के एन यादव/न्यूज़ 11 भारत
दुमका/डेस्क:-नन्हे हाथों को कठोर काम करते देखकर लोगों का हृदय द्रवित हो जाना चाहिए मगर ऐसा होता नहीं है जहां संपन्न परिवार के बच्चे अच्छे और महंगे स्कूल में पढ़ते हैं वहीं दूसरी तरफ गरीब और मध्यम वर्ग तब के के कई बच्चे ऐसे हैं जिनके माता-पिता है अभिभावकों की निर्दयता की कारण वह भारी भरकम ईंट ढोकर बाल मजदूरी कर रहे हैं. जिस उम्र में बच्चों को खेलना कूदना और पढ़ना लिखना चाहिए. वह ना चाहते हुए भी चंद पैसों और गैर जिम्मेदाराना अभिभावकों के निम्न स्तरीय सोच के कारण बाल मजदूरी करते देखा जा रहा है. वैसे तो किसी भी प्रकार के काम के माध्यम से बच्चों का शोषण करना बाल मजदूरी कहलाता है जिन्हें नियमित स्कूल जाने की उनकी क्षमता में ह्रास आता है. इससे उन्हें मानसिक शारीरिक और सामाजिक व नैतिक रूप से उन्हें हानि पहुंचती है. मसलिया प्रखंड के न्याडीह क्षेत्र के विभिन्न ग्रामीण इलाकों में इन दिनों ईंट भट्ठों का कारोबार काफी जोर-शोर से चल रहा है.व कुछ लोग व्यावसायिक नजरिए से यह काम कर रहे हैं जबकि कुछ लोग अपने घर में उपयोग के लिए एट भट्ठा लगा रहे हैं. लेकिन इन सब के बीच बाल मजदूरी धड़ल्ले से चल रहा है. व्यावसायिक ईंट भट्ठों के मालिक कम मजदूरी में अपना काम निकालने के लिए अधिक मुनाफा पाने के लिए बाल मजदूरी करवा रहे हैं. तो कहीं मजदूरों के खर्च को बचाने के लिए बच्चों से मजदूरी करवा रहे हैं. ग्रामीणों ने बताया की खीर बनी गांव के जितेंद्र कुमार शाह यह धंधा 4 वर्षों से कर रहे हैं इसमें एक भट्ठा में एट जमा करने के लिए सिर्फ नाबालिक व स्कूली बच्चों का सहारा लेते हैं.
इस संदर्भ में मसलिया के अंचल निरीक्षक अरविंद कुमार से पूछे जाने पर बताया कि बाल मजदूरी काफी शर्माना और गैरकानूनी है बाल मजदूरी की रोकथाम के लिए प्रखंड स्तरीय बाल संरक्षण समिति भी गठित है. समय-समय पर निगरानी भी करती है. अगर कोई व्यक्ति इस तरह का कार्य करते हुए पकड़ा गया तो कठोर कार्रवाई की जाएगी. जहां तक इन भट्ठों में कार्य करने का सवाल है तो इसकी जांच कराया जाएगा. वहीं अंचल अधिकारी रंजन यादव से बात करने का प्रयास किया गया तो फोन बंद बताया.