कौशल आनंद, न्यूज11 भारत
रांचीः झारखंड में बिजली की महत्वपूर्ण संस्था झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग में 50 करोड़ की वित्तीय अनियमितता हुई है. अनियमितता का दायरा और बढ़ सकता है, अगर आयोग में हुए लेखा-जोखा का ऑडिट हो. आय और व्यय की पूरी जांच होने पर आयोग के कई जिम्मेवार अवैध कमाई के घेरे में आ जाएंगे. यहीं वजह है कि खुद को बचाने के लिए आयोग के जिम्मेवारों ने निधि नियामवली एवं लेखा का फॉर्मेट विद्युत अधिनियम के तहत नहीं कराया. इतना ही नहीं, आयोग का 8 साल से ऑडिट नहीं होने दिया.
विद्युत नियामक आयोग में कानून एवं नीति-नियम के तहत काम नहीं हो रहा है. जिम्मेवार मन मर्जी काम कर रहे हैं. आय और व्यय में इतने झोलझाल है कि महालेखाकार, एजी ने ऑडिट करने से इनकार कर दिया है. ऊर्जा विभाग को पत्र लिखकर एजी ने बताया है कि आयोग संचालन विद्युत अधिनियम के तहत नहीं हो रहा है. इसे लेकर कई बार आपत्ति दर्ज करायी. कई बार पत्राचार उर्जा विभाग एवं आयोग को किया गया, मगर कोई कारवाई नहीं हुई. आयोग में वित्तीय आय व्यय का लेखा-जोखा का तक संधारण कर नहीं रखा गया है.
न्यूज11 भारत ने झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग के जिम्मेवारों से 50 करोड़ के वित्तीय अनियमितता के संबंध में बातचीत करने की कोशिश की, लेकिन किसी ने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. आयोग में चेयरमैन, मेंबर सहित कई पद रिक्त हैं. आयोग फरवरी 2021 से डिफंग है.
चेयरमैन अरविंद प्रसाद के समय करोड़ों खर्च
तत्कालीन चेयरमैन अरविंद प्रसाद ने किया सबसे ज्यादा खर्च किया है. उनके कार्य काल में आय व्यय का लेखा-जोखा का रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है. नियमावली को दरकिनार कर 25 करोड़ खर्च किया गया है. जांच होने पर खर्च की सच्चाई सामने आ जाएगी. वर्ष 2017 में अरविंद प्रसाद आयोग के चेयरमैन बने थे. आयोग में करोड़ों के वित्तीय अनियमितता पूर्व के जो भी चेयरमैन रहे, उनके कार्यकाल में हुए हैं.
फॉरमेट तैयार नहीं हुआ तो नहीं करेंगे ऑडिट- एजी
ऊर्जा विभाग को पत्र लिखते हुए एजी ने निर्देश दिया है कि राज्य सरकार के विद्युत अधिनियम के तहत निधि नियामवली एवं लेखा का फारमेट तैयार कराए. एजी ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर विद्युत अधिनियम के तहत निधि नियामवली एवं लेखा का फॉर्मेट तैयार नहीं होता है, तो वह आयोग के लेखा का ऑडिट नहीं करेगा. बिना फॉरमेट करने में सक्षम नहीं होगा.
उर्जा विभाग तय करे कैसे तैयार होगा फॉरमेट
सीएजी ने इसी एक अक्टूबर 2021 को उर्जा विभाग एवं विद्युत नियामक आयोग को फिर एक बार पत्र भेजते हुए कहा है कि वर्ष 2012-13 के बाद से खर्चों का अकाउंट और उसका फॉरमेट कैसे तैयार हो यह तय करे. एजी के पत्र से यह साफ हो गया है कि पूर्ववर्ती सरकार के समय उर्जा विभाग ने आयोग के लिए अलग से नियमावली बना दिया दिया था.
वर्ष 2019 से ही एजी कर रहा है पत्राचार
नियामक आयोग में निधि नियामवली एवं लेखा का फॉर्मेट तैयार कराने के लिए एजी 2019 से लागतार पत्राचार कर रहा है. एजी बार-बार कहां कि फंड रूल और फारर्मेट ऑफ एकाऊंट सीएजी के परामर्श से आयोग तैयार करवा लें. ताकि उसके आधार पर आयोग का बैंक अकाउंट बंद करते हुए, पीएल अकाउंट खोला जा सके. आयोग का पैसा पीएल अकाउंट में ही रखा जाए. एजी की आपत्ति के बाद भी आयोग के जिम्मेवार पीएल अकाउंट के बजाए, आयोग के निजी अकाउंट में रखते हुए मनमर्जी ढंग से करोड़ों खर्च कर दिए. आयोग का निजी अकाउंट इडियन बैंक में है, जिससे लेन-देन हो रहा है.
जानें क्या है नियम : एजी से ऑडिट कराना अनिवार्य
राज्य सरकार के सभी विभाग और बोर्ड-निगमों का महालेखाकार से ऑडिट कराना अनिवार्य है. नियमत: आय व्यय के ऑडिट की अनिवार्यता है. विद्युत अधिनियम 2003 में इसके लिए प्रावधान किया है.
अधिनियम में धारा 103, 104 में कहा गया है कि झारखंड राज्य विद्युत नियामक आयोग को जो भी पैसे मिलेंगे, उसके लिए एक निधि की स्थापना होगी. सीएजी के परामर्श से राज्य सरकार द्वारा यह तय किया जाएगा कि वार्षिक लेखा का संधारण कैसे होगा.
धारा 104 के (2) में स्पष्ट कहा गया है कि आयोग के लेखा संधारण के प्रारूप राज्य सरकार निर्गत करेगी, जो भारत के नियंत्रक लेखा परीक्षक के अनुमोदन पर होगा. लेकिन नियम के तहत फॉर्मेट नहीं होने के कारण आठ साल से आयोग के लेखा का ऑडिट नहीं हुआ.
सरकारी आदेश के बाद भी अकाउंट नहीं हुआ क्लोज
राज्य सरकार के 2007 में निर्गत अधिसूचना के अनुसार सभी निगम-बोर्ड एवं आयोग का बैंक अकाउंट क्लोज करना था और पीएल अकाउंट खोलना था. सभी पैसे पीएल अकाउंट में रखना था. सरकार के इस आदेश के विपरित उर्जा विभाग ने वर्ष 2009 में विद्युत नियामक आयोग के लिए अलग से निधि नियामवली बना दिया. इतना ही नहीं, आयोग को प्राप्त सारा पैसा बैंक में रखने का प्रावधान कर दिया.
आयोग को इन श्रोत से प्राप्त होता है पैसा
- सरकार का अनुदान : 3 से 4 करोड़ रुपए
- टेरिफ निर्धारण का शुल्क : 2 करोड रुपए
- एनुअल लाइसेंस डिस्कॉम से आने वाला शुल्क : 50 लाख
- पिटिशन सुनवाई के एवज में शुल्क : 5 लाख रुपए
- फरवरी से डिफंग है आयोग
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राज्य का महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था झारखंड विद्युत नियामक आयोग आगामी 19 फरवरी को पूरी तरह से डिफंग (निष्क्रिय) पड़ा हुआ है. 19 फरवरी 2021 को आयोग में बचे अंतिम सदस्य (विधि) प्रवास कुमार सिंह आयोग छोड़ दिया. प्रवास कुमार सिंह को केंद्रीय नियामक आयोग का विधि सदस्य बनाए जाने के कारण वे चले गए. पिछले वर्ष जून में निवर्तमान चेयरमैन अरविंद प्रसाद के इस्तीफा दे दिया जबकि मेंबर तकनीक आरएन सिंह 9 जनवरी को सेवानिवृत हो चुके हैं.