रांची: राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने रिम्स को सुपरस्पेशलिटी में तब्दील करने और यहां की व्यवस्था को सुधारने का बीड़ा भी उठाया है. इसी क्रम में अस्पताल में अत्याधुनिक मशीन और विभागों को शुरू कर अपग्रेड करने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है. मगर यहां इलाज के लिए आने वाले मरीजों को प्रबंधन ना तो ट्रॉलीमैन दिला पा रहा है और ना ही ट्रॉली. जबकि ट्रॉली एवं ट्रॉली मैन की सुविधा अस्पताल में मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं में से एक है. लेकिन रिम्स की स्थिति ऐसी हो गई है कि यहां मरीजों को मूलभूत सुविधाएं तक नहीं मिल रही है.
मूलभूत सुविधा नहीं मिल पाने से रिम्स में इलाज के लिए पहुंचे विकास के परिजनों को भी परेशान होना पड़ा. विकास के पिताजी ने बताया कि वह बिहार से अपने बेटे को इलाज के लिए लाया था. विकास के पैरों में तकलीफ है और वह चलने में असमर्थ है. जांच के लिए ऑर्थो ओपीडी में डॉ विजय कुमार को दिखाया. जांच के बाद डॉक्टरों ने उसे ऑर्थो वार्ड में ले जाने की सलाह दी . ऑर्थो वार्ड जाने के लिए ट्रॉली की जरूरत पड़ी, इसलिए इमरजेंसी गेट के पास खड़े ट्रॉली मैन को मदद के लिए कहा मगर उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि यह ट्रॉली एंबुलेंस से आने वाले गंभीर मरीजों के लिए है आप अंदर जाकर बात कर ले. कर्मचारियों की बात सुनकर मैं अंदर गया लेकिन वहां भी किसी ने ट्रॉली के लिए मदद नहीं की.
कई घंटों बाद खुद किया ट्रॉली का इंतजाम :
विकास के पिता ने बताया कि इमरजेंसी के पास कई घंटे खड़े रहकर ट्रॉली खाली होने का इंतजार किया. लेकिन कोई भी ट्रॉली खाली नहीं मिलने लगी. अस्पताल परिसर के चक्कर लगाए, ट्राली में वार्ड से बाहर निकलने वाले कई मरीज के परिजनों से बात की. तब जाकर एक ट्रॉली खाली हुई उसे लेकर मैं अपने बेटे के पास ले आया.
रिम्स के पास 60 से अधिक है ट्रॉली मैन :
हर तरफ से हताश और परेशान मरीजों को इलाज से पहले रिम्स की सबसे बड़ी बीमारी से सामना करना पड़ता है वो है कामचोरी रिम्स में अक्सर परिजन मरीजों को खुद ही ट्रॉली या स्ट्रेचर पर इधर से उधर ले जाते नजर आते हैं.जबकि हकीकत ये है की RIMS में 60 से अधिक ट्रॉली मैन नियुक्त हैं.
परिजन इंतजार करना नहीं चाहते : डॉ डीके सिन्हा, जनसंपर्क अधिकारी सह सर्जन
वही रिम्स के जनसंपर्क अधिकारी सह सर्जन डॉ डी के सिन्हा ने बताया कि ट्रॉली मैम की संख्या पर्याप्त है, लेकिन कई बार परिजन इतनी हड़बड़ी में होते हैं कि इंतजार तक करना नहीं चाहते. और खुद ही ट्रॉली लेकर चले जाते हैं.