न्यूज11, भारत
रांची: झारखंड की राजधानी रांची में बने सिक्स लेन वाले रिंग रोड के भूमि अधिगृहण को लेकर हुए मुआवजे का भुगतान का मामला हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका के बाद सामने आया. डब्ल्यूपीसी 302 ऑफ 2019 में याचिकाकर्ता राजेश सिंह की तरफ से यह बात कही गयी कि किस तरह गलत मुआवजे का भुगतान तत्कालीन जिला भू अर्जन पदाधिकारी रहे सौरभ प्रसाद के द्वारा की गयी. याचिका में प्रमंडलीय आयुक्त, रांची के उपायुक्त, एसएआर कोर्ट के प्रशासी पदाधिकारी, तत्कालीन कानूनगो फिरोज अख्तर समेत तत्कालीन झामुमो विधायक रहे पौलुस सुरीन को भी पार्टी बनाया गया है. सूत्रों का कहना है कि खाता 18 में जिस घसिया उरांव को 87 लाख रुपये के मुआवजे का भुगतान किया गया. वह जमीन उनकी थी ही नहीं. इस मामले पर जिला भू अर्जन कार्यालय की तरफ से नामकुम अंचल के तत्कालीन अंचल अधिकारी से जमीन की वास्तविकता को लेकर कोई रिपोर्ट तक नहीं मंगायी गयी. सिर्फ ऑनलाइन रजिस्टर टू को देख कर भुगतान करने का आदेश दे दिया गया.
किसी भी जमीन अधिगृहण के मामले में मुआवजे का भुगतान करने से पहले रैयत की मिल्कियत और अन्य दस्तावेजों के संबंध में रिपोर्ट मांगने का नियम है. इतना ही नहीं वंशावली सत्यापन का काम भी करवाना जरूरी है, ताकि बाद में मुआवजे को लेकर कोई चिकचिक न हो. इतना ही नहीं अंचल से रिपोर्ट आने के बाद जिला भू अर्जन कार्यालय में पदस्थापित अंचल निरीक्षक सह कानूनगो की रिपोर्ट ली जाती है. साथ ही डीएलएओ कार्यालय में पदस्थापित अमीन का रिपोर्ट भी जरूरी है. डीएलएओ कागजी कार्रवाई पूरा करने के पहले मुआवजा पानेवाले व्यक्ति से उसका आधार कार्ड, लाभुक का बैंक खाता, बॉंड पेपर और सरकारी अधिकारी (गैजेटेड रैंक वाले) से अभिप्रमाणित कराने की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं.
इसके बाद ही लाभुक को डीएलएओ कार्यालय की तरफ से ट्रेजरी चेक दिया जाता है. क्या तत्कालीन डीएलएओ सौरभ प्रसाद ने इन सारी कागजी फारमलिटीज की अनदेखी कर भुगतान कर दिया. यह बड़ा सवाल है. चुंकि हाईकोर्ट में जिले के उपायुक्त और प्रमंडलीय आयुक्त भी पार्टी बनाये गये हैं. इसलिए भुगतान किये गये मुआवजे की राशि की वसूली का दवाब भी जिला भू अर्जन कार्यालय पर अधिक है. इसके लिए सर्टिफिकेट केस करने का आदेश जारी कर दिया गया है. पर किन कारणों से इस पर अमल नहीं हो पा रहा है. इस पर कोई कुछ बताने से बच रहा है.