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रांची: भगवान बिरसा मुंडा के नाम से प्रचलित राज्य के एकमात्र कृषि विश्वविद्यालय में 146वीं बिरसा जयंती का आयोजन किया. यह समारोह झारखण्ड की पारंपरिक रीति रिवाज, सांस्कृतिक धरोहर एवं आदिवासी पहचान पर केन्द्रित कर धूम-धाम से मनाया गया. छात्र-छात्राओं का विवि परिसर में बिरसा मुंडा के उलगूलान क्रांति पर आधारित सांस्कृतिक शोभा यात्रा आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा. परिसर स्थित बिरसा मुंडा के आदमकद प्रतिमा पर कुलपति, वरीय पदाधिकारियों, वैज्ञानिकों, कर्मचारियों, छात्रों एवं बिरसा किसानों ने पुष्प अर्पित कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया.
विवि के आरएसी सभागार में मुख्य समारोह आयोजित किया गया. छात्राओं के समूह ने जोहार सलाम आप सबकों गीत से सबों का स्वागत किया. लोटा पानी से अतिथियों को पवित्र एवं पुष्प गुच्छ भेंट की. मौके पर 7 वें सेमेस्टर के छात्राओं ने ‘बिरसा भगवान लागे झारखण्ड शान’ गीत तथा ‘मुझे झारखण्ड कर गाँव शहर रे, सगरों लागे सुंदर रे’ लोकगीत पर नृत्य से दर्शको को मंत्र मुग्ध किया. मौके में विवि के कर्मचारियों ने भी लोकगीत गया. मौके पर हॉर्टिकल्चर कॉलेज की छात्रा विशालाक्षी तथा एग्रीकल्चर कॉलेज के छात्र नीरज कुमार ने अपने विशेष व्याख्यान में बिरसा मुंडा की 25 वर्षो की जीवनी पर प्रकाश डाला. समारोह का उद्घघाटन मुख्य अतिथि कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने की. मौके पर उन्होंने राज्य के कुल 39 बिरसा किसानों को विभिन्न उत्कृष्ट कार्यो हेतु प्रशस्ति पत्र एवं शाल ओढाकर सम्मानित किया. विवि द्वारा विकसित 8 फसलों के 10 उन्नत किस्मों को राज्य के किसानों को समर्पित करने की घोषणा की. कुलपति ने विशेष व्याख्यान एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम में बेहतर प्रदर्शन हेतु छात्रों को प्रशस्ति पत्र देकर पुरूस्कृत किया. उन्होंने प्रदेश के किसानों की दशा एवं दिशा में सुधार ही विवि का झारखण्ड के महानायक भगवान बिरसा मुंडा को सच्ची श्रद्धांजली की बात कही. कहा कि जीवन में अनुशासन एवं उत्पादन को विशेष महत्त्व देने की आवश्यकता है. सीमित संसाधनों के होते हुए विवि के छात्रों ने शैक्षणिक क्षेत्र में तथा वैज्ञानिकों ने शैक्षणिक, शोध एवं प्रसार के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित की है. उन्होंने राज्य में कृषि शिक्षा के विस्तार पर बल देते हुए सभी केवीके वैज्ञानिकों को सूदूर ग्रामीण इलाकों तक कृषि शिक्षा के महत्त्व को प्रतिबिंबित करने को कहा.
मौके पर निदेशक अनुसंधान डॉ अब्दुल वदूद ने बिरसा मुंडा के 25 वर्षो के योगदान को स्मरणीय, बेमिसाल एवं अनुकरनीय बताया. सरसों के नये उन्नत किस्म की चर्चा की तथा वैज्ञानिकों को निरंतर उत्कृष्ट शोध कार्य एवं खाद्यान्न व पोषण सुरक्षा की दिशा में प्रयासों की आवश्यकता जताई.
डीन एग्रीकल्चर डॉ एसके पाल ने कहा कि बिरसा मुंडा ने हमें स्वाभिमान एवं स्वयं पर विश्वास करना सिखाया. साथ ही कृषि क्षेत्र की दशा एवं दिशा में बिरसा मुंडा की सोच एवं विचार पर प्रकाश डाला.
रजिस्ट्रार डॉ नरेंद्र कुदादा ने कहा कि बिरसा मुंडा ने अपने कार्य, सोच, विचार एवं आदर्शो से आदिवासी समाज में चेतना का अमिट छाप छोड़ी है. उन्होंने बिरसा के सपनों को साकार करने हेतु झारखण्ड के पहाड़ों के बीच स्थित सूदूर गाँवों में बेहतर शिक्षा सुविधा एवं पंचायत स्तर पर पुस्तकालय स्थापना की आवश्यकता जताई.
देवघर के किसान राजेन्द्र यादव ने सुख चाहो तो खेती और दुख चाहो तो झगड़ा से अपने विचारों को रखा और आधुनिक कृषि एवं परंपरागत खेती के समावेश को अपनाने की बात कही.
स्वागत भाषण निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ जगरनाथ उराँव ने दी. कार्यक्रम का संचालन बिरसा हरियाली रेडियो की समन्यवयक शशि सिंह तथा धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक डॉ निभा बाड़ा ने दी. मौके पर डॉ सुशील प्रसाद, डॉ एमके गुप्ता, डॉ डीके शाही, डॉ पीके सिंह, डॉ एमएस मल्लिक, डॉ बीके अग्रवाल, डॉ सोहन राम सहित विभिन्न केवीके के प्रधान, वैज्ञानिक, प्राध्यापक तथा भारी संख्या में बिरसा किसान एवं छात्र-छात्राएँ मौजूद थे.