न्यूज 11 भारत
रांची : दीपावली समाप्त होते ही छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो गई है. चार दिन तक चलने वाला छठ एक साधारण पूजा नहीं बल्कि महापर्व है. जिसकी शुरूआत नहाए-खाए के साथ 8 नवंबर को होगा. दूसरे दिन 9 नवंबर को खरना पूजा आयोजित होगा. उसके अगले दिन डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा का समापन होगा. 10 नवंबर को पहला व 11 नवंबर को दूसरा अर्घ्य होगा.
छठ पूजा की क्या है परंपरा
छठ पर्व से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है. कार्तिक मास में भगवान सूर्य की पूजा की परंपरा है. शुक्ल पक्ष में षष्ठी तिथि को इस पूजा का विशेष विधान है. इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और झारखण्ड से हुई जो अब देश-विदेश तक फैल चुकी है. अंग देश के महाराज कर्ण सूर्य देव के उपासक थे, इसलिए परंपरा के अनुसार इस इलाके पर सूर्य पूजा का विशेष प्रभाव दिखता है.
जाने क्यों होती है सूर्य की विशेष उपासना
कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है, इसलिए सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है ताकि स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें. षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है, इसलिए सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है. विज्ञान के अमुसार इस माह में सूर्य उपासना से से हम अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य का बेहतर स्तर बनाए रख सकते हैं.
महापर्व छठ पूजा की विधि
यह पर्व कुल मिलाकर चार दिनों तक चलता है. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को "नहाए-खाए" के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है. इस दिन से स्वच्छता की स्थिति अच्छी रखी जाती है. पहले दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है.
इसे भी पढ़ें, जब्त ट्रैक्टर को छुड़वाने के लिए पुलिस पर पथराव, कई पुलिस जवान घायल
खरना के दिन खीर का विशेष महत्व
छठ के दूसरे दिन को "खरना" कहा जाता है. इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन करते हैं. तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. साथ में विशेष प्रकार का पकवान "ठेकुआ" और मौसमी फल चढ़ाया जाता है. अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है. चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद कच्चा दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है.