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सिमडेगा/डेस्क: भगवान भुवन भास्कर को समर्पित आस्था और पवित्रता का महापर्व चैती छठ पूजा का सोमवार को चौथा और आखिरी दिन है. वर्तियो ने उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर चार दिनों से चले आ रहे व्रत की पूर्णाहुति की. चैती छठ पर्व की शुरुआत शुक्रवार को नहाय-खाय से हुई थी. शनिवार के दिन खरना और रविवार के दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया गया था. व्रत के चौथे दिन सोमवार को उदयीमान सूर्य को ऊषा अर्ध्य देने के बाद चार दिन तक चलने वाले इस त्योहार का समापन हुआ. सिमडेगा के केलाघाघ सूर्य मंदिर सरोवर तट पर सैकड़ो वार्तियों ने उदयाचल गामी भगवान भुवन भास्कर को अर्घ्य अर्पित करते हुए छठी मईया से अगले साल फिर से आने की कामना की. व्रती पानी में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्य की वंदना कर छठी मईया से सुख और सौभाग्य का आशीर्वाद मांगे.
भौतिक संसार में सूर्य ही एकमात्र देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते है. सूर्य ही हमारे जीवन का स्त्रोत है. चाहे अपनी रोशनी से हमें जीवन देना हो या हमें भोजन देने वाले पौधों को भोजन देना सूर्य का सम्पूर्ण जगत आभारी है. हम आजीवन उनके उपकारों से लदे रहते है. सूर्य अंधकार को विजित कर चराचर जगत को प्रकाशमान करते है. इसलिए सूर्य की स्तुति में सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र पढ़ा जाता है और उनकी स्तुति का सबसे बड़ा पर्व मनाया जाता है छठ. हिन्दू धर्म में सूर्य उपासना का बहुत महत्व है. छठ पूजा के दौरान क केवल सूर्य देव की उपासना की जाती है, अपितु सूर्य देव की पत्नी उषा और प्रत्यूषा की भी आराधना की जाती है. अर्थात प्रात:काल में सूर्य की प्रथम किरण ऊषा तथा सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है.
ऐसी मान्यता है कि छठ माता भगवान सूर्य की बहन हैं और उन्हीं को खुश करने के लिए महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए इन्ही को साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना करते हुए नदी, तालाब के किनारे छठ पूजा की जाती है.