मचा दी है. जंगलों से घिरे इन गांवों में बसने वाले गरीब परिवार के सामने अब सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि करें तो क्या करें, जाए तो कहां जाए.
एक तरफ तो कोरोना का डर, दुसरी तरफ गजराज का आतंक. कोरोना संक्रमण काल लगातार दो वर्षों में लोगों की आर्थिक स्थिति वैसे हीं तबाह कर दी है. बहुतों का काम धंधा बंद रहने से इन सबका परिवार आर्थिक तंगहाली से गुजर रहा है. धीरे धीरे कोरोना का प्रभाव कम होने से लोग खेती बारी में जुटे तो इसपर हाथियों का बार-बार तांडव करेला उस पर नीम चढ़ा साबित हो रहा है. हाथियों के उपद्रव से इनके घरों में रखे हुए चावल आदि अनाज, बर्तन, सब तहस नहस हो गया है और उपर से बरसात इनके इस हालत पर जले में नमक झिडकने जैसा काम कर रहा है.
सिमडेगा के दोनो विधानसभा क्षेत्र के विधायकों ने भी क्षेत्र का दौरा कर वन विभाग से मदद का आश्वासन दिलवाया. मगर बात आई गई हो गया। कई बेखबर हो गए. वहीं वन विभाग भी हाथियों को सिमडेगा की तकदीर मान बैठा है. क्षेत्र में हाथी समस्या पर सिमडेगा सह बोलबा रेंजर शंभुचरण चौधरी से जब इस विषय पर बात की गई तो उन्होने कहा हाथियों को भगाने का कोई स्थाई उपाय नहीं है. वहीं कोलेबिरा विधायक प्रतिनिधि सम्मी आलम भी इस मामले में हाथ खडा करते हुए कहते हैं कि किसी जनप्रतिनिधि और सरकार के पास हाथी का स्थाई उपाय नहीं है.
अब विभाग और जनप्रतिनिधि जब दोनो ने हाथ खडे कर दिए तो बेचारी गरीब जनता राहत की उम्मीद लेकर कहां जाए. आज ये एक बडा सवाल है. जो यहां के ग्रामीण अपने रहनुमाओं से कर रहे हैं. गौरतलब है कि पूर्व के वर्षों में भी हाथियों का आगमन इस क्षेत्र में होता था, मगर उस वक्त के वन पदाधिकारी तत्काल बांकुडा से टीम बुला कर हाथियों को भगाते थे. लेकिन अब तो लगता है कि यहां के ग्रामीणो के किस्मत की लकीरों में हाथियों और वन विभाग ने ग्रहण लगाने की ठान ली है.