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रांची: दिल्ली हाईकोर्ट ने महिलाओं के अधिकार के संबंध में बड़ा बयान दिया है. कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को पढ़ने या बच्चा पैदा करने में से किसी एक विकल्प को चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. भारतीय संविधान अपने नागरिकों के लिए एक समतावादी समाज की परिकल्पना करता है. कोर्ट ने मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी द्वारा 2 वर्षीय एमएड (मास्टर ऑफ एजुकेशन) की पढ़ाई कर रही महिला को राहत देते हुए यह टिप्पणी की.
जस्टिस कौरव ने एमएड की छात्रा की याचिका पर यूनिवर्सिटी को निर्देश दिया कि उसे 59 दिनों का मातृत्व अवकाश देने का विचार करे. अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर याचिकाकर्ता कक्षा में 80 फीसदी उपस्थिति के मानदंड को पूरा करती है तो उसे बिना किसी देरी के परीक्षा में शामिल देने की अनुमति दी जाएगी. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि 'महिलाओं को शिक्षा के अपने अधिकार और बच्चा पैदा करने के अधिकार के बीच विकल्प चुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.'
यूनिवर्सिटी ने महिला को मैटरनिटी लीव देने से कर दिया था इनकार
बता दें, महिला याचिकाकर्ता ने दिसंबर, 2021 में चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में 2 वर्षीय के मास्टर कोर्स के लिए दाखिला लिया था. उन्होंने मातृत्व अवकाश के लिए यूनिवर्सिटी डीन और कुलपति के पास आवेदन दिया था, जिसे यूनिवर्सिटी ने 28 फरवरी को खारिज कर दिया था. इसके खिलाफ छात्रा ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.
मातृत्व अवकाश मिलना भी महिलाओं का अधिकार है- कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने हाल ही में एमएड छात्रा की याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान ने एक समतावादी समाज की परिकल्पना की है, जिसमें नागरिक अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं. समाज के साथ-साथ राज्य भी उन्हें इसकी अनुमति देता है. कोर्ट ने आगे कहा कि सांविधानिक व्यवस्था के मुताबिक, किसी को शिक्षा के अधिकार और प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार के बीच किसी एक का चयन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. लोगों को शिक्षा का अधिकार मिला हुआ है और मातृत्व अवकाश मिलना भी महिलाओं का अधिकार है.