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रांची/डेस्क: लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान होते ही देशभर में राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार प्रसार तेज कर दिए हैं. इस राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी कांग्रेस को 24 घंटे के अंदर एक के बाद एक तीन बड़े झटके मिले है.
गौरव वल्लभ ने हाथ का साथ छोड़ थामा BJP का दामन
दरअसल, पार्टी ने तीन बड़े चेहरे गंवा दिए है. आपको बता दें, आज गुरूवार (4 अप्रैल) सुबह पार्टी के तेजतर्रार प्रवक्ता गौरव वल्लभ ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया है इसके अलावे एक दिन पहले यानी बुधवार (3 अप्रैल) को अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज विजेंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी पार्टी का दामन थाम लिया था इनके बीजेपी ज्वॉइन करने के कुछ ही घंटे बाद कांग्रेस ने संजय निरुपम को पार्टी से निकाल दिया था. बता दें, ये तीनों नेता हरियाणा (विजेंदर सिंह), महाराष्ट्र (संजय निरुपम) और राजस्थान में बड़े चेहरे माने जाते हैं. चुनाव के बीच कांग्रेस को यह बड़ा नुकसान माना जा रहा है.
राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे को भेजा त्यागपत्र, पार्टी को बताया दिशाहीन
आपको बता दें, उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे त्यागपत्र भेजा है जिसमें उन्होंने पार्टी को दिशाहीन बताया उन्होंने अपने पत्र में साफ तौर से यह भी कहा है कि वे सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकते हैं अपने एक्स सोशल हैंडल पर उन्होंने एक पोस्ट शेयर करते हुए कहा है कि मैंने जिस वक्त पार्टी ज्वॉइन की थी तब की कांग्रेस और अब की कांग्रेस में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है पार्टी इस वक्त दिशाहीन तरीके से आगे बढ़ रही है जिससे में सहज महसूस नहीं कर पा रहा हूं.
सनातन विरोधी नारे नहीं लगा सकता- गौरव वल्लभ
गौरव वल्लभ ने आगे लिखते हुए कहा है कि मैं ना तो सनातन विरोधी नारे लगा सकता हूं और ना ही सुबह-शाम देश के वेल्थ क्रिएटर्स को गाली दे सकता हूं इसलिए मैं कांग्रेस पार्टी के सभी पदों और प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे रहा हूं. "धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः तस्माधर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्", श्लोक का करते हुए गौरव वल्लभ ने कहा है कि, अयोध्या में प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा में कांग्रेस पार्टी के स्टैंड से मैं क्षुब्ध हूं. मैं जन्म से हिंदू और कर्म से शिक्षक हूं, पार्टी के इस स्टैंड ने मुझे हमेशा से असहज किया है और परेशान किया है. गठबंधन और पार्टी से जुड़े हुए कई लोग सनातन के विरोध में बोलते हैं. और ऐसे समय में पार्टी का उसपर चुप रहना, उसे मौन स्वीकृति देने जैसा है.